विभाजन की विभीषिका के लिए जिम्मेदार मुहम्मद अली जिन्नाह
भारत की विभाजन की विभीषिका के लिए जिम्मेदार मुहम्मद अली जिन्नाह थे, हैं और रहेंगे। जिन्नाह ने झूठ बोला, साजिश रची और तत्कालीन भारत की सरकार को धोखा दिया। जिन्नाह ने 11 अगस्त 1947 को संविधानसभा में जो भाषण दिया वो एक षडयंत्र था। जिसकी रूप रेखा दिल्ली में औरंगजेब रोड (एपीजे अबुल कलाम रोड) के 10 नम्बर बंगले में बनाई गई। जिन्नाह ने छल और प्रपंच के तहत उस स्पीच में ऐसे शब्द डाले जिनसे नेहरू सरकार भ्रम में पड़ गई। जिन्नाह चाहते थे कि भारत सरकार, भारत में रह गए साढ़े तीन करोड़ मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिए न धकेले। जिन्नाह ने साजिश रची कि भारत में बचे रह गए साढ़े तीन करोड़ मुसलमान भी कहीं पाकिस्तान की राह न पकड़ लें।
स्वतंत्रता सेनानियों से डरी ब्रिटिश सरकार
ब्रिटिश औपनेवशिक सरकार भारत के क्रांतिवीरों से भयभीत थी। स्वतंत्रता सेनानियों से डरी ब्रिटिश सरकार अपने हितों की रक्षा के लिए भारत का बंटबारा कर पाकिस्तान बनाने की साजिश में शामिल थी। गांधी और नेहरू की गलती यह थी कि उन्होंने जिन्नाह और अंग्रेजों की इस साजिश को ठीक से नहीं समझा। नेहरू को भ्रम था कि एटली और ब्रिटेन की लेबर पार्टी उनकी दोस्त है। जिन्नाह को सेक्युलर साबित करने के लिए पता नहीं किसने क्या-क्या लिखा है। आइशा जलाल ने तो झूठ का अभियान ही चला दिया। इसके लिए उन्होंने एक किताब भी लिख दी- द सोल स्पोक्समैन जिन्नाह मुस्लिम लीग एण्ड डिमांड फॉर पाकिस्तान।
आयशा जलाल का भ्रमजाल
आयशा जलाल की यह किताब पाखण्ड की पोथी है। लेकिन इस पाखण्ड में दुनिया के तमाम लोग आ गए। आज की पीढ़ी के लोग भी इस पाखण्ड में फंस सकते हैं। लेकिन आयशा जलाल के पाखण्ड की पोल पाकिस्तान के ही प्रो. इश्त्याक अहमद ने खोल दी है। दो साल पहले उनकी किताब आई है- जिन्नाहः हिज सक्सेस-फैल्योर एण्ड रोल इन हिस्ट्री। इस किताब से तीन बातें सामने आती हैं।
पहली बातः भारत के विभाजन की विभीषिका का कोई जिम्मेदार है तो वो जिन्नाह है और कोई नहीं है। जिन्नाह आजाद अखण्ड भारत की सत्ता में साझेदारी कभी नहीं चाहते थे। 24 फरवरी 1940 को लाहौर में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अलग पाकिस्तान के प्रस्ताव पास होने के बाद से जिन्नाह की मौत तक जिन्नाह का एक भी ऐसा बयान नहीं मिलता जिसमें उन्होंने अखण्ड भारत की सत्ता में साझीदारी का जिक्र किया हो।
दूसरी बातः इस्लाम के नाम पर अलग पाकिस्तान तो बना लिया लेकिन जिन्नाह के पास राष्ट्र की कोई अवधारणा नहीं थी। इसका नतीजा 1971 में बांग्लादेश के उदय के रूप में सामने आया।
तीसरी बातः लाहौर का अपराध है कि फरवरी 1940 में मुस्लिम लीग को अलग पाकिस्तान के प्रस्ताव पारित करने का मौका दिया। जिन्नाह ने दो दिन पहले यानी 22 फरवरी को मुसलमानों को अल्पसंख्यक के तौर पर पेश किया और इस्लामिक नेशन पाकिस्तान की मांग कर दी।
विभाजन को 'गांधी की गलती' से देखोगे तो सही नजीते नहीं मिलेंगे
भारत के विभाजन को गांधी की गलती के नजरिए से देखेंगे तो सही नतीजों पर नहीं पहुंचेंगे। भारत विभाजन के लिए जिन्ना की चालबाजियों और साजिशों के नजरिए से देखा जाना चाहिए। जिन्नाह के बंटवारे के प्रस्ताव से पहले मुसलमानों ने खुद को कभी अल्पसंख्यक के तौर पर नहीं बल्कि खुद को भारतीय समाज में एक अन्य समुदाय के रूप में ही देखा था।
महात्मा गांधी पूर्णाहुति
