यूक्रेन अगर नाटो में जाने की रट अगर नहीं लगाया होता तो आज उसका ये हालत नहीं होता। रूस के लाख मना करने और मिंस्क समझौते को ताख पर रखते हुए जेलेस्की नाटो में शामिल होने के लिए उतावले होने लगे जिसके बाद पुतिन ये कदम उठाया। यूक्रेन को नाटो में मिलाने में पश्चिमी देशों का सबसे ज्यादा हाथ रहा। उन्हें पता था रूस की सिमाएं यूक्रेन से लगती हैं और ऐसे में रूस को कंट्रोल में उन्हें आसानी होगी। अब दो और देश नाटो में शामिल हो गए हैं जिसके बाद माना जा रहा है कि, ये युद्ध और भी तेज हो जाएगी।
दरअसल, फिनलैंड और स्वीडन औपचारिक रूप से अब नाटो गठबंधन का हिस्सा बन गए हैं। मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक इंस्ट्रूमेंट ऑफ रेटिफिकेशन हस्ताक्षर किया है जिसके साथ दोनों देश दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा समूह नाटो के औपचारिक पार्टनर बन गए। बाइडन ने नाटो ज्वाइन करने पर दोनों देशों का स्वागत भी किया। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से नाटो को एक नया आकार देने की दिशा में यह क़दम उठाए गए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के पीछे नाटो गठबंधन में शामिल होने की यूक्रेन की मंशा भी एक वजह है, जिससे रूस खुद की सुरक्षा को लेकर ख़ासा चिंतित था।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि, नाटो में शामिल होने की मांग से फिनलैंड और स्वीडन एक पवित्र प्रतिबद्धता बना रहे हैं कि एक के खिलाफ हमला, सभी के खिलाफ हमला है। अमेरिका ऐसा 23वां देश है जिसने दोनों देशों को नाटो गठबंधन के हिस्से के रूप में अप्रूव किया है। बाइडन ने कहा कि, उन्होंने रेटिफिकेश पर हस्ताक्षर करने से पहले दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से बात की और साथ ही अन्य देशों से यह प्रक्रिया जितनी जल्दी हो सके, पूरा करने की अपील की। दोनों देशों ने यूक्रेन को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की अक्रामकता को देखते हुए पिछले साल ही नाटो में शामिल होने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की थी। नाटो 30 देशों का एक सुरक्षा समूंह है और इस गठबंधन में शामिल होने के लिए सभी देशों की सहमति ज़रूरी है।