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G20 में क्यों नहीं आ रहे हैं भारत के दोस्त Putin? समझें पूरा मामला

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में इस सप्ताहांत होने जा रहे जी-20 (G20) शिखर सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्ष शामिल नहीं हो रहे हैं । लेकिन उनकी अनुपस्थिति और यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद का बड़ा असर पूरे सम्मेलन (G20) पर देखने को मिलेगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 (G20) नेताओं के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, लेकिन सम्मेलन पर उनके और रूस-यूक्रेन युद्ध का असर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से भी अधिक होने की आशंका है। विश्व नेताओं के नौ-10 सितंबर को होने जा रहे शिखर सम्मेलन के लिए नयी दिल्ली में एकत्र होने की तैयारियों से महज कुछ दिन पहले, खबर आई कि चीन के राष्ट्रपति ने इस सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।

जिनपिंग की अनुपस्थिति निस्संदेह वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर प्रगति को बाधित करेगी। हालांकि, जी-20 सम्मेलन में पुतिन और यूक्रेन में युद्ध के मुद्दे के हावी होने से पहले संगठन के समक्ष पहले से लंबित जरूरी मुद्दों पर प्रगति में बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। सदस्य के तौर पर रूस का यह कदम कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन जी20 की संरचना – जिसमें पश्चिमी देश और वैश्विक दक्षिण यानी ग्लोबल साउथ के प्रमुख देश शामिल हैं – ने संगठन के लिए प्रभावी ढंग से कार्य करना और भी कठिन बना दिया है। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। जी-20, नेताओं के दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन से कहीं अधिक अहम है।

रूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर बंटे हुए हैं जी 20 देश

इसका अधिकांश कार्य पृष्ठभूमि में, तकनीकी जानकारों और नीति निर्माताओं के नेटवर्क के माध्यम से होता है, जो समस्याओं को हल करने के तरीके ढूंढ सकते हैं, भले ही उनके नेताओं के बीच संबंध खराब हो जाएं। चल रहे संघर्ष के मुद्दे के अलावा भी इस साल जी-20 (G20)के एजेंडे में कई अन्य मुद्दे हैं। वैश्विक मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है, और विकास गति धीमी और ऐतिहासिक रुझानों से कम है। चीन की आर्थिक वृद्धि में कमी, अपस्फीति (डिफ्लेशन) और आवास बाजार संकट की अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसका बाकी दुनिया पर अहम प्रभाव पड़ सकता है। कई अर्थव्यवस्थाएं कर्ज संकट से जूझ रही हैं। दुनिया के लगभग आधे विकासशील देशों को तत्काल वित्तीय सहायता की आवश्यकता है क्योंकि महामारी का उनपर नकारात्मक असर पड़ा है।

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ये वे मुद्दे हैं जिनपर जलवायु परिवर्तन या सतत विकास जैसे दीर्घकालिक मुद्दों पर विचार करने से पहले बात की जानी है। दोनों मोर्चों पर प्रगति तय समय से पिछड़ रही है। वास्तव में जी20  (G20) इन्हीं मुद्दों से निपटने के लिए बनाया गया था। यह दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार में 75 प्रतिशत और दुनिया की आबादी में दो-तिहाई कर योगदान करते हैं। दुनिया में जो वैश्विक शासन है वह जी-20 है। सहमति के लिए संघर्ष रूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर, जी-20 के भीतर तीन अलग-अलग गुट हैं। पहला, रूस है, जिसने जी20 में युद्ध पर चर्चा की वैधता को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि एक आर्थिक निकाय के रूप में सुरक्षा मामलों पर विचार करना उसका कोई काम नहीं है। जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है, चीन के रुख भी बदलाव आ रहा है क्योंकि वह रूस के करीब आ रहा है।