विभाजन की विभीषिका को जानना और महसूस करना है तो गांधी जी के सचिव प्यारे लाल की किताब, ‘गांधीः पूर्णाहुति’को पढ़ना चाहिए। इस किताब का पहला अध्याय है ‘मुर्दों का शहर।‘ जी हां, प्यारे लाल उसी दिल्ली को मुर्दों का शहर बता रहें हैं जिसमें हम और आप देश का दिल कहते हैं। हालात की गंभीरता और संवेदनशीलता को समझने की कोशिश करें कि 9 सितंबर 1947 को गांधी जी कलकत्ता से दिल्ली पहुंचे तो उनके दिल्ली आने और उनके स्वागत के कार्यक्रम की जानकारी को उनके के घनिष्ठ मित्रों से भी छुपा कर रखा गया था।
दिल्ली की सड़कों पर लाशें बिछी थीं, माउंट बेटेन शिमला की वादियों का लुत्फ ले रहे थे
गांधी को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर नहीं बल्कि शाहदरा रेलवे स्टेशन पर उतारा गया। क्योंकि शाहदरा के बाद दिल्ली बेलगाम थी। दिल्ली की सड़कों पर लाशें बिछी पड़ी थीं। कोई उन्हें उठाने वाला नहीं। दंगाईयों को रोकने वाला नहीं था। दिल्ली पुलिस के अफसर और सिपाही अपनी बेल्ट बर्दी उतारकर बैरक-थाने और चौकी खाली कर जा चुके थे। सेना ने नेहरू के आग्रह को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। क्यों कि सेना माउंट बेटेन के अधीन थी। गवर्नर जनरल माउंट बेटेन शिमला में छुट्टियों का आनंद ले रहे थे। नेहरू ने माउंट बेटेन को फोन किया, सेना को आदेश देने का आग्रह किया। तब कहीं जाकर सेना सड़कों पर उतरी… पता नहीं कितने ट्रक और हवाई जहाज लगवाए गए!
भारत विभाजन की विभीषिका बहुत मर्मांतक है
भारत विभाजन की विभीषिका की व्यथा बहुत मर्मांतक है। इस व्यथा को झेलने वालों के संस्मरणों को रिकॉर्ड किया जा रहा है। कुछ पुस्तकें छप चुकी हैं और कुछ पुस्तकें बन रही हैं। ब्रिटिश काल में भी मुसलमानों ने खुद को भारतीय समुदाय का एक अंग माना था। मुस्लिम लीगियों और जिन्नाह ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर देश का बंटवारा करवा दिया। जिन्नाह के उस गलत अभ्यास को काटने का प्रयास तेज करने चाहिए।
जिन्नाह की जिस घातक यात्रा से देश बंटा उसके ठीक विपरीत यात्रा शुरू करनी है। जिसमें देखा था बुरा आदमी उसमें अच्छा आदमी देखना होगा। जिसमें देखा था शत्रु उसमें मित्र देखना होगा। जिसमें देखा था जहर वहां अमृत की तलाश करनी होगी। भारत विभाजन परतंत्रता का विस्तार है। स्वतंत्रता की राह में विपत्ति का पहाड़ है। उस पहाड़ को काटने के लिए नया मन चाहिए।
पाकिस्तानी मुसलमानों को सबक
पाकिस्तान, मुसलमानों के लिए मृग मरीचिका साबित हुआ
पाकिस्तान की मांग मुसलमनों के लिए मृग मरीचिका जैसी सुख की झील थी। अब मुसलमान समझ रहे हैं कि भारत से अलग इस्लामी राष्ट्र उनके लिए भ्रांति थी। वो जिस भ्रांति में वो थे अब टूट जानी चाहिए। स्मृति दिवस की घोषणा नरसिहांवतार की घोषणा है। भारत विभाजन भ्रम-भांति और कुचाल की नतीजा था। अब उसका नैदानिक निराकरण-उपचार होना चाहिए।
पाकिस्तान का निर्माण अवैध है
रक्तरंजित बंटवारे के बाद भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना लेकिन पाकिस्तान के प्रति, मुसलमानों के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस तरह भारत का संविधान पाकिस्तान के निर्माण को अवैध घोषित करता है। भारतीय संविधन की यह मूक घोषणा है कि पाकिस्तान का निर्माण अवैध है। हां, यह भी सच है कि भारत को एक रखने में महात्मा गांधी की कोशिशें विफल रहीं। पाकिस्तान का संविधान जैसे-तैसे 1956 में बना और तब से लेकर 2002 तक पता नहीं कितनी बार मारा गया। हर बार एक नया तानाशाह पैदा होता और पाकिस्तान के संविधान को कत्ल कर अपना संविधान खड़ा कर देता है।
