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क़ानून मंत्री का सुप्रीम कोर्ट की 4 क्षेत्रीय बेंच बनाने की योजना का ख़ुलासा

केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को जम्मू विश्वविद्यालय में भारत के संविधान के डोगरी संस्करण के पहले संस्करण का विमोचन किया

अहमद अली फ़ैयाज़ प्रकाशित

श्रीनगर: केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय की चार क्षेत्रीय पीठों के निर्माण की अपनी योजना का ख़ुलासा किया, जिससे देश के न्याय प्रशासन में कई मूलभूत परिवर्तन होंगे।सुप्रीम कोर्ट की उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम बेंच बनाने की रिजिजू की यह योजना भारत के लोगों के लिए न्याय को और अधिक सुलभ बना सकती है और अंततः उच्च न्यायालयों के संगठन में कुछ संरचनात्मक परिवर्तन ला सकती है।

जम्मू विश्वविद्यालय में भारत के संविधान के पहले डोगरी संस्करण को जारी करने के बाद एक सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा, “इसी तरह के चलन को बाद में उच्च न्यायालय और यहां तक कि निचली अदालतों में भी लागू किया जा सकता है, ताकि ये अदालतें भी चार दीवारों से परे हों…लोग जम्मू में बैठकर सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर कर सकें।’

उन्होंने इस बात का ख़ुलासा किया कि व्यवस्था में बदलाव लाने की क़वायद चल रही है। इस अवसर पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कोटेश्वर सिंह भी उपस्थित थे।

रिजिजू ने सभी अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मेडिएशन बिल अपने अंतिम चरण में है। “हम चाहते थे कि यह बिल संसद के बजट सत्र (जो गुरुवार को समाप्त हुआ) में पेश किया जाए, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सके। अब यह विधेयक संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

अगस्त 2019 या भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सीधे तौर पर उल्लेख किए बिना रिजिजू ने बल देकर कहा कि जम्मू और कश्मीर में स्थिति “भारत के अन्य हिस्सों की तरह ही अच्छी है”। उन्होंने कहा, “यह प्रधानमंत्री का सोचा-समझा फ़ैसला था,” उन्होंने सुरक्षा बलों, सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों सहित ज़मीन पर इसे लागू करने वालों की सराहना की। उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील केंद्र शासित प्रदेश में न्यायपालिका के कामकाज की समान रूप से प्रशंसा की।

रिजिजू ने कहा “लंबित मामले अब 5 करोड़ के आंकड़े को छू रहे हैं, जो कि एक चिंता का विषय है। वर्चुअल अदालतें और क्षेत्रीय पीठें आ सकती हैं। मैंने जम्मू-कश्मीर को लेकर प्रतिबद्ध हूं कि यहां की सभी अदालतों में सभी आधुनिक सुविधायें होनी चाहिए।” बाद में एक ट्वीट के माध्यम से ई-कोर्ट के लिए 7,000 करोड़ रुपये का बजट दिये जाने की बात भी कही। रिजीजू ने बाद में एक ट्वीट में कहा,”यह अदालतों को काग़ज़ रहित बना देगा।”  उन्होंने कहा कि यूपी जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य में सुनवाई की तारीख़ के लिए लोगों को सालों-दशकों तक इंतज़ार करना पड़ता था।

“यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, आज का दिन एक यादगार दिन है। मैं सोचता हूं कि आम आदमी को न्याय कैसे मिल सकता है। पीएम मोदी ने कहा है कि औपनिवेशिक व्यवस्था को साफ़ करना होगा। यह नरेंद्र मोदी के पंच प्रणों में से एक है। उन्होंने कहा कि भाषा के रूप में अंग्रेज़ी का बने रहना एक वास्तविकता थी, लेकिन डोगरी जैसी मातृभाषाओं में शिक्षा और साहित्य- जो अब आठवीं अनुसूची में शामिल है- भी अनिवार्य था।

“देर हो चुकी है, क्योंकि संविधान में राज्य की भाषा चुनने का प्रावधान किया गया है। क़ानून मंत्री के रूप में मुझे लगता है कि बहुत देर हो चुकी है। हमारे विभाग ने आम लोगों के लिए क़ानूनी शब्दावली के 65,000 शब्दों का डिजिटलीकरण किया है, जो कि नियमित रूप से उपयोग किए जाते हैं। हम क्लाउड-सोर्सिंग कर रहे हैं। हमने अदालतों से कहा है कि अपनी भाषा में काम करें। भविष्य में हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा ही हो। हम इसे हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।’

मंत्री ने विस्तार से बताया कि निचली न्यायपालिका में बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए 9,000 करोड़ रुपये और ई-कोर्ट परियोजना के लिए 7000 करोड़ रुपये का उद्देश्य न्याय वितरण की प्रक्रिया को आसानी से सुलभ और स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि वह समय दूर नहीं, जब ई-न्यायालय परियोजना के तीसरे चरण के पूरा होने के बाद अदालतें पूरी तरह काग़ज़ रहित हो जायें। उन्होंने कहा कि इस परियोजना ने कोविड-19 महामारी के दौरान अदालतों के कामकाज में काफ़ी मदद की है।

केंद्रीय मंत्री ने उन युवा वकीलों की बहुत प्रशंसा की, जिन्होंने लोगों को मुफ़्त न्याय प्रदान करने में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने में योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि नि:शुल्क की अवधारणा एक अद्भुत लक्ष्य है और जनता के व्यापक हित के लिए इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रतिबद्ध वकीलों को भी अपनी सेवाओं का विस्तार करने में योगदान देना चाहिए। उन्होंने बल देकर कहा कि न्यायपालिका के पास भाषण की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और राष्ट्र की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के बीच संतुलन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य है।