इस साल 24 फरवरी 2022 को शुरू हुई रूस और यूक्रेन के बीच फिलहाल जंग जारी है। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, वैसे-वैसे दोनों देशों के बीच संघर्ष और भी ज्यादा बढ़ते हुए नजर आ रहा है। हाल ही में रूस के क्रीमिया पुल को तबाह करने के बाद हालात फिर से बिगड़ गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ( Russian President Vladimir Putin) ने NATO के बॉर्डर से महज 20 मील की दूरी पर 11 न्यूक्लियर बॉम्बर्स मुस्तैद कर दिए हैं। वहीं एक बार फिर नाटो को पुतिन ने खुले मंच से चेताया है।
क्या बोले व्लादिमीर पुतिन?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को कहा कि रूसी सेना के साथ नाटो सैनिकों के किसी भी सीधे संपर्क या सीधे संघर्ष से ‘वैश्विक तबाही’ होगी। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में न्यूज कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पुतिन ने कहा ,’किसी भी मामले में, सीधा संपर्क रूसी सेना के साथ (NATO) सैनिकों का सीधा टकराव एक बहुत ही खतरनाक कदम है, जो वैश्विक तबाही का कारण बन सकता है। मुझे उम्मीद है कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं वे इतने समझदार हैं कि ऐसा कदम न उठाएं।
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इससे पहले रूसी सिक्योरिटी काउंसिल के डिप्टी सेक्रेटरी अलेक्जेंडर वेनेडिकतोव ने साफ कहा था कि यूक्रेन जानता है कि अगर वह नाटो में शामिल हुआ तो ये इस युद्ध को तीसरे विश्व युद्ध में बदल देगा। उन्होंने इस बात को भी दोहराया कि इस तरह का कदम उठाने का अंजाम खुद NATO सदस्य भी अच्छे से समझते हैं।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पिछले महीने यूक्रेन के चार क्षेत्रों पर कब्जा करने के बाद रूसी क्षेत्र की रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की चेतावनी दी थी, इस कदम की संयुक्त राष्ट्र ने इस हफ्ते निंदा की थी। व्हाइट हाउस की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक मंगलवार को ग्रुप ऑफ सेवन (G7) राष्ट्रों ने चेतावनी दी कि यूक्रेन पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के गंभीर परिणाम होंगे।
रूसी सेना में नागरिकों की तैनाती शुरू
पुतिन ने कहा कि 2,22,000 से 3,00,000 सैन्य प्रशिक्षण वाले नागरिकों की सेना में तैनाती संबंधी आदेश पर अमल शुरू किया जा चुका है। इनमें से 33,000 पहले ही सेना में शामिल हो चुके हैं। जबकि 16,000 जवान यूक्रेन में जारी सैन्य अभियान का हिस्सा हैं। पुतिन द्वारा सितंबर में जारी इस आदेश के तहत 65 साल से कम आयु के लगभग सभी पुरुष सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त नागरिकों के रूप में पंजीकृत हैं। इस फैसले पर आम जनता में नकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। राष्ट्रपति के इस आदेश के बाद हजारों लोग रूस छोड़कर पड़ोसी देशों में पलायन करने लगे थे।
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