पूरी दुनिया के खिलाफ क्यों आक्रामक हो गया है चीन?

इस समय चीन के संबंध ताइवान से लेकर भारत तक से बहुत ज्यादा तनावपूर्ण हो चुके हैं। साउथ चाइना सी में भी जापान और फिलीपींस से उसका टकराव हाल के दिनों में बहुत ज्यादा बढ़ा है। ताइवान की सीमा के करीब चीन ने आक्रामक सैन्य अभ्यास किया। अमेरिका ने अपने जंगी युद्धपोतों को भेजकर उसका जवाब देने की कोशिश की। चीन की इन आक्रामक गतिविधियों के पीछे आखिर कुछ वजहें तो जरूर होंगी जिसके कारण वह पूरी दुनिया का दुश्मन बनने के लिए तैयार हो गया है।

<strong>जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर चाइनीस एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज के चेयरमैन और प्रोफेसर बी.आर. दीपक</strong> का मानना है कि चीन की बढ़ती आक्रामकता के पीछे कई कारण हैं। चीन को लगता है कि जिस तरह से उसने कोरोना पर प्रभावी ढंग से काबू किया है, वैसा दुनिया के दूसरे मुल्क नहीं कर पाए हैं। इन देशों में लगातार मौतें हो रही हैं और कोरोना संक्रमण की दर बढ़ती जा रही है। इससे इन जैसे देशों के पास अभी उसका मुकाबला करने के लिए क्षमता नहीं है। वह मौके को लपककर अपनी सीमा का विस्तार करना चाहता है।

चीन की आक्रामकता बढ़ने का दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि उसके मन में एक हीन ग्रंथि है। उसे लगता है कि अमेरिका, जापान और यूरोप जैसी शक्तियां उसके उदय को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं। उसके आर्थिक, सैनिक और राजनीतिक प्रभाव के रास्ते में यह सभी देश गुट बनाकर रोड़ा लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके जवाब में चीन ने अपनी वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी शुरू की है। जिसमें उसके विदेशी राजनयिक दूसरे देशों के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग करते हैं।

चीन की आक्रामकता बढ़ने का तीसरा सबसे बड़ा कारण कोरोना के कारण बेरोजगारी का बहुत ज्यादा बढ़ना है। पूरी दुनिया में अगर तबाही मची है तो उसका सबसे सीधा असर चीन के औद्योगिक केंद्रों पर पड़ा है। पूरी दुनिया के लिए निर्माण कारखाना बन चुके चीन में विदेशों से मांग में भारी गिरावट आई है। इससे भी लोगों का ध्यान भटकाने के लिए चीन राष्ट्रवाद का कार्ड खेल रहा है।

चीन में डेंग शियाओ पिंग के असर वाला का एक सुधारवादी तबका भी है। जिसे लगता है कि शी जिनपिंग की नीतियां डेंग के रास्ते के खिलाफ जा रही हैं। ऐसे लोग जिनपिंग का विरोध कर रहे हैं। इसलिए भी जिनपिंग कठोर रुख अपनाकर अपनी ताकत को दिखाना चाहते हैं। वे साबित करना चाहते हैं कि इस समय चीन में उनके अलावा कोई भी परिस्थिति को संभालने वाला नेता नहीं है।

संविधान में संशोधन करवा कर उन्होंने अपने को आजीवन पार्टी प्रमुख और राष्ट्रपति रहने का प्रबंध करवा लिया है। इसके कारण भी पार्टी के लोगों में बहुत असंतोष है। इस असंतोष को दबाने के लिए जिनपिंग कठोर रवैया अपना रहे हैं। हाल ही में पार्टी के सेंट्रल स्कूल की एक प्रभावशाली महिला प्रोफेसर काई ज़िया ने इस्तीफा दे दिया और जिनपिंग पर तीखा हमला किया।

प्रो. दीपक के अनुसार चीन में इस समय ग्रामीण क्षेत्रों की हालत खस्ता है और वह अनाज की कमी हो रही है। इस साल चीन के कई इलाकों में भारी बाढ़ आई है। बाढ़ का असर इतना है कि चीन के सबसे बड़े <strong>थ्री गार्जेज बांध</strong> में दरारें पड़ गई हैं और कई छोटे बांधों को तो चीन की सरकार ने खुद ही तोड़ दिया। वुहान शहर में जहां से कोरोना महामारी फैली थी, वहां बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है। ऐसी स्थितियों को देखते हुए चीन ने देश में खाना बर्बाद नहीं करने का एक बड़ा अभियान चलाया है। इसमें लोगों को खाने को बचाने के लिए उपाय बताए जा रहे हैं। चीन को लगता है कि इससे वह अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी अनाज की बचत कर सकता है।

चीन अपने लोगों को एकजुट रखने और उनका हौसला बढ़ाने के लिए ताइवान, जापान और भारत से खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का कोशिश कर रहा है। इन देशों के साथ चीन जानबूझकर बिना किसी कारण के टकराव मोल ले रहा है। चीन में आंतरिक समस्याएं भी तेज हो रही हैं।

शी जिनपिंग के हाथ में सत्ता का पूरी तरह केंद्रीकरण होने के बाद से चीन के अमीर और अरबपतियों उद्योगपतियों को लगता है कि उनकी संपत्ति अब सुरक्षित नहीं है। कभी भी कोई आरोप लगाकर उनको जेल में डाला जा सकता है और उनकी संपत्ति को जब्त किया जा सकता है। पार्टी पर जिनपिंग का शिकंजा कसने के बाद से चीन के अमीरों ने अपना धन विदेशों में भेजना शुरू कर दिया है। इन लोगों ने यूरोप अमेरिका जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ा दिया है। हांगकांग के अरबपति ली खाई शिंग ने तो बहुत पहले से ही अपनी संपत्ति का निवेश विदेशों में करना शुरू कर दिया था।

