इटली (Italy) की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार को जी20 सम्मेलन से अलग अपने चीनी समकक्ष ली कियांग से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने संकेत दे दिया कि अब उनका देश बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरई) से बाहर निकलना चाहता है। इससे पहले इसी साल जुलाई में इटली (Italy) के रक्षा मंत्री गुइडो क्रोसेटो ने भी कहा था कि चीन के साथ जिस बीआरआई पर साइन हुए हैं वह कामचलाऊ और अत्याचारी है। इटली उस समय बीआरआई में शामिल हुआ था जब वह निवेश और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बेताब था। फिर आखिर ऐसा क्या हो गया जो अब इटली इससे निकलने के लिए बेताब हो रहा है।
इटली(Italy) ने जब बीआरआई को ज्वॉइन किया था तो उसका मकसद इसके जरिए 10 सालों बाद मंदी से बाहर आकर आगे बढ़ना था। उस समय इटली के यूरोपियन यूनियन (ईयू) के साथ अच्छे रिश्ते नहीं थे। ऐसे में उसने निवेश के लिए चीन का रुख किया और देश की तत्कालीन ऐसा करके खुश भी थी। लेकिन अब इटली को लगता है कि चीन के साथ हुए समझौते से उसे ज्यादा फायदा नहीं हुआ है। आंकड़ें भी हालांकि कुछ इसी तरफ इशारा करते हैं। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के आंकड़ों के अनुसार, इटली में चीनी एफडीआई साल 2019 में 650 मिलियन डॉलर से घटकर 2021 में सिर्फ 33 मिलियन डॉलर रह गया। वास्तव में, देश ने यूरोप में गैर-बीआरआई देशों में कहीं अधिक निवेश किया।
व्यापार की बात अगर करें तो बीआरआई में शामिल होने के बाद से, इटली(Italy) का चीन को निर्यात 14.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 18.5 बिलियन यूरो तक पहुंचा था और इस आंकड़ें को भी काफी कमजोर माना गया। जबकि अगर चीन को इटली के निर्यात की बात करें तो यह 33.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 50.9 बिलियन यूरो तक पहुंच गया था। इन सबके बावजूद अगर इटली समझौते से बाहर निकलता है तो कहीं न कहीं इसकी वजह भी कुछ और होंगी। बीजिंग के लिए किसी जी7 देश का बीआरआई में शामिल होना एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी। इसकी 10वीं सालगिरह से ठीक पहले इटली का इससे बाहर निकलना चीन के लिए एक बड़ी हार की तरह होगा।
विशेषज्ञों की मानें तो इटली का फैसला चीन के लिए यूरोप के बढ़ते सतर्क रुख के तहत ही है। कई जानकार मानते हैं कि अमेरिका-चीन संबंध पिछले कई वर्षों से अस्थिर रहे हैं। इसके बावजूद यूरोप के कई देशों ने चीन के साथ मजबूत आर्थिक और व्यापारिक संबंध बनाए रखे हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए चीन का कट्टर समर्थन और व्यापार प्रतिबंधों का रूप अब एक बड़ी भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का विषय बन गया है। इसने ही कहीं न कहीं इटली को बीआरआई पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया है।
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