काठमांडू में राजनीति एक बार फिर तेजी से करवट ले रही है। वहां देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है, उनके विरुद्ध विशेषाधिकार दुरुपयोग के आरोप में महाभियोग चलाए जाने की प्रक्रिया समाप्त हो गई है। इतना ही नहीं नेपाल की देउबा सरकार द्वारा अचानक उठाए गए इस कदम ने वहां राजनीतिक भूचाल ला दिया है। खैर, अभी कुछ ही दिन पहले ही शी जिनपिंग ने काठमाण्डू में अपने तीसरे सबसे बड़े नेता को भेजा था। दरअसल, चीन लगातार इस कोशिश में जुटा हुआ था कि नेपाल भारत से दूर रहे। इसीलिए घाटे की आशंका के बाद भी बीआरआई प्रोजेक्ट शुरू कर रहा है।
कैसे और क्या हुआ इस बारे में न्यायमूर्ति शमशेर राणा ने कहा कि वे सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) जाने की तैयारी कर रहे थे, मगर देउबा की सरकार ने उनके जाने पर पाबंदी लगा दी। साथ ही पुलिस ने उनके रास्ते बंद कर दिए और उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया, बाहर पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया।
राणा के खिलाफ फरवरी में आया था महाभियोग प्रस्ताव
भ्रष्टाचार के आरोप में CJN राणा के खिलाफ इस साल फरवरी में संसद के अंदर महाभियोग प्रस्ताव (Proposal Of Impeachment) पेश किया गया था, उनके 101 सांसदों ने महाभियोग चलाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे, जिनमें नेपाल के कानून मंत्री दिलेन्द्र बडु भी शामिल थे। नेपाल सरकार का दावा है कि इस प्रस्ताव के पेश होते ही राणा खुद ब खुद पद से निलंबित हो गए हैं। राणा पर भ्रष्टाचार और सरकार में हिस्सेदारी के लिए सौदेबाजी करने समेत 21 आरोप लगे थे।
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राणा ने कही है अब अपने पत्र में ये बात
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, CJN राणा ने एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया खत्म हो जाने का दावा किया है। राणा के मुताबिक, संसद का आखिरी सत्र खत्म हो चुका है और अब नवंबर में देश के अंदर आम चुनाव होने हैं। ऐसे में उनके खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया खुद ब खुद ही खत्म हो गई है। इस लिहाज से अब मैं दोबारा देश के चीफ जस्टिस के तौर पर काम करूंगा। राणा ने यह दावा करने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट जाने की कोशिश की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राणा को इसके बाद ही घर में नजरबंद किया गया है।
राणा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने वाले दलों में सत्ताधारी नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) , सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) आदि शामिल थे, जो गठबंधन सरकार का हिस्सा है। इन दलों की सरकार बनने की राह चीफ जस्टिस राणा के ही एक फैसले के कारण खुली थी। राणा की अध्यक्षता वाली बेंच ने शेर बहादुर देउबा को सरकार बनाने का आदेश दिया था। इसे न्यायिक इतिहास में अपनी तरह का पहला फैसला माना गया था, जब अदालत ने सरकार बनाने का आमंत्रण किसी नेता को दिया था।
इसके उलट राणा के फैसले से सरकार गंवाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने उनका समर्थन किया है। ओली ने रविवार को कहा कि संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है, इसलिए राणा को काम करने का मौका मिलना चाहिए। उन्हें नजरबंद करना गैरजिम्मेदाराना हरकत है।
राणा के खिलाफ केवल राजनेता ही नहीं हैं बल्कि नेपाली वकील और निचली अदालतों के जज भी उनका विरोध कर रहे हैं। इन सभी का आरोप है कि चीफ जस्टिस लगातार भ्रष्टाचार कर रहे हैं। साल 2021 में इन सभी ने चीफ जस्टिस के विरोध में प्रदर्शन भी किया था और सरकार से उनके सुप्रीम कोर्ट आने पर बैन लगाने की मांग की थी। नेपाल बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने अब भी राणा का विरोध जारी रखने की बात कही है।
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