भारत में एनडीए सरकार आने के बाद देश के विकास के लिए कई नए प्रयोग हुए हैं। वोकल फॉर लोकल का नारा भी खूब चला है। आयुष्य-आयुर्वेद के अलावा अल्टरनेटिव मेडिसिन के क्षेत्र में भी काफी विकास हुआ है। कहा जाता है कि जिस देश के लोग जितने स्वस्थ्य होंगे वो राष्ट्र उतनी ज्यादा समृद्ध होता है। उतना ज्यादा ही विकास करता है। शायद मोदी सरकार में एलोपैथिक ट्रीटमेंट के साथ-साथ देसी जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न रोगों के उपचार को मान्यता दी जा रही है। इसके अलावा भी कई पद्यतियां हैं जिनसे विभिन्न रोगों का उपचार किया जाता है। जिन्हें अल्टरनेटिव थैरेपी भी कहा जाता है। ऐसे ही थैरेपियों में एक थैरेपी है एक्यूपंक्चर थैरेपी।
एक्यूपंचर थैरेपी में शरीर के कुछ खास बिंदुओं पर सुईयों को चुभो कर इलाज किया जाता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्युमन सर्विसेज ने एक्यूपंक्चर थैरेपी को एलोपैथी के समक्ष मान्यता दी है। अमेरिका में कैंसर से पीड़ित मरीजों के इलाज में एक्यूपंचर से इलाज की सलाह बहुतायत में दी जाती है। अमेरिका के नेशनल केंसर इंस्टीट्यूट की वेबसाइट ने कंपलीमेंटरी एंड अल्टरेनेटिव मेडिसिन कैटेगरी में एक्यूपंक्चर को एक प्रभावी ट्रीटमेंट के तौर पर कैंसर के मरीजों के सामने रखा है। भारत में भी एक्यूपंक्चर का प्रभाव अच्छा खासा है। सामान्य जनमानस के साथ ही भारत के बड़े-बड़े ब्यूरोक्रेट्स, डिप्लोमेट्स ही नहीं बल्कि एलोपैथी की सालों-साल से प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स भी एक्यूपंक्चर थैरेपी से इलाज करते और करवाते हैं। मगर अफसोस है कि भारत सरकार ने अभी तक एक्यूपंक्चर थैरेपी को अल्टरनेटिव थैरेपी के तौर पर भी मान्यता नहीं दी है।
ध्यान रहे, अमेरिका ने एक्यूपंक्चर थैरेपी को यह कह कर मान्यता दी है कि यह थैरेपी रोगियों पर ज्यादा प्रभावी और कम खर्चीली है। अमेरिका की सरकार एक्यूपंक्चर की शिक्षा और शोध पर भी काम कर रही है। अमेरिका में एक्यूपंक्चर थैरेपी की प्रैक्टिस करने लिए कम से कम डिप्लोमा इन एक्यूपंक्चर करना जरूरी होता है। अगर प्रैक्टिशनर चाहे तो वो एक्यूपंक्चर में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। हालांकि, एक्यूपंक्चर को अमेरिका में 1973 में ही अपना लिया था, लेकिन अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने 1996 में एक्यूपंक्चर के लिए रेगुलेशन लागू किया। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की सरकारों ने भी एक्यूपंक्चर के लिए रेगुलेशन बना दिए हैं। रूस, चीन और कोरिया जैसे देशों में एक्यूपंंक्चर काफी पहले अपना लिया गया है।
भारत में भी अपेक्षा की जाती रही है कि अल्टरनेटिव थैरेपी के तौर पर एक्यूपंक्चर पर भी कोई रेगुलेशन लाया जाएगा। एक्यूपंक्चर, न केवल कम खर्चीली है बल्कि इसके साइड इफैक्ट भी न के बराबर हैं। भारत में एक्यूपंक्चर की प्रैक्टिस तमाम लोग कर रहे हैं। इनमें से एक हैं डॉक्टर प्रदीप शर्मा। डॉक्टर प्रदीप शर्मा पिछले लगभग 20 सालों से एक्यूपंक्चर की प्रैक्टिस कर रहे हैं। डॉक्टर शर्मा के क्लाइंट्स में भारत सरकार के कई विभाग, बड़े अफसर, चिकित्सक और धर्म गुरु भी शामिल हैं। इनमें से कुछ चिकित्सक ऐसे हैं जो ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में कार्यरत रहे हैं।
डॉक्टर प्रदीप शर्मा कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली पुलिस, आकाशावाणी में मेडिकल ट्रीटमेंट दिया है। कई विभागों और मीडिया संस्थानों के मेडिकल पैनल में शामिल हैं। उन्हें उनके पारिश्रमिक के बिल वैसे ही पास किए जाते रहे हैं जैसे किसी एमबीबीएस चिकित्सक को उसके पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
डॉक्टर प्रदीप शर्मा कहते हैं कि एम्स के एक पूर्व निदेशक, दिल्ली के एक पूर्व राज्यपाल समेत देश के कई सम्भ्रांत हस्तियों का इलाज एक्यूपंक्चर से किया है। डॉक्टर प्रदीप शर्मा का दावा है कि उन्होंने एक्यूप्रेशर को सरकारी मान्यता दिलाने के लिए ढेर सारे प्रयास किए हैं। काफी खतो-किताबत की है। उन्हें सरकार और संबंधित विभागों की ओर जवाब भी आशाजनक मिले लेकिन एक्यूपंक्चर को मान्यता देने के नाम पर अभी तक किसी ने कुछ नहीं किया है। सवाल यह है कि जब अमेरिका जैसे देश ने अल्टरनेटिव मेडिसिन कैटेगरी में एक्यूपंक्चर को स्वीकार कर लिया है भारत सरकार के सामने ऐसी कौन सी परिस्थिति है जो एक्यूपंचर को मान्यता नहीं दी जा रही है। एक्यूपंक्चर को अपनाने से हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। देश के लोगों को सस्ता असरदार इलाज मिलेगा और नई इंडस्ट्री भी डेवलप होगी।