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PFI का ISIS से कनेक्शन, टॉप आतंकियों से टच में था- देखें कैसे खुला राज

Tribunal To Review Ban On PFI: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) को सरकार बैन कर दिया है। पीएफआई आरएसएस नेताओं की हत्या, दिल्ली दंगे और अन्य हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा है और इसके लिए उसने फंडिंग भी की है। यहां तक कि, पीएफआई भारत में हिंसक गतिविधियों के लिए कैडर का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षण शिविर चला रहा है। इनका प्लान था देश के माहौल को खराब करना और धर्म के नाम पर दंगे-फसाद करना। मासूम मुस्लिमों के दिलों-दिमाग में कट्टरता भरना। PFI अकेला नहीं था उसके साथ ही कई सारे और संगठन जुड़े थे और इन्हें बड़े-बड़े इस्लामिक देशों से मोटी फंडिंग की जाती थी। NIA ने रेड में कई खुलासे किये। अब सरकार पीएफआई को लेकर जो फैसला लेने जा रही है उससे उसकी राहें और भी ज्यादा मुश्किल हो जाएंगी। दरअसल, PFI और उससे जुड़े संगठनों पर बैन के बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक जज को अनलॉफुल ऐक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ट्राइब्यूनल (Tribunal To Review Ban On PFI) का अध्यक्ष बनाया है। यह ट्राइब्यूनल बैन की समीक्षा करेगा। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय की तरफ से 3 अक्टूबर को जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा को उस ट्राइब्यूनल (Tribunal To Review Ban On PFI) का अध्यक्ष नियुक्त किया है जो पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों का मामला देखेगा।

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इन्हें भी किया गया बैन
आगे बढ़ने से पहले बताते चलें कि, पीएफआई के अलावा उसके सहयोगियों रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) पर भी बैन लगाया गया है। ये सारे देश में दंगा-फासद, आतंक फैलाने की दिशा में काम कर रहे थे।

जस्टिस शर्मा करेंगे ट्राइब्यूनल की अध्यक्षता
नोटिफिकेशन के मुताबिक, जस्टिस शर्मा ट्राइब्यूनल की अध्यक्षता करेंगे और इन संगठनों को गैरकानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं, ये तय करेंगे। गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पीएफआई और उसके 8 सहयोगियों को 5 साल के लिए बैन कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट के कुछ जज इससे पहले भी यूएपीए ट्राइब्यूनल्स की अध्यक्षता कर चुके हैं। वे स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI), LTTE और पूर्वोत्तर भारत में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल कट्टरपंथी संगठनों पर बैन की समीक्षा कर चुके हैं। दरअसल, यूएपीए की धारा 4 के मुताबिक सरकार अगर किसी संगठन को प्रतिबंधित करती है तो उस फैसले की समीक्षा के लिए 30 दिनों के भीतर इस तरह के ट्राइब्यूनल की अधिसूचना जारी करनी होती है।

इन ट्राइब्यूनल्स में प्रतिबंधित किए गए संगठन अपने वकील के लिए पक्ष रखते हैं। इस साल मार्च में एक यूएपीए ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में 15 नवंबर 2021 को जारी अधिसूचना को सही ठहराया था जिसमें जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को बैन किया गया था। ट्राइब्यूनल बैन हटा भी सकता है। 2008 में ऐसे ही एक ट्राइब्यूनल ने सिमी पर बैन से जुड़ी अधिसूचना को रद्द कर दिया था। उसके अगले ही दिन आनन-फानन में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी जिसने ट्राइब्यूनल के आदेश पर रोक लगा दिया।

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इस्लामिक स्टेट से भी PFI का कनेक्शन
पीएफआई को लेकर एक और खुलासा हुआ है कि, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के टॉप 22 आतंकी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े हुए थे। दो राउंड की ताबड़तोड़ राष्ट्रव्यापी छापेमारी के बाद बड़ी मात्रा में डिजिटल डेटा बरामद किया गया है। डिजिटल साक्ष्य आपराधिक गतिविधियों की फंडिंग में पीएफआई की संलिप्तता की ओर इशारा करते हैं। ऐसे में अब PFI की राहें इतनी आसान नहीं होने वाली है। आगे चलकर पीएफआई को लेकर और भी बड़े खुलासे होंगे।

आईएन ब्यूरो

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