भारत में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलनों से पाकिस्तान के हुक्मरानों की मुसीबत बढ़ गई है। पाकिस्तान के बड़बोले विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो(Bilawal Bhutto) को भारत ने आने का न्योता दिया है। पाकिस्तान (PAK Army) में इन नेता की भारत यात्रा को लेकर दो फाड़ हो गया है और यही वजह है कि देश के शीर्ष नेतृत्व में अब बड़े पैमाने पर मंथन का दौर शुरू हो गया है। गोवा की राजधानी पणजी में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन सम्मेलन (SCO Summit 2023) का आयोजन होना है। कई विशेषज्ञों की मानें तो बिलावल का भारत दौरा दोनों देशों की मीडिया के लिए मसाला परोसने वाला होगा। लेकिन उनके आने से रिश्तों पर कुछ खास फर्क पड़ेगा, इस बात की संभावना बहुत कम है। भारतीय विशेषज्ञों की मानें तो दोनों देशों के रिश्तों में सुधार तब तक नहीं होगा जब तक पाकिस्तान PAK Army की विदेश नीति को उनके देश में समर्थन मिलेगा। इसमें एक बड़ा रोल पाकिस्तानी सेना का भी है जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।
पाकिस्तान की विदेश नीति की सबसे बड़ी समस्या है कि भारत पर कभी कोई समझौता नहीं होता है। विदेश नीति में सबसे बड़ा फोकस चीन, अमेरिका और रूस पर ही रहता है। पाकिस्तान को इस समय अफगानिस्तान से भी काफी चुनौतियां मिल रही हैं। साथ ही वह मीडिल ईस्ट की बदली राजनीतिक स्थितियों से भी निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है।देश के कई सीनियर जर्नलिस्ट्स जैसे हामिद मीर ने बाजवा पर कश्मीर मसले पर भारत के साथ बड़ा समझौता करने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बाजवा का दावा था कि पाकिस्तानी सेना भारत से लड़ने की स्थिति में नहीं है। सेना प्रमुख के रूप में उनके छह साल के कार्यकाल (2016-22) के दौरान मीडिया या राजनीतिक वर्ग के कुछ लोगों ने बाजवा की आलोचना करने की हिम्मत की। पाकिस्तान की सेना की प्रतिष्ठा भी अब निचले स्तर पर है।
अगर चीजें वैसी होती जैसी बाजवा (PAK Army) चाहते थे तो युद्धविराम भारत के साथ पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों का एक और दौर शुरू कर सकता था। लेकिन बाजवा और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच भारत समेत कई मुद्दों पर मतभेद थे। इमरान खान के साढ़े तीन साल के शासन के दौरान, बाजवा (PAK Army) को अपनी विदेश नीति के दुस्साहस के बाद भी लगातार सफाई देनी पड़ती थी। भारत के साथ तनाव कम करने के लिए बाजवा के कदम पाकिस्तान की विदेश नीति को बदलने के बड़े प्रयासों का एक हिस्सा थे। ऐसा माना जाता रहा है कि वर्तमान नीतियां इस क्षेत्र में पाकिस्तान की गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं।
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