Success Story: मंजिल आखिर उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में दम होती हैं। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान से होती है। ये पंक्तियां उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के रहने वाले एक मजदूर के बेटे मुक्तेंद्र कुमार ने सच कर दिखाया है जिन्होंने छत से टपकते घर में रहकर UPSC की सिविल सेवा परीक्षा पास कर 819वीं रैंक हासिल की. उनके संघर्ष की कहानी दूसरे युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
पिता करते हैं मजदूरी
बिजनौर के नूरपूर शहर के पास स्थित एक छोटे से गांव सैदपुर में दलित समाज से आने वाले मुक्तेंद्र के लिए बड़े सपने देखना और फिर उसे पूरा करना आसान नहीं था। टूटे-फूटे घर, बारिश में टपकती छत और आर्थिक तंगी के बावजूद मुक्तेंद्र कुमार ने यूपीएससी की परीक्षा क्रैक करने का सपना देखा। वे कुछ बनकर अपने परिवार की हालत को सुधारना चाहते थे। हिंदी मीडियम छात्र मुक्तेंद्र पहले एसएससी की परीक्षा के बारे में ही जानते थे, लेकिन जब उन्हें यूपीएससी के बारे में पता चला तो उन्होंने इसको अपना लक्ष्य बना लिया। मुक्तेद्र के पिता मजदूरी करते हैं। वो ईंट भट्ठा पर काम करके किसी तरह परिवार का लालन पोषण करते हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद मुक्तेंद्र ने अपनी मंजिल पा लेने तक हार नहीं मानी।
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क्या बोले मुक्तेंद्र कुमार?
मुक्तेंद्र कुमार कहते हैं, हम उस पृष्ठभूमि से आते हैं जहां सपने देखना एक बड़ी बात है। पहले मैं सिर्फ एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) के बारे में जानता था। लेकिन जब मुझे यूपीएससी के बारे में पता चला तो मैंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लिया। वो तीन साल से लगातार UPSC की तैयारी कर रहे थे। अपने दूसरे प्रयास में इस साल मुक्तेंद्र ने यूपीएससी क्लियर कर परिवार और दलित समाज का नाम रौशन कर दिया। उनका कहना है कि उनके आसपास के परिवेश ने कामयाब होने के उनके संकल्प को और मजबूत बनाने का काम किया। इसके अलावा मुक्तेंद्र कहते हैं कि एक रात, बारिश हो रही थी और मैंने देखा कि मेरी मां कच्चे छत से रिस रहे पानी को फैलने से रोकने के लिए फर्श पर बर्तन रख रही थी। उस दिन, मैंने फैसला किया कि मैं अपने घर की हालत बदल दूंगा।
परिवार की माली हालत ने मुक्तेंद्र को मोटिवेट किया कि वो परिवार के लिए कुछ करें और मां बाप की परेशानियों का हल ढूंढ सकें। मुक्तेंद्र उन सभी यूपीएससी की तैयारी कर रहे लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है, जो साबित करते हैं कि कड़ी मेहनत से आप सब कुछ हासिल कर सकते हैं, चाहे हालात कैसे भी हों।