आजमगढ़ और ‘आजम के गढ़’ दोनों पर लहराया भगवा, संगरूर में टूटा AAP, भगवंत और केजरीवाल का गुरूर

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तीन लोकसभा और सात विधासभा सीटों के लिए हुए चुनाव में हार जीत योगी और अरविंद केजरीवाल के लिए बहुत मायने रखती है। खास तौर पर संगरूर, रामपुर और आजमगढ़ के लोकसभा चुनाव। यूपी में रामपुर और आजमगढ़ लोक सभा जीत कर योगी ने साबित कर दिया है कि उनका जादू चल रहा है। वहीं समाजवादी पार्टी के लिए कोढ़ में खाज हो गया वाली कहावत साबित होगी। रामपुर लोक सभा से आजम खान ने इस्तीफा दिया था और आजमगढ़ से अखिलेश यादव ने। दोनों विधानसभा सीट कर राज्य की राजनीति में वापस लौटे हैं। रामपुर से चुनाव हारने का मतलब केवल समाजवादी पार्टी का पतन ही नहीं बल्कि आजम खान की राजनीति का अवसान की ओर जाना है। इसी तरह समाजवादी पार्टी के मजबूत गढ़ में भाजपा की जीत का मतलब है कि पूर्वांचल में अखिलेश और समाजवादी पार्टी ढलान की ओर जाना।</p>
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आजमगढ़ सदर लोक सभा सीट पर उप चुनाव में मिली ऐतिहासिक विजय आदरणीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में 'डबल इंजन की भाजपा सरकार' की लोक-कल्याणकारी नीतियों का सुफल है।<br />
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भाजपा के सभी कर्मठ कार्यकर्ताओं को यह जीत समर्पित है।<br />
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आभार आजमगढ़ वासियो!</p>
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) <a href="https://twitter.com/myogiadityanath/status/1541010950966636546?ref_src=twsrc%5Etfw">June 26, 2022</a></blockquote>
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आजमगढ़ में अखिलेश ने अपने खानदान के ही प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को उतारा था। धर्मेद्र, अखिलेश चचेरे-तहेरे भाई हैं। मतलब रामगोपाल यादव के सुपुत्र हैं धर्मेंद्र यादव। बीजेपी के निरहऊआ ने उन्हें भारी अंतर से हराया है। जब अखिलेश चुनाव लड़े थे उस वक्त भी निरहऊआ ही बीजेपी की ओर से चुनाव लड़े थे। मनोज तिवारी की तरह पूर्वांचल या भोजपुरी बोली बोले जाने वाले क्षेत्र के जाने-माने गायक और हीरो हैं। उनके गाने सुनने और देखने के लिए लाखों-लाख लोग इकट्ठा हो जाते हैं। रिक्शे-ठेले ट्रक-टेम्पो से लेकर मर्सडीज वाले बाबू साहबों की डेक में निरहऊआ का गाना ने बजे ऐसा हो ही नहीं सकता। उन्हीं निरहुआ ने इस बार समाजवादी पार्टी का बैंड बजा दिया है।</p>
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कहा जाता है कि रामपुर में आजम खान राजनेता कम माफिया ज्यादा हो गए थे। राजनीति की आड़ में जमीनों पर कब्जे, दंबगई, गरीबों और खासतौर पर बहुसंख्यकों के खिलाफ आजम खानदान का आतंक था। योगी आदित्यनाथ ने आजमखान की दबंगई निकालने की हर चंद कोशिश की लेकिन विधानसभा चुनाव में आजम-आजम ही रहे। जेल से चुनाव लड़े और बेटा-बाप दोनों जीत गए। आस-पास की जितनी भी मुस्लिम प्रभावित सीटें थी वो भी जितवा दीं। इसलिए रामपुर लोकसभा उपचुनाव घनश्याम लोधी की प्रतिष्ठा नहीं बल्कि योगी की नाक का सवाल बन गई थी। रामपुर से आजम खान को उखाड़ फेंकने के लिए आजम खान के करीबी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आसिम रजा को हराने के अलावा बीजेपी के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था।</p>
