US Military Base: चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) प्रोजेक्ट के तहत दुनिया के कई छोटे देशों को इसका शिकार बना चुका है। इसमें अब तक फंसने के बाद सबसे ज्यादा बुरा हाल श्रीलंका का है। जिसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डूब गई है। पाकिस्तान को भी चीन बरबाद कर चुका है। इसके साथ ही नेपाल, बांग्लादेश से लेकर सोमालिया तक इसकी जद में हैं। अब चीन की नजर सऊदी अरब पर है जहां जिनपिंग दौरा करने वाले हैं। लेकिन, इससे पहले अमेरिका ने बड़ा झटका देते हुए ऐलान किया है कि, वो सऊदी अरब में नया मिलिट्री बेस (US Military Base) खोलने जा रहा है। सऊदी अरब, मीडिल ईस्ट का वो देश है जो हमेशा से अमेरिका की विदेश नीति का अहम हिस्सा रहा है। अब चीन के राष्ट्रपति आने वाले दिनों में पहले सऊदी अरब के दौरे पर जाने वाले हैं। जानकारों का मानना है कि, मीडिल ईस्ट अब अमेरिका और चीन के बीच प्रतियोगिता का केंद्र बिंदु बनने वाला है। इसके साथ ही मीडिल ईस्ट में अब चीन के कदम मजबूत भी होने लगे हैं और इसका रंग भी नजर आने लगा है। पारंपरिक सेक्टर्स जैसे तेल और गैस में चीन और खाड़ी देशों के बीच आपसी सहयोग भी बढ़ने लगा है। इस बीच अमेरिका ने यहां पर मिलिट्री बेस (US Military Base) खोल कर चीन को बड़ा झटका देते हुए साफ कर दिया है कि, वो चीन की यहां पर घुसपैठ करने नहीं देगा।
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सऊदी अरब में अमेरिका का नया मिलिट्री बेस एक टेस्टिंग फैसिलिटी के तौर पर काम करेगा, जहां अमेरिकी सेना तैनात होगी। इस फैसिलिटी में एंटी ड्रोन तकनीक और इंट्रीग्रेटेड एयर एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम की टेस्टिंग की जाएगी। अमेरिकी नौसेना की सेंट्रल कमांड या CENTCOM ने बताया है कि वह इस योजना पर लंबे समय से काम चल रहा था। सेंटकॉम मध्य-पूर्व और ईरान के इलाके में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों का संचालन करती है। सऊदी अरब में खुलने वाले अमेरिका के मिलिट्री टेस्टिंग फैसिलिटी का नाम रेड सेंड इंट्रीग्रेटेड एक्सपेरिमेंटेशन सेंटर होगा। यह न्यू मैक्सिको में स्थित अमेरिका की व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज की तरह ही विशाल होगा।
हालांकि, अभी तक अमेरिका ने इस मिलिट्री बेस के लिए जगह का निर्धारण नहीं किया है। लेकिन, अमेरिकी अधिकारयों का कहना है कि, सऊदी अरब के पास जमीन की कोई कमी नहीं है। ऐसे में जगह का निर्धारण न होना कोई समस्या नहीं है। कम आबादी के चलते ऐसे कई इलाके हैं, जहां लोगों को प्रभावित किए बिना ही इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, सिग्नल जैमिंग और डायरेक्ट एनर्जी वेपन की टेस्टिंग की जा सकती है। वहीं, एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने कहा कि सऊदी अरब के चारों ओर अमेरिका के लिए कई सारी चुनौतियां मौजूद हैं। ऐसे में सऊदी मे मिलिट्री बेस स्थापित कर इन सबका सामना एक साथ किया जा सकता है। इसके अलावा एक अन्य अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि, सेंटकॉम के कमांडर जनरल माइकल एरिक कुरिल्ला पिछले महीने ही इस क्षेत्र में कई अमेरिकी सहयोगियों के साथ एक बैठक में इस विचार का प्रस्ताव रखा था। इस दौरान सभी सहयोगियों ने जनरल कुरिल्ला के विचार को भारी समर्थन दिया था। इस टेस्टिंग फैसिलिटी की योजना का ऐलान ईरान के खिलाफ अरब देशों और इजरायल के बीच बढ़ते सुरक्षा सहयोग के बीच किया गया है। ईरान ने हाल के कुछ वर्षों में अपने शस्त्रागार में बड़े पैमाने पर बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन का निर्माण किया है।
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बता दें कि, यमन के हूती विद्रोही ईरान में बने ड्रोन के जरिए सऊदी अरब के तेल फैसिलिटी पर हमला करते रहे हैं, पिछले कुछ सालों में हूती विद्रोहियों के हमले में सऊदी अरब को भी भारी नुकसान हुआ है। वे सऊदी के बुनियादी ढांचे और सैन्य फैसिलिटी को भी निशाना बना रहे हैं। ऐसे में अमेरिका भी इससे चिंतित है., जुलाई में ही जो बाइडेन की मध्य पूर्व की यात्रा के दौरान, अमेरिका अधिकारियों ने सऊदी को अपनी मिसाइल सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कहा था।
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