अरबपतियों पर शी जिनपिंग के बढ़ते दबाव का सबसे बड़ा उदाहरण <strong>alibaba.com</strong> के मालिक जैक मॉ हैं, जिनको चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता लेनी पड़ी है। क्योंकि उनको लगता है कि इसके बगैर कभी भी उनकी संपत्ति या व्यापार पर खतरा मंडरा सकता है। जैक मॉ ने से इससे पहले कभी भी पार्टी की सदस्यता नहीं ली थी।

हाल के वर्षों में एक छोटा सा भूमध्यसागरीय देश साइप्रस धनी चीनी प्रवासियों के लिए एक "नई दुनिया" बन गया है। एक नई जांच में उजागर हुआ है कि लगभग 500 चीनी अरबपतियों और अधिकारियों को साइप्रस से "गोल्डन पासपोर्ट" प्राप्त करने में सफलता मिली है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि बहुत से लोगों ने महसूस कर लिया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) जल्द ही ढह रही है। इसलिए वे ऐसा होने से पहले खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

हाल ही में "साइप्रस पेपर्स" नामक लीक दस्तावेजों में पाया गया कि 2017 और 2019 के बीच 1400 से अधिक पासपोर्ट बेचे गए, जिनमें से 500 चीनी अरबपतियों और नेताओं को बेचे गए। 500 में से आठ प्रमुख नामों का खुलासा किया गया, जिसमें यांग हुइयान का नाम शामिल है। जो  20.3 अरब अमरीकी डॉलर की संपत्ति के साथ एशिया की सबसे अमीर महिला हैं। सात अन्य लोग चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के सदस्य और चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस के सदस्य हैं। जो बीजिंग का शीर्ष राजनीतिक सलाहकार निकाय है।

साइप्रस ने आर्थिक संकट की चपेट में आने के बाद राजस्व जुटाने के साधन के रूप में "गोल्डन पासपोर्ट" बेचना शुरू कर दिया। गोल्डन वीजा योजना 2013 में एक निवेश योजना के रूप में शुरू हुई, जहां निवेशक 25 लाख यूरो का निवेश करके पासपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं। हाल के वर्षों में चीनी मीडिया ने भी स्वीकार किया कि चीन में कई करोड़पति और अरबपति अपने जमा धन को विदेशों में स्थानांतरित करने और अपनी राष्ट्रीयताओं को बदलने का रास्ता चुनने में तेजी दिखा रहे हैं।

एक चीनी-कनाडाई लेखक शेंग जू ने कहा कि "इस योजना का केवल एक छोटा सा हिस्सा उजागर हुआ और चीनी व्यापारियों और अधिकारियों का अन्य देशों में नागरिकता हासिल करना पहले से ही एक सामान्य बात हो चुकी है। वे देश, जहां लोग छिप सकते हैं, नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं और सुरक्षा हासिल कर सकते हैं, वहां चीनी लोग जा रहे हैं। दुनिया भर में कई अज्ञात द्वीपों में कई चीनी लोग रहते हैं। दुनिया में इसी तरह के देशों में लाखों चीनी लोग रहते होंगे। ”

शेंग जू ने कहा कि वह कुछ ऐसे चीनी लोगों को जानती हैं जो छोटे मध्य-अमेरिकी देशों के पासपोर्ट रखते हैं। यह उनके लिए अपनी संपत्ति और पहचान छिपाने के लिए अधिक सुरक्षित है। उन्हें डर है कि उनके धन के स्रोतों की जांच की जएगी और बड़े देशों में उनके अमानवीय अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसलिए वे उन छोटे अज्ञात देशों को चुनने के लिए तैयार हैं। उन्हें पता है कि पार्टी को जल्द या बाद में ढह जाएगी, इसलिए संकट के आने से पहले उन्हें भाग जाना चाहिये।

चीन से भागने की लहर कई साल पहले से चल गई थी। सीसीपी अधिकारियों को स्थिति के बारे में अच्छी तरह से पता चल गया था और वे जानते थे कि पार्टी को जल्द या बाद में पतन का सामना करना होगा। चीन में उच्च स्तर पर लोग पहले ही जहाज को डूबते देख चुके हैं जिसका मतलब है कि सीसीपी की साख गिर रही है।

यहां तक ​​कि निचले स्तर के अधिकारी भी जहाज से कूद रहे हैं जो दिखाता है कि समस्या बहुत गंभीर है। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज ने खुलासा किया है कि 1990 के दशक के मध्य से 2010 तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 16 हजार से 18 हजार अधिकारी 116 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ विदेश भाग गए।

2012 में पार्टी के केंद्रीय अनुशासन आयोग के एक अंदरूनी सूत्र ने जांच में खुलासा किया कि चीनी पीपुल्स कंसल्टिंग कॉन्फ्रेंस के 76.77% प्रतिनिधियों और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के 57.47% सदस्य विदेशी पासपोर्ट रखे हुए हैं।

चीन की संस्थागत प्रणाली के एक विशेषज्ञ शिन ज़िलिन ने इपोह टाइम्स के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस (नवंबर 2010) से पहले सीसीपी ने एक जांच की थी। जिसमें यह पाया गया था कि कम्युनिस्ट पार्टी के 85% से अधिक अधिकारी विदेश भागने के लिए तैयार थे और इन अधिकारियों के परिवार के सदस्य पहले ही विदेश में बस गए थे। जून 2016 में शी जिनपिंग ने एक सम्मेलन में स्वीकार किया कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी टूटने के कगार पर पहुंच गई है। हू जिंताओ और वांग क्विशन ने भी इसी तरह की चेतावनी जारी कर चुके हैं।.

डॉ. शफी अयूब खान

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