कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पर्व मनाया जाता है। 8 नवंबर से छठ पर्व की शुरुआत हुई थी और 9 नवंबर यानी छठ के दूसरे खरना का पर्व मनाया गया। इस दिन प्रसाद बनाते है और उस प्रसाद को रात के समय ग्रहण करते हैं। खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता हैं। आज सूर्य का पहला अर्घ्य दिया जाएगा। आज शाम को डूबते सूरज भगवान को पहला अर्ध्य दिया जाएगा और अगला अर्ध्य 11 नवंबर को उषाकाल में दिया जाएगा। साथ ही सूर्य देव को भोग भी लगाया जाता हैं।
भोग बनाते वक्त बरतें सावधानी
सूर्य देव का भोग बनाते वक्त साफ-सफाई का खास ख्याल रखें। इस भोग को नहाने के बाद साफ और स्वच्छ कपड़े पहनकर बनाते हैं। सूर्यास्त के दौरान व्रत रखने वाले भक्त सूर्य देव की पूजा की तैयारी करते है और टोकरी की पूजा करते हैं। टोकरी की पूजा के बाद व्रती सूर्य देव अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जो हैं, इसके बाद स्नान कर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
इन नियमों का करें पालन
छठ पर्व में प्याज व लहसुन का सेवन वर्जित माना जाता है। इन दिनों बिना लहसुन-प्याज का खाना बनाया जाता है।
छठ पूजा में यदि छठी मैया को प्रसन्न करना चाहते हैं तो साफ-सफाई का खास ध्यान रखें। बिना नहाए पूजा के किसी भी सामान को हाथ न लगाएं।
जो महिलाएं छठ का व्रत करती हैं उन्हें पलंग या चारपाई पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि जमीन पर बिस्तर करना चाहिए।
सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है और मान्यता है कि पूजा अर्घ्य के लिए प्लास्टिक, चांदी व स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
छठ का प्रसाद तैयार करते समय उसे गलती से भी टेस्ट नहीं करना चाहिए इससे वह झूठा हो जाता है।
ध्यान रखें कि जहां आप प्रसाद बना रहे हैं, वहां पहले खाना न बनता हो।
पूजा के दौरान हमेशा साफ-स्वच्छ वस्त्र ही पहनने चाहिए।
यदि आपने छठ का व्रत किया बिना सूर्य को अर्घ्य दिए किसी भी चीज का सेवन न करें।
छठ पर्व के दौरान घर में शराब और मांसाहारी भोजन न बनाना चाहिए और न ही सेवन करना चाहिए।
छठ पूजा के दौरान घर में किसी को भी फलों का सेवन करने की अनुमति नहीं होती। पूजा समाप्त होने के बाद ही फलों का सेवन किया जा सकता है।