MQ-9B: चीन के साथ खराब होते रिश्तों के बीच भारत ने अमेरिका के साथ 3 अरब डॉलर की रक्षा डील की है। भारत ने अमेरिका के जनरल एटॉमिक्स कंपनी से सी गार्डियन ड्रोन MQ 9B का समझौता किया है। वहीं, रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने इस डील को 15 जून को मंजूरी दे दी है। मालूम हो कि भारत और चीन के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चाहे वह एलएसी (LAC) पर गलवान वैली क्लैश हो या अरुणाचल प्रदेश में सीमा विवाद हो। उसके बाद चीन ने भारत के समुद्री इलाकों में अपनी गतिविधियां बढ़ाई है। इसके बाद से स्थल सीमा के साथ-साथ भारत ने अपनी समुद्री ताकत को बढ़ाने पर काफी जोर दिया है। भारत की समुद्री ताकत बढ़ाने में ये अमेरिकी Predator Drone MQ 9B काफी मदद करेगा।
कितनी अहम है अमेरिका से होने वाली प्रिडेटर ड्रोंस की ये डील?
सबसे पहले देखिए, दक्षिण एशिया में आज भारत एक बहुत अहम राष्ट्र के रूप में उभर चुका है। आपको याद होगा कि विश्व के 40 देशों वाले इस क्षेत्र को पहले अमेरिका पैसिफिक कमांड बोलता था। लेकिन उसको पता चला कि इंडियन ओशन रीजन कोको आइलैंड से शुरू होता है, सिंगापुर के वेस्ट से और अरेबियन सागर के वेस्ट में खत्म होता है। इसका नाम उसने अभी इंडो पैसिफिक कमांड कर दिया है। अब आप इसको खुद समझ सकते हैं की यूएसए, भारत को स्ट्रैटिजिक लिहाज से कितना महत्व देता है।
दूसरी बात है कि भारत की कोस्टलाइन 7517 किलोमीटर है। इसमें हमारी जो आइलैंड टेरिटरिज हैं, वो भी शामिल हैं। ये जो डील होने वाली है, जो आप प्रिडेटर MQ9B रीपर की बात कर रहे हैं, इसके दो और वर्जन हैं। एक है स्काई गार्जियन और दूसरा है सी गार्जियन। अमेरिका इनको हमें देने के लिए दिलचस्पी दिखा रहा है। भारत ड्रोन 15 लेने की चाह में है अमेरिका से और एक ड्रोन की कीमत 2635 लाख रुपये है। इसको आप अगर 15 ड्रोन से गुणा कर लेते हैं तो आप समझ लीजिए कि यूएस को इससे कितना फायदा हो रहा है।
यूएस तो बिजनेस कंट्री है। यूएस छोटी-मोटी चीज नहीं बनाता, वो हथियार बेचता है, बड़े-बड़े जेट एयरक्राफ्ट बनाता है, अर्थ मूविंग प्लान बनाता है। यूएस की दो चीजें हैं यहां पर, एक तो ये इंडो पैसिफिक कमांड है। क्वॉड कंट्रीज भी हम उन्हें बोलते हैं। इसमें भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूएस हैं। इसमें इंडिया की भागीदारी बहुत ज्यादा है। इसलिए वो हमको आज पूरे विश्व के सामने काफी महत्व दे रहा है।
यही अमेरिका है, जिसने हमें 1971 में बड़ा परेशान किया था, बल्कि बंगाल की खाड़ी में सेवंथ फ्लीट को ले आया था। ये चीजें चलती रहती है क्योंकि हर राष्ट्र के विश्व में अपने-अपने सर्वोच्च हित रहते हैं। आज चीन के खिलाफ उसका हित है। अभी आप देख रहे हैं कि अमेरिका और उसके साथी देश चाह रहे हैं भारत नैटो का भी सदस्य बन जाए। इंडियन ओशन रीज़न और इंडो पैसिफिक कमांड में भारत का एक प्रमुख बहुत स्थान है। इसलिए आज ये डील हमारे लिए अहम है। ये इसलिए कि हमारे जो कोस्टल रीजन हैं इसको देखने के लिए अभी हमारे पास अभी सिर्फ दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं।
एक आईएनएस विक्रमादित्य है और एक आईएनएस विक्रांत है। तीसरा अभी बनेगा। हम कम से कम ये चाहते हैं कि इंडियन ओशन में हमारे दो एयरक्राफ्ट कैरियर रहें। आज भी आप देखेंगे कि हमारा अभ्यास कहीं न कहीं नेवी या आर्मी या एयरफोर्स के साथ होता रहता है। लोग अभी यही समझ रहे हैं कि ये डील नेवी के लिए है। लेकिन प्रिडेटर ड्रोन्स कहीं भी हमारी सीमा में काम करेंगे।
कितना खतरनाक है यह ड्रोन
एमक्यू 9 बी (MQ-9B) सी गार्डियन या प्रीडेटर ड्रोन को दुनिया का सबसे घातक ड्रोन माना जाता है। यह ड्रोन बड़े-बड़े समुद्री अभियानों के दौरान मानव रहित विमान मल्टी-रोल और मल्टी-डोमेन कार्य करने में काफी सक्षम है। यह ड्रोन इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह किसी मौसम और किसी भी स्थिति में 30 घंटे से अधिक समय तक उपग्रह के माध्यम से उड़ान भर सकता है। इस सी गार्डियन को उन्नत समुद्री ख़ुफ़िया निगरानी और टोही क्षमताओं विकसित किया गया है। यह समुद्र के सतह के ऊपर और नीचे रियल टाइम पर खोज और गश्त करने में सक्षम है।
यह MQ 9B रीपर ड्रोन एजीएम-144 हेलफायर मिसाइल, लेजर गाइडेड बम समेत कई प्रकार के हथियारों को ले जाने में सक्षम है। इसकी स्पीड 240 नॉट्स से एयर स्पीड (KTS) है। इसमें 1746 किलोग्राम पेलोड क्षमता है, जिसमें 1361 किलोग्राम बाहरी स्टोर शामिल हैं। सी गार्डियन इंटेलीजेंस, निगरानी और टोही की क्षमता है। यह एंटी-सरफेस युद्धक और एंटी-सबमरीन अभियान चलाने में सक्षम है। एयरबॉर्न माइन काउंटर करने और लंबी दूरी की रणनीतिक अभियान चलाने में सक्षम है।
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इसके अलावा ये इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और हवा में रक्षात्मक काउंटर में काफी सक्षम है. ये प्राकृतिक आपदा में मानवीय सहायता और एजेंसियों को मदद करने में सक्षम है। दुनिया के सबसे खतरनाक अमेरिकी ड्रोन की डील के बाद भारत की समुद्र में ताकत बढ़ेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि इस ड्रोन की डील अमेरिका किसी भी देश के साथ नहीं करता है, बल्कि अपने करीबी मित्र राष्ट्रों के साथ करता है। भारतीय समुद्री क्षेत्रों चीन की बढ़ती गतिविधियों और खतरे को देखते हुए भारत ने अमेरिका के साथ ये ड्रोन डील की है।