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महीने भर का बेटा, बूढ़े मां-बाप, परिवार का इकलौता सहारा…आंखें भर देती है पुंछ में शहीद जवानों की कहानी

महीने भर का बेटा, बूढ़े मां-बाप, परिवार का एकलौता सहारा...

देश ने सोमवार को अपने पांच जांबाज जवान खोए। जम्मू-कश्मीर के पुंछ में आतंकियों से लड़ते हुए भारतीय सेना का पांच जवान शहीद हो गए। इस घटना के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। शहीद हुए जवानों के घरों और गांव में मातम पसरा हुआ है। किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि उसके गांव उसके घर का चिराग अब दुनिया में नहीं रहा। जो शहीद हुए उनके परिवार का हाल जानकर कलेजा कंपा जाता है। हम आपकों पांचों शहीदों के बारे में बताने जा रहे हैं। 
 
 जसविंदर सिंह
 
पुंछ में घात लगाए आतंकियों की गोलियों के शिकार पंजाब में कपूरथला जिले के निवासी जसविंदर सिंह भी हुए हैं। जसविंदर सिंह 4 मेकनाइज्ड इन्फेंट्री में नायब सुबेदार (JCO) थे। वो सिख इन्फ्रेंट्री के यूनिट चार में भर्ती हुए थे और अभी उनकी तैनाती 16 राष्ट्रीय राइफल्स में थी। जसविंदर के पिता और भाई भी सैनिक रहे हैं। कैप्टन के पद से रिटायर हुए पिता का बीमारी के कारण एक महीना पहले ही निधन हो गया था। वहीं, बड़े भाई रजिंदर सिंह नायब सुबेदार के पद से रिटायर्ड हुए हैं। मां ने कहा- मेरे बेटे जसविंदर की शाहदत पर नाज है। जसविंदर की सुखप्रीत कौर से शादी 14 साल पहले हुई थी। उनकी 11 साल की बेटी हरनूर कौर और 13 साल के बेटे विक्रमजीत सिंह हैं। 35 साल की पत्नी सुखप्रीत यह यकीन करने को तैयार नहीं हो पा रही थीं कि उनका पति अब दुनिया में नहीं रहा। वो बार-बार कह रही थीं कि जसविंदर आएंगे और उन्हें जम्मू-कश्मीर घुमाने ले जाएंगे।
 
मनदीप सिंह
 
मनदीप सिंह 16 राष्ट्रीय राइफल्स में नायक के पद पर थे। पंजाब के गुरदासपुर जिले के चट्ठा कलां गांव के रहने वाले मनदीप की मां, पत्नी मनदीप कौर और दो बेटे हैं। एक बेटा चार साल का जबकि दूसरा सिर्फ 39 दिन का है। सोचिए, वो दुधमुंहा जब होश संभालेगा तो उसे अपने पिता का चेहरा तक याद नहीं होगा। उस मासूम को क्या पता कि उसके सिर से पिता का साया उठ चुका है। मनदीप दिसंबर 2011 में सेना में भर्ती हुए थे। वो होते तो 16 अक्टूबर को जन्मदिन का जश्न मनाते। वो एक महीने पहले छुट्टी काटकर घर से ड्यूटी पर गए थे। उनके बड़े भाई भी सेना में हैं जबकि छोटा भाई विदेश में रहता है। मनदीप फुटबॉल अच्छा खेलते थे। शहादत की खबर सुनते ही पत्नी दहाड़ मारने लगीं और रोते-रोते कई बार बेहोश हो गईं। अपने बच्चों को देखकर उनका दिल और बैठ जा रहा है।
 
गज्जण सिंह 
 
16 राष्ट्रीय राइफल्स के सिपाही गज्जण सिंह की तो शादी फरवरी महीने में ही हरप्रीत कौर से हुई थी। पंजाब के रोपड़ जिले के पचरंडा गांव के रहने वाले गज्जण 16 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। उम्र सिर्फ 25 वर्ष थी। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए वो बारात में अपने साथ किसानी झंडा भी ले गए थे। गजण्ण के दो भाई हैं और पिता चरण सिंह किसान हैं। वो सात साल पहले 23 सिख रेजिमेंट में भर्ती हुए थे।गज्जण की मां मलकीत कौर बीमार हैं, इसलिए उनसे बेटे के बलिदान की जानकारी छिपा ली गई। दो दिन पहले पत्नी हरमीत कौर से बात की थी। तब उन्होंने कहा था कि रिश्तेदार की शादी में 13 अक्टूबर को घर आना ही है, जल्द मुलाकात होगी। लेकिन, विधि का विधान देखिए- गज्जण नहीं, उनकी लाश आई।
 
 सारज सिंह

16 राष्ट्रीय राइफल्स के ही एक और सिपाही सारज सिंह ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। वो उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के अख्तियारपुर धौकल गांव के रहने वाले थे। उनके दो भाई भी सेना में हैं। 2019 में सरज की शादी हुई थी। 2016 में सेना में भर्ती हुए थे। जुलाई में घर आए थे। सोमवार दोपहर को सेना ने बड़े भाई सुखवीर सिंह को सारज की शहादत की सूचना दी। सुखवीर और सारज के सबसे बड़े भाई गुरप्रीत सिंह भी सेना में हैं। दोनों की तैनाती कुपवाड़ा जिले में है। 6 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात सुखबीर ने कहा कि वो सीमा पर जाने का इंतजार कर रहे हैं। मौका मिलते ही आतंकियों से अपने भाई की शहादत का बदला लेंगे।
 वैशाख एच
 
केरल के रहने वाले सिपाही वैशाख एच परिवार के इकलौते कमाई करने वाले थे। वो कोल्लम जिले के ओदानवट्टम गांव के रहने वाले थे। 2017 में सेना में शामिल हुए थे। रेजिमेंट में मुस्तैद जवान की छवि थी। वैशाख की उम्र महज 24 साल थी। वो अपने पिता हरिकुमार, मां बीना और बहन शिल्पा के साथ ओणम मनाने आए थे। वो 22वीं मेकनिकल डिपार्टमेंट के 16वें राष्ट्रीय राइफल्स के जवान थे।