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MJ Akbar की नई किताब- भारतीयों पर ‘अंग्रेजों और जमींदारों’ के ज़ुल्म और उनसे बदले की दास्तान!

Doolally Sahib and Black Zamindar

नामचीन पत्रकार, राजनीतिज्ञ और लेखक एम जे अकबर की नयी किताब- डुलैली साहेब एंड बलेक ज़मींदार : रेस एंड रिवेंज  इन ब्रिटिश इंडिया बाज़ार में आगायी हैं। ये किताब भारत में मुगलों के समय साम्प्रदायिक सौहार्द और सुखद व्यंग को बहुत ही कलात्मक ढंग से उकेरती  है। किताब का पहला अध्याय  इसी तथ्य  को समझाता है कि किस तरह मुग़ल शासक अकबर के दौर में हिंदू-मुस्लिम एकता अपने चरम पर थी। यह सौहार्द्र केवल सामाजिक नहीं था, अपितु सांस्कृतिक भी था। लोगों को व्यंग करने और अपनी पद्यति के अनुसार जीवन जीने के स्वतंत्रता थी। जितनी स्वतंत्रता मौलवी को प्राप्त थी, उतनी ही स्वतंत्रता के साथ एक ब्राह्मण पुजारी भी अपने धार्मिक कार्यों  को कर सकता था। राजा के दरबार में गम्भीर बातों को भी व्यंगात्मक  शैली में कहने का चलन था। अकबर साहब इस बात को इस तरह कहते हैं कि 'राजा क़ानून से ऊपर तो हो सकता था किंतु व्यंग का निशाना वो भी बनता था और इस बात का आनंद भी लेता था। 

ये किताब मूलतः भारतीयों के औपनिवेशिक अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों पर आधारित है। इस किताब ने मुख्य तौर पर व्यवसाइयों, प्रशासकों, यात्रियों, तथा अंग्रेज फ़ौजी अफसरों द्वारा लिखी गयी सामग्री को अपना स्रोत बनाया है । इस किताब में एमजे अकबर ने छोटी-छोटी कहानियों, इतिहास के संदर्भों  को अपने मूल्यांकन के साथ एक ऐसी कहानी प्रस्तुत की है कि अंग्रेज हमेशा अपनी रंगवादी श्रेष्‍ठता को साबित करते थे जिसके उलट भारतीय लोग उनसे घृणा  करते थे तथा बदले की भावना रखते थे। जब कभी भी किसी भी भारतीय को अंग्रेज़ों से बदला लेने का अवसर मिलता था तो वो चूकता नहीं था। लेखक  इस बात का उदाहरण इस प्रकार देते हैं कि- 'जब किसी धोबी को कोई अंग्रेज अफ़सर अपने कपड़े धोने के लिए देता था तो वो  या तो कपड़े फाड़ देता था या कपड़े का कोई बटन तोड़ दिया करता था। 

डुलैली  साहेब किनको कहते थे?

किताब बताती है कि डुलैली शब्द देवलाली शहर का एक बिगड़ा हुआ नाम है ये महाराष्ट्र के नासिक शाहर में फ़ौज का एक ट्रैंज़िट  कैम्प था। ये मुंबई से लगभग सौ मील की दूरी पर है। अंग्रेज़ों के ज़माने में जब कोई अंग्रेज अफ़सर अपनी ड्यूटी पूरी करके वापस इन्ग्लैंड जाता था तो उसे कुछ दिन के लिए इस कैम्प में भेजा जाता था। ऐसे अफ़सर अक्सर बहुत ज़्यादा शराब पीते थे या मछरों के काटने की वजह से बुख़ार में पड़ जाते थे या वो ऊल जलूल हरकतें करते थे। इसी तरह के अफ़सरों को डुलैली साहेब कहा जाता था।

ब्लैक ज़मींदार कौन थे?

जैसे-जैसे अंग्रेज़ों ने भारत के शहरों में अपने पैर जमाये और टैक्स जमा करने का अधिकार प्राप्त किया तो उन्हों ने बहुत सारे प्रभावी भारतीयों को टैक्स वसूलने का दायित्व सौंपा। ये भारतीय अंग्रेजों की तरह ही क्रूर थे और भारतीयों पर नाना प्रकार के जुल्म ढा कर भारतीयों से जबरन टैक्स वसूलते थे। ऐसे ही जमींदारों को 'ब्लैक ज़मींदार' कहा जाता था। एमजे अकबर की किताब के अनुसार कलकत्ता के गोविन्दराम मित्रा जो 1720 से 1726 तक डिप्टी कलेक्टर रहे इंडिया के पहले ब्लैक ज़मींदार थे।

(एमजे अकबर की किताब डुलैली साहेब एंड ब्लैक ज़मींदार : रेस एंड रिवेंज इन ब्रिटिश इंडिया के समीक्षक मोहम्मद अनस)