भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान पर अमेरिका (America-Pakistan) फिर मेहरबान होता नज़र आ रहा है। जी हाँ, अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ गुपचुप तरीके से सीक्रेट डील फाइनल कर दी है। पाकिस्तान की शहबाज सरकार ने गुपचुप तरीके से बैठक करके अमेरिका के साथ इस सुरक्षा समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है। अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ 15 साल के लिए CISMOA सुरक्षा समझौता किया है। इससे पहले अमेरिका ने साल 2018 में भारत के साथ भी इसी तरह की डील की थी। इस डील के बाद अब पाकिस्तान के लिए अमेरिका से घातक हथियार पाने का रास्ता साफ हो गया है।
पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका अपने उन करीबी दोस्त देशों और सहयोगियों के साथ यह समझौता करता है जिनके साथ वह करीबी सैन्य और रक्षा सहयोग बढ़ाना चाहता है। इसका नाम कम्युनिकेशन इंटरऑपरेबिलिटी एंड सिक्यॉरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट या CISMOA है। यह अमेरिका के रक्षा मंत्रालय को दूसरे देशों को सैन्य हथियार और उपकरण बेचने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है। हालांकि अभी तक इस समझौते का न तो अमेरिका ने और न ही पाकिस्तान ने ऐलान किया है।
शहबाज सरकार के एक कैबिनेट सदस्य ने इस समझौते (America-Pakistan) को मंजूरी मिलने को पुष्टि की। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि पूरी कैबिनेट इस समझौते को मंजूरी दी है या नहीं। इस समझौते पर हस्ताक्षर होने का मतलब है कि दोनों देश संस्थागत तंत्र बनाए रखने के लिए इच्छुक हैं। इससे पहले साल 2005 में अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ साल 2020 तक के लिए इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। यह समझौता खत्म हो गया था लेकिन अब दोनों ही देशों ने फिर से इसे मंजूरी दे दी है।
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इस समझौते के तहत दोनों देश संयुक्त अभ्यास, अभियान, ट्रेनिंग, एक-दूसरे के बेस और उपकरण का इस्तेमाल कर सकेंगे। रिपोर्ट में अमेरिका के एक सूत्र के हवाले से दावा किया गया है कि इस समझौते से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका आने वाले वर्षों में पाकिस्तान को कुछ घातक हथियार बेच सकता है। वहीं पाकिस्तानी सेना के एक रिटायर सैन्य अधिकारी ने इस घटनाक्रम को कम करके पेश करने की कोशिश की। अमेरिका के साथ काम कर चुके इस पूर्व सैन्य अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि यह पाकिस्तान के लिए आसान नहीं है कि वह अमेरिका के साथ हथियार खरीद सके।
भारत के लिए बढ़ेगा खतरा?
पूर्व सैन्य अधिकारी का इशारा भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती रणनीतिक भागीदारी की ओर था। उन्होंने कहा कि अमेरिका के लंबे अवधि के हित पाकिस्तान के साथ नहीं जुड़े हैं। इसके बाद भी अमेरिका को कुछ जटिल क्षेत्रों में बहुत जरूरत है, इस वजह से यह समझौता किया गया है।