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धार ने दी खुशखबरी! नदी किनारे मिले डायनासोर के साढ़े 6 अरब वर्ष पुराने अंडों के जीवाश्म

धार ने फिर दी खुशखबरी

Good News: आज भी हमारे पास इतिहास वही हैं जो हमें खदानों और गुफाओ से प्राप्त हो रहा हैं। इस बीच कभी किसी जानवर के अवशेष तो कभी व्यक्ति या गांव के रहन सहन के तरीके इसी से बस हम अंदाजा लगा लेते हैं कि पहले के जमाने में क्या हुआ करता था, जिसकी जानकारी कई एस्ट्रोनॉड्स लगा लेते हैं और उन्ही की मदद से हम इतिहास जान पाते हैं उसे पढ़ पाते हैं। इस बीच फिर से धार खुशखबरी दे रहा है।

दरअसल, यहां फिर से डायनासोर के अंडों के जीवाश्म मिले हैं। ये पता चलते ही वन विभाग का अमला सक्रिय हो गया है और अब इन फासिल्स की जाँच करवायी जा रही है, जिसके बाद कई सारी बड़ी जानकारियां हाथ लगने की आशंका हैं। धार में पहले भी डायनासोर के अंडो के फॉसिल्स मिल चुके हैं। इसलिए वन विभाग बाग में डायनासोर जीवाश्म पार्क बनवा रहा है। नये फॉसिल्स मिलने के बाद वन विभाग के अमले के साथ ही डायनासोर में रुचि रखने वाले लोगों में उत्साह देखा जा रहा है। वन विभाग के उपमंडलाधिकारी संतोष रणछोरे का कहना है पिछले कुछ महीनो से डायनासोर के अंडों के नये जीवाश्म के लिये जाँच और सर्चिंग की जा रही थी। इसके लिये वनविभाग के अमले के साथ ही डायनासोर के विशेषज्ञ भी जांच मे जुटे हुए थे। अब इस काम में सफलता मिली है। रणछोरे का कहना है ऐसा अनुमान है कि ये मांसाहारी डायनासोर के अंडे हो सकते हैं।

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डायनासोर के अंडे के 25 जीवाश्म पाए गए

बीते कुछ दिनों में बाघ गांव में बाघैन नदी के किनारे तीन स्थानों पर डायनासोर के अंडे के 25 जीवाश्म पाए गए हैं। रणछोरे ने यह भी कहा कि नए खोदे गए अंडों के जीवाश्म जनवरी में पाए गए गुच्छों से आकार में भिन्न हैं और इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये एक अलग डायनासोर नस्ल के हैं, जो संभवतः मांसाहारी हैं। अनुमान के मुताबिक ये 6.5 अरब साल पुराने हैं। लेकिन जांच के बाद तक सबकुछ स्पष्ट नहीं हो पाएगा। इनका निरीक्षण चंडीगढ़ और लखनऊ की शोध सुविधाओं में किया जाएगा।

वहीं, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक समूह ने 2021 में कहा था कि उन्हें एक जीवाश्म अंडे के भीतर एक पूरी तरह से संरक्षित भ्रूण मिला है जो कि लगभग तैयार था। वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार, यह नमूना, जिसकी उत्पत्ति 66 मिलियन वर्ष से अधिक है, अब तक खोजा गया सबसे व्यापक नमूना है। भ्रूण के भीतर के नमूने को “बेबी यिंगलियांग” उपनाम दिया गया था और इसे दक्षिणी चीन के गंझोउ में खोजा गया था।