विभाजन और व्यथा की विभीषिका दोनों अलग हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 फरवरी 2020 को राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव की बहस का जवाब देते चार लाइन कहीं थी। उससे भारत की विभीषिका को याद करने का एक सकारात्मक उत्तर निकलता है। आजादी के अमृत महोत्सव पर विभाजन की उस दुखद-खूनी और व्यथा पूर्ण इतिहास को याद किया जाना चाहिए। विभाजन का इतिहास एक बात है। उसकी विभीषिका और उसकी व्यथा को याद किया जाना दूसरी बात है। दोनों में फर्क है। यह फर्क भी हमें ध्यान में रखना चाहिए।
नफरत और हिंसा में मारे गए लाखों लोग
वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का ट्वीट आया जिसके ये शब्द हैं ‘देश के बंटबारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है’ नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। यहां सवाल यह नहीं कितने हिंदू मारे गए या मुसलमान मारे गए। सवाल विस्थापन के बीच उपजी हिंसा में मारे गए भारतीय नागरिकों का है। उन सभी लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को विभाजन की विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया।
75 साल में पहली बार आया अनाम बलिदानियों को याद करने का अवसर
यह हकीकत है कि 75 सालों में पहली बार यह इस तरह कोई अवसर ढूंढा गया या यह अवसर आया है। प्रधानमंत्री का जो यह आह्वान है कोई पूछ सकता है कि आखिर यह क्यों है, संभव है कि इस सवाल का जवाब हम खोजें, और खोजने के लिए मैं प्रधानमंत्री के ही कथन की उन चार लाइनों में जवाब मिलता है उन्होंने लोक सभा में कहीं.. और यह जो चार लाइनें हैं वो हैं तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की हैं जिनका प्रधानमंत्री ने एक अवसर पर संसद में उल्लेख किया था- ये लाइने हैं ‘लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे है हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ ही प्यारे हैं।'
जिन्नाह का 'सेक्युलर' वायरस और उसका संक्रमण
भारत का विभाजन जिन्नाह की चालबाजियों का नतीजा था। जिन्नाह कभी सेक्युलर थे- यह एक सरासर झूठ है। इस झूठ को आयशा जलाल जैसी कुछ पाकिस्तानी लेखकों और इतिहासकारों ने अपने तर्कों से पाला-पोसा और विस्तार दिया। दुनिया के असंख्य लोग इसी झूठ का शिकार हुए हैं। इस झूठ के भ्रम का शिकार बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी हुए। लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह इसके दो उदाहरण हैं।
जिन्होंने जिन्नाह को सेक्युलर कह डाला.. जिन्नाह को बरी करने के लिए किस-किसने नहीं लिखा है। उस भ्रम में कौन-कौन नहीं पड़ा। जसवंत सिंह ने एक किताब लिखी जिन्नाह पर, ‘जिन्नाहः इंडिया, पार्टिशन, इनडिपेंडेंस’ उस पुस्तक के बाद जसवंत सिंह का पराभव शुरु हुआ उसकी अलग कहानी है। इसके अलावा, ‘मित्रों की सलाह के विपरीत लालकृष्ण आडवाणी कराची गए, जिन्नाह की मजार पर भी गए।
यहां तक तो ठीक था लेकिन उन्होंने भी जिन्नाह को सेक्युलर कह डाला। इसके बाद आडवाणी जी फिसलते गए और किस गड्ढे में पहुंचे वो ईश्वर ही जानता है। ’ये दोनों भी उसी भ्रम का शिकार हुए कि जिन्नाह सेक्यलुर स्टेट बनाना चाहते थे।
विभाजन की भीषण व्यथा को क्यों याद करें
विभाजन का विस्मरण नहीं स्मरण करें
भारत विभाजन की व्यथा एक कहानी है। हम विस्मरण में न रहें, हम स्मरण से जुड़ें। जो बाधाएँ हैं उन्हें दूर करें और जो विस्मृत हो चुका है उसका फिर से स्मरण करें। विस्मरण की बाधाएं दूर हों इसलिए भारत के विभाजन व्यथा का स्मरण जरूरी है। विस्मरण से देश का बंटबारा हुआ, हिंसा हुई, हत्याओं की व्यथा इतनी ताजी है कि रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
