नेपाल में भारतीय मूल के रहने वाले मधेसी समुदाय के लोगों की बड़ी जीत हुई है। क्योंकि, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने नागरिकता कानून संशोधन बिल वापस लेने का फैसला लिया है। भारत से आकर यहां बसे इस समुदाय के लोग शुरुआत से ही इस संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे थे। एस समय इशके खिलाफ नेपाल में जमकर आंदोलन हुआ था लेकिन, बाद में यह मामला ठंडा होते ही शांत हो गया। लेकिन, देउबा सरकार के आने के बाद मधेसी समुदाय में फिर से उम्मीद की आस जगी और अब सरकार ने इनके पक्ष में ये फैसला लेकर बड़ी राहत दी है।
देउबा सरकार ने संसद में मंगलवार को संघीय मंत्रिमंडल की बैठक में ये निर्णय हुआ। इस में तय किया गया कि इस विधेयक में शामिल विवादास्पद प्रावधानों को हटा कर विधेयक का नया प्रारूप तैयार किया जाएगा। उसके बाद उसे नए सिरे से संसद में पेश किया जाएगा। इस बैठक के बाद विधि, न्याय एवं संसदीय कार्य मंत्री गोविंदा कोइराला ने पत्रकारों से कहा कि, बिल में कई विवादित प्रावधान थे। इस वजह से यह कई राजनीतिक दलों और हितधारकों के बीच टकराव का मुद्दा बन गया। इसलिए सभी राजनीतिक दलों के बीच ये सहमति बनी है कि इस विधेयक को नए सिरे से तैयार किया जाए। जिन दलों ने इस पर सहमति दी है, उनमें मुख्य विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) भी शामिल है। इसके आगे उन्होंने कहा कि, नए बिल को सबकी सहमति से तैयार किया जाएगा। उसके बाद उसे संसद में पेश किया जाएगा।
बता दें कि, नागरिकता संशोधन कानून में सबसे विवादास्पद प्रावधान नेपाली पुरुषों से विवाह करने वाली विदेशी महिलाओं की नागरिकता के बारे में था। इस प्रावधान पर संसद की 'राजकीय मामले और सुशासन समिति' ने दो साल तक व्यापक विचार-विमर्श किया। इसके बावजूद नेपाली पुरुषों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को नागरिकता देने का नियम क्या हो, इस बारे में देश के प्रमुख राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं बन सकी। आम सहमित के अभाव में संसदीय समिति ने मतदान से फैसला किया था। उसमें बहुमत ने इस प्रावधान का समर्थन किया कि नेपाली पुरुष से विवाह करने वाली विदेशी महिला को सात साल बाद जाकर नेपाल की नागरिकता दी जाए। इस प्रावधान का सबसे पुरजोर समर्थन यूएमएल और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) ने किया था। लेकिन नेपाली कांग्रेस ने उस पर अपनी असहमति दर्ज कराई। जब ये बिल संसद में पेश किया गया था, तो उसके साथ ही नेपाली कांग्रेस के असहमति पत्र को भी वहां रखा गया था। अब इस बिल को वापस होने के बाद नए सिरे से विचार-विमर्श का रास्ता खुल गया है।
दरअसल, नेपाल में रहने वाले भारतीय मूल के बहुत से लोग मैथिल,थारू, अवधी और भोजपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं। इनका रहन-सहन और वेश-भूषा भारत के लोगों की तरह होता है। उनको नेपाल में मधेसी कहते है। ये लोग भारतीय मूल के लोग ही हैं जो नेपाल में पीढ़ी दर पीढ़ी बसे हुए हैं। एक वक्त था जब इन लोगों को लेकर नेपाल में कोई भेद-भाव नहीं था। लेकिन, 2015 के बाद नेपाल में नए नियम बने और मधेसी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर हो गए और केपी शर्मा ओली की सरकार बनते ही एक के बाद एक नए नियम लागू किए जाने लगे। जिसे लेकर देशभर में जमकर हंगामा हुआ। अब देउबा सरकार ने इसे वापस लेकर मधेसी समुदाय को बड़ी राहत दी है। इससे भारत और नेपाल के रिश्तों में और मजबूती आएगी