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Amendment: जम्मू-कश्मीर एलजी के पास होगी कश्मीरी प्रवासियों, पीओके शरणार्थियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 3 विधायकों को नामित करने की शक्ति

मनोज सिन्हा, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल

अहमद अली फ़ैयाज़  

श्रीनगर: क़ानून में संशोधन के लिए संसद में पेश किए जाने वाले एक नए विधेयक के साथ जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को कश्मीरी प्रवासियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक महिला सहित तीन व्यक्तियों को नामित करने की शक्तियां मिलने की संभावना है।

लोकसभा की संशोधित कार्य सूची के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तीन नामांकन सीटें बनाने के लिए जम्मू और कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम, 2019 में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश करेंगे।

जहां केंद्र शासित प्रदेश की विधान सभा में दो नामांकन सीटें 1989 के बाद उग्रवाद के कारण विस्थापित आबादी के लिए होंगी, वहीं एक सीट उन लोगों के प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षित की जा रही है, जो 1947 और उसके बाद तत्कालीन राज्य के पाकिस्तान के कब्ज़े वाले क्षेत्रों से जम्मू और कश्मीर में चले गये थे।

पूर्ववर्ती राज्य विधान सभा में 87 सीटों के लिए चुनाव होते थे। लिंगगत निष्पक्षता का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए राज्यपाल के पास दो महिलाओं को नामांकित करने की शक्ति है। नई यूटी विधानसभा में एलजी के पास अब कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला सहित दो व्यक्तियों को नामित करने की शक्ति होगी, जबकि वह पीओके शरणार्थियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक व्यक्ति को नामित करेंगे।

यह एकदम से स्पष्ट नहीं है कि क्या इन नामांकित विधायकों को सभी क़ानूनों और सरकार के गठन में वोट देने का अधिकार होगा या उनका जनादेश पूर्ववर्ती राज्य विधानसभा के दो नामांकित विधायकों की तरह सीमित होगा।

केंद्र सरकार संसद के मौजूदा मानसून सत्र में जम्मू-कश्मीर से जुड़े चार विधेयक पेश करने जा रही है।

शाह जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन के लिए एक विधेयक भी पेश करेंगे, जो एक राज्य क़ानून है। संसद में ‘अन्य सामाजिक जातियों’ श्रेणी के नामकरण को बदलकर ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ करने के साथ-साथ कुछ और जातियों को शामिल करने के लिए इसमें संशोधन किया जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि 24 सीटें (90 निर्वाचित और 3 नामांकित विधायकों के अलावा) पीओके के लोगों के प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षित रहेंगी और जब कभी वे कब्ज़े वाले क्षेत्र भारत संघ के नियंत्रण और प्रशासन के तहत आयेगे, तब उन्हें चुनाव द्वारा भरा जायेगा।

कार्यक्रम के अनुसार, केंद्रीय जनजातीय मामलों के अर्जुन मुंडा संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश, 1989 में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश करेंगे। संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, 2023, पहाड़ी, पद्दारी, गड्डा ब्राह्मण और कोली जनजातियों को एसटी श्रेणी में शामिल करने का प्रयास करता है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक, 2023 पेश करेंगे, जो वाल्मिकी समुदाय को जम्मू और कश्मीर की अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने का प्रयास करता है।

पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने का रास्ता साफ़ होने के बाद गुज्जरों को अपना आरक्षित कोटा पहाड़ियों के साथ साझा करने का डर सता रहा है, दोनों समुदायों के दो अलग-अलग प्रतिनिधिमंडलों ने मंगलवार को नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की। दोनों प्रतिनिधिमंडलों में जम्मू-कश्मीर के भाजपा नेता शामिल थे।

गृह मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठकों में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और जम्मू-कश्मीर प्रभारी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग भी मौजूद थे।

सूत्रों ने कहा कि शाह ने प्रतिनिधिमंडलों को आश्वासन दिया है कि सरकारी नौकरियों और छात्रवृत्ति में एसटी के लिए मौजूदा 10 प्रतिशत आरक्षण पहाड़ी लोगों को शामिल किए बिना बरक़रार रहेगा। उन्होंने प्रतिनिधिमंडलों को आश्वासन दिया कि ओहारी कबीला और अन्य को अलग से आरक्षण मिलेगा और दोनों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में माना जायेगा।

शाह ने अपने मेहमानों से भाईचारा, सद्भाव बनाये रखने और जम्मू-कश्मीर को सभी क्षेत्रों में आगे ले जाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया। सूत्रों के अनुसार, प्रतिनिधिमंडलों को आश्वासन दिया गया है कि गुज्जर, बकरवाल, गद्दी, सिप्पी, शीना और वे सभी जो पहले से ही एसटी श्रेणी के तहत आरक्षण के हक़दार हैं, उन्हें शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों आदि में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता रहेगा।

पहाड़ी कबीला, पद्दारी जनजाति, गड्डा आदिवासी ब्राह्मण और कोली आदिवासी समुदाय को अलग-अलग उतना आरक्षण मिलेगा, जिसका प्रतिशत केंद्र और केंद्रशासित प्रदेश दोनों सरकारें एक-दूसरे के परामर्श से तय करेंगी। हालांकि, उन सभी को एसटी के रूप में माना जायेगा, जो उन्हें पंचायतों, विधानसभा और संसद में राजनीतिक आरक्षण के लिए पात्र बना देगा। राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे सभी समूह एसटी श्रेणी में आयेंगे।

अब, अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, गुज्जरों और बकरवालों के अलावा, गद्दी, सिप्पी और शीना; पहाड़ी कबीला, पद्दारी जनजाति, गद्दा ब्राह्मण जनजाति और कोली आदिवासी समुदाय पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद तक एसटी श्रेणी के तहत 10 प्रतिशत राजनीतिक आरक्षण के हकदार होंगे। यूटी की विधानसभा में, जिसमें 90 सीटें (कश्मीर से 47 और जम्मू से 43) शामिल हैं, 9 सीटें (10 प्रतिशत) पहली बार एसटी के लिए आरक्षित की गई हैं। सात सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहेंगी।

पहाड़ी कबीला, पद्दारी जनजाति, गद्दा ब्राह्मणों और कोली के लिए शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण के प्रतिशत के संबंध में अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि यह संसद में पेश किए जाने वाले विधेयक में प्रतिबिंबित होने की संभावना है।

गृह मंत्री के साथ अपनी बैठक से पहले, पहाड़ी और गुज्जर और बकरवालों ने नई दिल्ली में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से अलग-अलग मुलाकात की और आरक्षण के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। दोनों पक्षों ने सिन्हा को अपने मुद्दों और केंद्र के साथ-साथ केंद्रशासित प्रदेश सरकारों से अपेक्षाओं के बारे में जानकारी दी।

पहाड़ों के प्रतिनिधिमंडल में जम्मू-कश्मीर के 23 लोग शामिल थे, जिसका नेतृत्व पूर्व उपमुख्यमंत्री मुज़फ़्फ़र हुसैन बेग़ और पूर्व एमएलसी विबोध गुप्ता ने संयुक्त रूप से किया। गुज्जरों और बकरवालों के 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में कई पूर्व मंत्री और पूर्व विधायकों के अलावा कुछ ज़िला विकास परिषद के सदस्य भी शामिल थे।