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आखिरी नतीजा यह रहा कि बीजेपी के घनश्याम लोधी ने समाजवादी पार्टी के आसिम रजा को 42 हजार वोटों से करारी शिकस्त दे दी। रामपुर और आजमगढ़ में जहां योगी खुद प्रचार करने उतरे तो वहीं रामपुर में अखिलेश या अखिलेश के किसी परिवारीजन ने भी प्रचार नहीं किया। अकेले आजम खान, अब्दुला आजम और उनके सपोर्टर ही थे। अखिलेश का अहंकार तो आजमगढ़ ने तोड़ा। पिछली बार अखिलेश ने बीजेपी निरहऊआ को आजमगढ़ में 2 लाख 60 हजार वोटों से हराया था। इस बार उन्हीं निरहऊआ ने अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव को 10 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। निरहऊआ का पूरा नाम दिनेश लाल यादव है। फिल्मी दुनिया में लोग उन्हें निरहऊआ के नाम से जानते हैं। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि लोक सभा उपचुनाव में जनता ने योगी सरकार को सौ फीसदी अंक दे दिए हैं।</p>
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जनता की जीत!<br />
आजमगढ़वासियों आपने कमाल कर दिया है। यह आपकी जीत है। उपचुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही जिस तरीके से आप सबने भाजपा को प्यार, समर्थन और आशीर्वाद दिया, यह उसकी जीत है। यह जीत आपके भरोसे और देवतुल्य कार्यकर्ताओं की मेहनत को समर्पित है। <a href="https://t.co/mZ6YWzxFv5">pic.twitter.com/mZ6YWzxFv5</a></p>
— Nirahua Hindustani (@nirahua1) <a href="https://twitter.com/nirahua1/status/1541000072527114242?ref_src=twsrc%5Etfw">June 26, 2022</a></blockquote>
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अब बारी आती है पंजाब के संगरूर की। संगरूर सीट भगवंत मान के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। भगवंत मान विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने अपने उम्मीदावर यानी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरमेल सिंह को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। संगरूर सीट केवल भगवंत मान की साख का सवाल नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की साख और अरविंद केजरीवाल की साख का सवाल भी था। संगरूर में लोक सभा चुनाव हारने से आम आदमी पार्टी के मनोबल का गिरा है।</p>
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संगरूर की हार  से आआापा के अरविंद केजरीवाल का गुरूर भी टूटा है। इसका असर हिमाचल के विधानसभा चुनावों भी पड़ेगा। हालांकि राजनीति के पंडितों का कहना है कि हिमाचल में आम आदमी पार्टी का वही हाल होना है तो उत्तराखण्ड में हुआ। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जोश में हैं और उन्हें लगता था कि संगरूर फतह के साथ हिमाचल में दमखम से उतरेंगे लेकिन संगरूर की हार ने आम आदमी का दम ही निकाल दिया। हालांकि दिल्ली की राजेंद्र नगर विधानसभा में मिली जीत संगरूर से मिले जख्म पर मरहम का काम कर रही है, लेकिन यह मरहम काफी नहीं है। हिमाचल से पंजाब नजदीक है। दिल्ली नहीं। संगरूर में शिरोमणि अकाली दल (मान) के सिमरनजीत सिंह मान की जीत कम वोटों से हुई है लेकिन यह जीत बहुत बड़ी मानी जा रही है। क्योंकि आम आदमी पार्टी, हिमाचल विधानसभा चुनावो आधार संगरूर लोकसभा चुनाव को बनाने जा रही थी। संगरूर से आम आदमी की जीत, पंजाब में आम आदमी की जीत का एंडोर्समेंट भी मानी जाती। संगरूर में हार का मतलब है कि मतदाताओं ने पंजाब में कांग्रेस का कोई विकल्प न मिलने पर आम आदमी पार्टी को वोट दिया था किसी मेरिट पर नहीं। कुछ लोगों ने कहा कि पंजाब विधान सभा में वोटिंग इस पर आधार पर हुई कि, ‘चलो एक बार इसको भी वोट देकर देखो।’वोट देने का नतीजा पंजाब के वोटर ने देख लिया इसलिए आम आदमी पार्टी के गुरमेल सिंह को ही नहीं पूरी पार्टी के मंसूलों धूल में मिला दिया।</p>
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मिजोरम में मुख्यमंत्री माणिक साहा बोरदोबाली सीट से चुनाव जीत गए हैं। बीजेपी ने त्रिपुरा की जुरबाजनगर सीट भी जीत ली है।  </p>

Rajeev Sharma

Rajeev Sharma, writes on National-International issues, Radicalization, Pakistan-China & Indian Socio- Politics.

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