आज से छठ पूजा शुरु हो रही है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। छठ की मुख्य पूजा 10 नवंबर को की जाएगी। महिलाएं छठ का व्रत संतान प्राप्ति, और संतान की उन्नति के लिए रखती हैं। अगर आप पहली बात छठ की पूजा करने जा रही हैं तो आपको हम जरुरी बातें बता देते हैं।
छठ पूजा की सामग्री
सूट या साड़ी, बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां, बांस या फिर पीतल का सूप, दूध और जल के लिए एक ग्लास, एक लोटा और थाली, 5 गन्ने पत्ते लगे हुए, शकरकंदी और सुथनी, पान और सुपारी, हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा, बड़ा वाला मीठा नींबू, शरीफा, केला, नाशपाती, पानी वाला नारियल, मिठाई, गुड़, गेहूं, चावल का आटा, ठेकुआ, चावल, सिंदूर, दीपक, शहद, धूप
छठ पूजा विधि
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को 'नहा-खा' के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन से स्वच्छता की स्थिति अच्छी रखी जाती है. पहले दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है। दूसरे दिन को 'लोहंडा-खरना' कहा जाता है। इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन करते हैं। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता है। तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान 'ठेकुवा' और मौसमी फल चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है। चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।
छठ पूजा की आरती
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए.
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय.
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए.
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए.
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय.
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए.
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए.
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय.
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए.
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