पाकिस्तान और तालिबान के बीच इस वक्त स्थिति युद्ध जैसी हो गई है। आज से आठ महीने पहले दोनों इतने अच्छे दोस्त थे कि, तालिबान को अफगानिस्तान में कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने ही सबसे ज्यादा मदद की। साथ ही तालिबान सरकार की गठन के दौरान भी पाकिस्तान की आईसआई का हाथ रहा। इस दौरान आईएसआई चीफ वहां पर मौजूद थे। यहां तक कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को तो जब भी मौका मिला विश्व मंच पर गला फाड़ कर चिल्लाए कि दुनिया अपना समर्थन दे। लेकिन, यही तालिबान अब पाकिस्तान के लिए नासूर बन बैठा है। हालांकि, इसमें सबसे ज्यादा गलती पाकिस्तान की है। क्योंकि, पाकिस्तान यहां भी अपना फायदा देख रही थी और डूरंड लाईन पर बाढ़ लगा रही थी। जिसके बाद से विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों में दुश्मनी का माहौल पौदा हो गया। तालिबान के सत्ता में वापसी के बाद से अफगानिस्तान में बम धमाके बढ़ने लगे हैं। अफगानिस्तान में आंतकियों के बढ़ते कदम से तालिबान झल्ला उठा है और UNSC में कहा है कि, आतंक का समर्थन करने वालों को न्याय के कटघरे में लाना जरूरी।
अफगानिस्तान का जब से पाकिस्तान से तकरार शुरू हुआ है तब से ही यहां आतंकी गतिविधियां बढ़ गई हैं। 29 अप्रैल को काबुल की एक मस्जिद में बम धमाका किया गया, जिसमें 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई वहीं कई घायल हो गए। अफगानिस्तान में इस तरह का हमला पहला नहीं है। इससे पहले भी यहां कई ऐसे हमले किए गए, जिसमें आम नागरिकों को निशाना बनाया गया है। अफगानिस्तान में बढ़ते आतंकी हमलों के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बयान जारी किया है। सुरक्षा परिषद की ओर से जारी किए गए बयान में इन हमलों की निंदा की गई है। इसके साथ ही आतंक का समर्थन, उनको आर्थिक मदद मुहैया कराने वालों को जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
मस्जिद हमले की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए यूएनएससी ने कहा, आतंक का समर्थन करने वालों को न्याय के कटघरे में लाना होगा। इस दौरान सुरक्षा परिषद ने सभी देशों से आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की अपील की। यूएनएनसी ने कहा आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व शांति के लिए खतरा है। बता दें कि, अफगानिस्तान में 28 अप्रैल की शाम भी दो धमाके हुए थे, जिसमें कम से कम नौ लोग मारे गए और 13 अन्य घाटल हो गए। धमाका बल्ख प्रांत के मजार-ए-शरीफ इलाके में हुआ था। इसके अलावा भी कई और हमले हुए जिनकी जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी।