भले ही युद्ध रूस और यूक्रेन के बीच हो रहा हो लेकिन इसका असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। जहां इन दोनों देशों के युद्ध के बीच दुनिया में ईंधन महंगा हुआ है। तो इस बीच एक और बवाल पैदा होते दिख रहा है। दरअसल, पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देशों के संगठन (OPEC Plus) ने अमेरिकी विरोध के बावजूद तेल उत्पादन में कटौती का फैसला किया है। इस दौरान 20 लाख बैरल क्रूड ऑयल की कटौती हर रोज की जाएगी। वहीं विशेषज्ञ का मानना है इस फैसले से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच तनावपूर्ण चल रहे संबंध और भी ज्यादा तनावपूर्ण होंगे। अमेरिका लगातार ओपेक देशों को पेट्रोलियम में कटौती से रोकने के लिए कोशिश करता रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चिंता है कि मिड टर्म इलेक्शन से पहले अमेरिका में पेट्रोल की कीमतों में फिर से बढ़ोतरी हो सकती है। यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस को पेट्रोलियम से होने वाली कमाई को भी अमेरिका सीमित करना चाहता है। अमेरिकी प्रशासन ने हफ्तों तक ओपेक प्लस देशों की पैरवी की। इस मामले से परिचित स्रोतों के मुताबिक हाल के दिनों में अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने समकक्षों से पेट्रोलियम में कटौती के खिलाफ मतदान का आग्रह किया था।
कोई असर नहीं हुआ अमेरिका के दबाव का
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी ब्रेट मैकगर्क और यमन में विशेष दूत टिम लेंडरकिंग के साथ बाइडेन प्रशासन के शीर्ष ऊर्जा दूत अमोस होचस्टीन ने पिछले महीने सऊदी अरब की यात्रा की थी। वहीं, जुलाई में जो बाइडेन ने भी सऊदी अरब की यात्रा की थी। हालांकि इस यात्रा से भी पेट्रोलियम के उत्पादन में कटौती नहीं हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सऊदी अरब ने सीधे कह दिया कि अगर अमेरिका को मार्केट में और तेल चाहिए तो उसे खुद बेचना चाहिए।
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सऊदी अरब का हित सबसे पहले
अमेरिका के ऊर्जा सूचना प्रशासन के आंकड़े के मुताबिक अमेरिका दुनिया में नंबर 1 तेल उत्पादक और इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता है। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री, प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ ने बुधवार को कहा, ‘हम सबसे पहले सऊदी अरब के हितों को लेकर चिंतित हैं। फिर उन देशों के हितों के लिए चिंतित हैं, जिन्होंने हम पर भरोसा किया और ओपेक और ओपेक प्लस देशों के सदस्य हैं।’
युद्ध की वजह से महंगा हुआ तेल
ओपेक प्लस देशों में रूस भी आता है। रूस दुनिया में तेल का एक बड़ा सप्लायर है। लेकिन यूक्रेन के युद्ध के बाद से ही उस पर प्रतिबंध लगा दिए गए। रूस के तेल की सप्लाई कम होते ही दुनिया भर में तेल की कीमतें बढ़ गईं। भारत और चीन जैसे देश बिना डॉलर के रूस से तेल खरीद रहे हैं। अमेरिका की इच्छा थी कि तेल की सप्लाई बढ़ा कर रूसी तेल के दाम को कम किया जा सके।