शहबाज़ शरीफ़ सरकार 6.5 बिलियन डॉलर के ऋण कार्यक्रम को फिर से शुरू करने के लिए अभी तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ किसी समझौते पर पहुंचने में कामयाब नहीं हो पायी है।यह स्थिति शर्मिंदगी की इसलिए होगी, क्योंकि बहुपक्षीय ऋणदाता पशोपेश में है। आईएमएफ ने अब संकेत दे दिया है कि वह देश के बजट की तैयारी पर पाकिस्तान के साथ काम तो करेगा,लेकिन इसके लिए उसे ऐसी क़वायद करनी पड़ेगी,जो कि ऋण कार्यक्रम का हिस्सा नहीं रहा है। इस रुख़ में बदलाव ने देश के नीति निर्माताओं को नाराज़ कर दिया है।
यह ख़ासकर आम चुनाव के क़रीब होने से सरकार के लिए भी शर्मिंदगी का कारण बन रहा है। स्थानीय अख़बार डॉन ने कहा है कि इस्लामाबाद और आईएमएफ़ के बीच नज़रिए में फ़र्क़ को लेकर मतभेद हैं। समाचार संगठन ने कहा है, “यह भी तुरंत स्पष्ट नहीं है कि ऋणदाता बजट की उस तकनीकी तैयारी पर क्यों काम करना चाहता है, जो कि इस कार्यक्रम में शामिल ही नहीं है।”
पाकिस्तान, आईएमएफ के शीर्ष कर्जदारों में से एक है और कई महीनों से इस बहुपक्षीय एजेंसी के साथ बातचीत कर रहा है। यहां तक कि दोनों के बीच अब भी किसी समझौते पर पहुंचना बाक़ी है। अप्रैल में पाकिस्तान की मुद्रास्फीति की दर श्रीलंका के 35.3 प्रतिशत से बढ़कर 36.4 प्रतिशत हो गयी। हालांकि, आईएमएफ द्वारा निर्धारित कठोर शर्तें आने वाले महीनों में चीज़ों को और ख़राब कर देंगी। सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है कि क़ीमतें और बढ़ेंगी।
मार्च में पाकिस्तान में खाद्य मुद्रास्फीति 2022 में इसी महीने की तुलना में 47.15 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी
देश के सार्वजनिक थिंक टैंक- पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स (पीआईडीई) के अनुसार, आईएमएफ़ की सहायता से इस्लामाबाद को संकट से बाहर निकलने में मदद करने की संभावना नहीं है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च कर लगाने और ब्याज़ दरों में वृद्धि करने का आईएमएफ़ का सामान्य नुस्खा दोषपूर्ण है।
एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया,”आईएमएफ ने अपने वित्तीय सहायता कार्यक्रम के हिस्से के रूप में जो सामान्य नुस्खा पेश किया है, वह अक्सर चीज़ों को देखने का सही तरीक़ा नहीं है। प्रत्येक देश अनूठा होता है और एक आकार में सभी देशों में एक ही समाधान को फिट करने की कोशिश ख़तरनाक़ हो सकती है।”
पाकिस्तान ने 20 से ज़्यादा बार आईएमएफ़ से मदद मांगी है। लेकिन, स्पष्ट रूप से इस दक्षिण एशियाई राष्ट्र की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। पाकिस्तान के लिए आईएमएफ़ ऋण कार्यक्रम को “अंतिम समाधान” के रूप में देखते हुए इस्लामाबाद के साथ समस्या कई गुना बढ़ गयी है।
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ़ ने वित्तीय सहायता कार्यक्रम को जारी रखने के लिए आईएमएफ़ राइडर्स को “कल्पना से परे” क़रार दिया था।
शरीफ़ ने टेलीविज़न टिप्पणियों में कहा था, “मैं उस व्योरे में नहीं जाऊंगा, लेकिन केवल इतना कहूंगा कि हमारी आर्थिक चुनौती अकल्पनीय है। आईएमएफ़ के साथ हमें जिन शर्तों पर सहमत होना होगा, वे कल्पना से परे हैं। लेकिन, हमें इन शर्तों से सहमत होना होगा।”
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि पाकिस्तान आईएमएफ़ ऋण को तुरुप का पत्ता नहीं मान सकता। एक देश आईएमएफ़ से सहायता तभी मांगता है, जब आर्थिक संकट तत्काल दुरुस्त होने से परे हो जाता है। विश्लेषक का कहना है, “इसलिए आर्थिक संकट को ठीक करने की ज़रूरत है, आईएमएफ़ ऋण सौदा हासिल करना सिर्फ़ एक राहत है और समाधान नहीं है, यह समस्याओं को उजागर करता है..और समस्याओं को समाधान की ज़रूरत है … यह पाकिस्तान के लिए एक महज़ विकल्प है।”