प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता इस वक्त दुनिया भर में है। उनके द्वारा किए गए कामों की दुनिया भर के कई बड़े देशों में सराहना होती रही है और कई बड़े देश उनके साथ काम करने के लिए अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं। अब अमेरिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक सपने को पूरा करेगा। दरअसल, अगर भारत 2030 तक 500 गीगावाट रिन्यूबल एनर्जी स्थापित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करता है तो प्रदूषणकारी कोयला और गैस आधारित बिजली संयंत्रों को बंद किए बिना अपनी दोगुनी बिजली की मांग को पूरा करने और उत्सर्जन को कम करने में सक्षम होगा। अमेरिकी अध्ययन में यह बात सामने आई है।
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यह अध्ययन हाल ही में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा की लागत-प्रभावशीलता को मान्यता देता है कि भारत 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित कर लेगा। हालांकि, इस आशावादी प्रक्षेपण के लिए शर्तें भी हैं। बैटरी भंडारन, वन और सौर्य ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की लागत में गिरावट जारी रहनी चाहिए। उन्हें पूरक लचीले संसाधनों जैसे, कुशल ऊर्जा भंडारण, एग्रीकल्चरल लोड शिफ्टिंग, जल विद्युत, और मौजूदा थर्मल पॉवर जैसे देश में बिजली संपत्ति के साथ होना चाहिए।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा प्रबंधित विज्ञान प्रयोगशाला लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (LNBL), जो एक अमेरिकी ऊर्जा विभाग है, इसके स्टडी के मुताबिक, अगर भारत वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय बिजली क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य प्राप्त करता है तो हो सकता है यह बिजली की लागत को 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक कम करें। बशर्ते अक्षय ऊर्जा और बैटरी भंडारण की कीमतों में गिरावट जारी रहे। इतना ही नहीं, यह 2020 के स्तर पर 2030 तक अपनी बिजली आपूर्ति की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 43% से 50% तक कम करने में सक्षम होगा।
इली प्रयोगशाला के वैज्ञानिक और स्टडी के प्रमुख लेखक भारतीय अमेरिकी निकित अभ्यंकर ने कहा है कि, हमने पाया कि अक्षय ऊर्जा के इस तरह के उच्च स्तर का निर्माण वास्तव में भारत के लिए किफायती होगा, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में लागत में कमी के कारण जो अनुमान से कहीं अधिक तेजी से हुआ है। "अध्ययन के दो अन्य शोधकर्ता भी भारतीय अमेरिकी श्रुति देवराह और अमोल फड़के हैं। इसे यूएस-इंडिया क्लीन एनर्जी फाइनेंस टास्क फोर्स के फ्लेक्सिबल रिसोर्सेज इनिशिएटिव के तहत यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, ब्यूरो ऑफ एनर्जी रिसोर्सेज द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
वर्तमान में भारत का अक्षय ऊर्जा क्षमता 100 गीगावॉटहै और स्टडी के मुताबकि यह 2022 तक 175 और 2030 तक 500 गीगावॉट हो जाएगा जिसके बाद भारत की बिजली आपूर्ति का 50 फीसदी कार्बन मुक्त स्रोतों से आ सकता है, जबकि 2020 में यह केवल 25 फीसदी था। स्टडी में यह भी बताया गया है कि, यह अभी भी कोयला और गैस संयंत्रों के निर्माण से स्ता होगा। इसके साथ ही लचीले संसाधन जैसे कृषि बिजली की खपत को सौर घंटों में स्थानांतरित करना, बैटरी का उपयोग करके रात के लिए दैनिक ऊर्जा के चार से छह घंटे स्टोर करना, मौजूदा ताप विद्युत संयंत्रों में लचीलेपन का उपयोग नए कोयले या गैस आधारिक संयंत्रों के निर्माण की तुलना में सस्ता है।