कांग्रेस को विभाजन स्वीकारना क्यों जरूरी था
एक प्रसंग है सुनेंगे तो समझेंगे कि भारत का विभाजन क्यों स्वीकारना पड़ा? केएम मुंशी 'प्रीविलेज टू फ्रीडम' में लिखते हैं, ‘एक दिन सरदार ने साथ टहलते हुए कहा कि हे! अखण्ड हिंदुस्तानी हम भारत का बंटवारा करने जा रहे हैं…
मुंशी चौंके, और पूछा- सरदार आपने तो राजगोपालाचारी के बंटबारे का विरोध किया था। आपकी वजह से फैसला टल गया था तो अब कौन सी परिस्थिति आ गई? सरदार ने कहा- ‘कांग्रेस ने अहिंसा का व्रत ले रखा है, हमारे लिए अहिंसक प्रतिरोध करना संभव नही है। दूसरी बात कि अगर अहिंसा का व्रत हम त्याग दें तो कांग्रेस का अंत हो जाएगा…हम मुस्लिम लीग के साथ हम एक लम्बे हिंसक संघर्ष में फंस जाएंगे। जिसका फायदा उठा कर ब्रिटिश सरकार हमारे ऊपर राज करती रहेगी।‘
मुस्लिम लीग सरकार में शामिल हुई, गांधी ने सोचा अब समस्या खत्म
इससे पहले की कहानी यह है कि अंतरिम सरकार को 2 सितंबर 1946 को बन गई लेकिन मुस्लिम लीग शामिल हुई अक्टूबर में। और जबमुस्लि लीग सरकार में शामिल हुई तो महात्मा गाधी ने सोचा कि मेरा काम समाप्त हो गया।गांधी जी वर्धा की तैयारी कर रहे थे, लेकिन जब उनको नोवाखाली की हिंसा सूचनाएं मिलीं तो वर्धा जाना उन्होंने रद् किया और नोवाखाली चले गए।
मुस्लिम लीग से मिले अनुभव को देखते हुए पटेल ने फैसला किया
भारत की अंतरिम सरकार के दौरान मुस्लिम लीग के अनुभव को देखते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने निर्णय लिया कि अगर भारत को बचाना है, स्वतंत्रता हासिल करनी आजादी लेनी है जो कुछ भी जैसे मिलती है- वो लेनी है और उसके लिए भारत का बंटवारा जरूरी है। बंटबारा हुआ।
भारत के विभाजन की वास्तविकता और उसके परिणामों पर सावधानी पूर्वक विचार किए जाने का यह सही समय है। भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार कौन यह एक भ्रम बना हुआ है- हम उस भ्रम को तोड़ें कैसे उस भ्रम को प्रोफेसर इश्त्याक अहमद की किताब ने तोड़ दिया है। बस, हमें उसे पढ़ना और समझना है। जिन्नाह पर लिखे गए एक पोथे के अध्याय ’11 अगस्त 1947’को ही पढ़ लीजिए सारे भ्रम टूट जाएंगे।
जिन्नाह का असली चेहरा
प्रो इश्तियाक अहमद ने वो किताब प्राइमरी सोर्स के आधार पर लिखी है। वो साबित करती है कि क्या वास्तव में अखण्ड भारत चाहते थे? क्या जिन्ना भारत की सरकार में साझेदारी चाहते थे? वो किताब बताती है कि जिन्ना का असली चेहरा क्या है।
1930 में नेहरू ने मुस्लिम लीग को सत्ता की हिस्सेदारी से वंचित किया। लेकिन पाकिस्तान बनेगा और भारत का बंटवारा होगा यह न तो नेहरू ने सोचा था न गांधी ने और न इस देश के लोगों ने सोचा था। गांधी जिन्नाह को आखिरी क्षण तक समझाते रहे। लेकिन जिन्नाह को अखण्ड भारत की सत्ता में साझीदारी चाहिए ही नहीं थी।
झूठ मिटाना होगा, गांधी की विफलता को नहीं जिन्नाह की चालबाजियों को समझना होगा
पाकिस्तानी मूल की अमेरिकन लेखक आइशा जलाल ऐसा तर्क गढती हैं, और कहती हैं कि भारत को एक रखने के जिन्नाह के प्रयास निर्थक रहे तो उन्होंने थक हार कर मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान बनवाया। आयशा जलाल का यह तर्क झूठ है सरासर झूठ है। इस झूठ को मिटाना होगा। इस झूठ को गांधी विफलता से नहीं जिन्नाह की चालबाजियों और षडयंत्र के नजरिए से देखना होगा।