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राज्यों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक निवेश और भारत का संघीय मॉडल

निवेश को आकर्षित करने की स्वस्थ दौड़ में भारतीय राज्य (फ़ोटो: सौजन्य: MEA-https://indbiz.gov.in/trade/)

Federalism And Investment:बमुश्किल 20 साल पहले गुजरात भारत का एकमात्र ऐसा राज्य था, जो वाइब्रेंट गुजरात ब्रांड के तहत नियमित निवेश शिखर सम्मेलन आयोजित करता था। 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गयी वह प्रवृत्ति अब लगभग सभी राज्य सरकारों के लिए एक आदर्श बन गयी है, क्योंकि वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से निवेश का बड़ा हिस्सा हासिल करने के लिए खुद को आकर्षक निवेश स्थलों के रूप में दिखाते हैं।

जहां उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने फ़रवरी में वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन आयोजित किया था, वहीं आंध्र प्रदेश ने मार्च में इसी तरह का आयोजन अपने यहां किया। और अब एकनाथ शिंदे सरकार अक्टूबर में ‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र’ निवेश शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने की तैयारी कर रही है। पश्चिम बंगाल नवंबर में ग्लोबल बिजनेस समिट का सातवां संस्करण भी आयोजित करेगा। इसी तरह, दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, 2015 में पहला बिजनेस शिखर सम्मेलन शुरू करने के बाद जनवरी 2024 में इसी तरह का अपना ख़ुद का आयोजन करेगा।

इस साल मई में इकोनॉमिस्ट ने अज्ञात पत्रकारों के हवाले से एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि इन निवेश शिखर सम्मेलनों से बहुत कम लाभ हुआ है, क्योंकि “आने वाला वास्तविक निवेश घोषित आंकड़ों का एक अंश – आमतौर पर एक चौथाई से एक तिहाई  है।”

बहरहाल, पत्रिका ने स्वीकार किया है कि भारत के कई राज्यों में निवेश शिखर सम्मेलन विपणन के लिए एक आदर्श मंच के रूप में काम करते हैं, जो देश के संपन्न “प्रतिस्पर्धी संघवाद” को प्रदर्शित करते हैं, साथ ही ज़मीनी स्तर की तस्वीर की बेहतर समझ देते हैं।

हालांकि, बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच मोदी और उनकी टीम भारत को अगले निवेश गंतव्य केंद्र के रूप में आक्रामक रूप से पेश कर रही है, लेकिन अंततः राज्यों को ही निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है।

एक सरकारी अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “राज्य सरकारों की संस्कृति और मानसिकता में भारी बदलाव आया है। वे अब निवेश का बड़ा हिस्सा पाने के लिए एक-दूसरे के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में हैं।” अधिकारी ने आगे कहा कि निवेश – चाहे घरेलू हो या विदेशी, अंततः राज्यों के पास जाना होगा। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि वे आवश्यक कार्य करें और निवेश को बढ़ावा दें। आज राज्यों के बीच स्वस्थ और बहुत आवश्यक प्रतिस्पर्धा है और यही आगे बढ़ने का रास्ता है।

1991 के आर्थिक सुधारों के बाद राज्य सरकारें अपने स्वयं के व्यावसायिक नियमों और रूपरेखाओं को निर्धारित करने के लिए पर्याप्त शक्ति से लैस हो गयी हैं, जिसमें निवेश आकर्षित करने के लिए नए उद्यमों और परियोजनाओं के लिए अनुमोदन समय, श्रम और भूमि पर नीतियां शामिल हैं।

विनिर्माण पर ज़ोर दिये जाने के साथ-साथ मेक इन इंडिया और पीएम गति शक्ति- विशाल बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स कनेक्टिंग ड्राइव सहित योजनाओं के साथ-साथ केंद्र द्वारा नीतिगत सुधारों की झड़ी ने भी निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है। अधिकारी ने बताया, ”ये योजनायें अनुकूल कारोबारी माहौल के लिए सहायक हैं, राज्यों को अब इन पर काम करने की ज़रूरत है।”

एसएंडपी ग्लोबल ने एक रिपोर्ट में बताया कि अगले दशक में भारत की संभावित वृद्धि उसके विविध राज्यों और संवैधानिक रूप से अनिवार्य मज़बूत केंद्र सरकार के साथ उनके तालमेल से तय होगी।

भारतीय राज्यों के विकास के अनूठे रास्ते उनके भविष्य के सुधारों और विकास को प्रभावित करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी. क्योंकि देश में श्रमिकों और उपभोक्ताओं की विशाल और बढ़ती आबादी देश में निवेशकों की रुचि बढ़ाती है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश की इच्छुक

पिछले साल के अंत में जारी भारतीय उद्योग परिसंघ और ऑडिट फर्म ईवाई द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि सर्वेक्षण में शामिल 71 प्रतिशत बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं के लिए भारत में निवेश पर विचार करने को तैयार थीं।

कहा गया है,“भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एक उभरते हुए विनिर्माण केंद्र के रूप में, बढ़ते उपभोक्ता बाजार के रूप में और चल रहे डिजिटल परिवर्तन के केंद्र के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, तेजी से बदलते भू-राजनीतिक माहौल में, भारत के बड़े और स्थिर लोकतंत्र और लगातार सुधार उपायों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मान्यता प्राप्त है।”

दिलचस्प बात यह है कि जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (जेट्रो) के एक अध्ययन से भी पता चला है कि 72 प्रतिशत से अधिक जापानी कंपनियां भारत में अपने परिचालन का विस्तार करने की इच्छुक थीं। चीन के लिए यह संख्या केवल 33.4 प्रतिशत से कम थी।

एसएंडपी के अनुसार, अगर भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के साथ-साथ ऊर्जा संक्रमण और कृषि में अपने लक्ष्यों को साकार करना है, तो शहरों, राज्यों और केंद्र सरकार के बीच आपसी समर्थन और समन्वय आवश्यक होगा। इसमें कहा गया है, “विचार-विमर्श और उद्देश्य के साथ इस गतिशीलता को आगे बढ़ाने से भारत को इस समय का फायदा उठाने में मदद मिलेगी।”

 

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