रामकृष्ण उपाध्याय
बेंगलुरु: जनता दल (सेक्युलर) के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री 91 वर्षीय एचडी देवेगौड़ा अपने बेटे एचडी कुमारस्वामी के पार्टी और राजनीतिक करियर को बचाने के लिए कर्नाटक के चन्नापटना निर्वाचन क्षेत्र में चक्कर लगा रहे हैं। भाजपा के सीपी योगेश्वर के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में कड़ा मुक़ाबला।
लगभग एक साल के लिए कुमारस्वामी ने पार्टी के मामलों और चुनाव प्रचार की पूरी ज़िम्मेदारी संभाली थी, क्योंकि वरिष्ठ गौड़ा धीरे-धीरे बुढ़ापे और बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण सक्रिय राजनीति से किनारे होने लगे थे। वह कई बार अस्पताल के अंदर और बाहर हो चुके हैं। लगभग एक महीने पहले गौड़ा ने मैसूरु में ‘पंचरत्न यात्रा’ के समापन समारोह में भाग लिया था, जब कुमारस्वामी, रेवन्ना और उनके बेटे देवेगौड़ा के साथ चल रहे थे, जिन्हें हज़ारों लोगों के बीच विशेष रूप से बनाये गये 100 फीट लंबे रैंप पर व्हीलचेयर में परेड कराया गया था। इस रैली में जद(एस) के समर्थक शामिल हुए थे ।
यह पूरे गौड़ा परिवार के लिए एक भावनात्मक क्षण था, क्योंकि इसने गौड़ा के ‘आखिरी चुनाव’ पर जनता से सहानुभूति के आख़िरी बूंद को निकालने की कोशिश की थी।
बेटे को संवारने को आतुर देवेगौड़ा
2018 में कुमारस्वामी ने दो निर्वाचन क्षेत्रों, रामनगर और चन्नापटना से जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पत्नी अनीता कुमारस्वामी को निर्वाचित करने के लिए चन्नापटना से त्यागपत्र दे दिया था। इस बार उन्होंने अपने बेटे निखिल को रामनगर से चन्नापटना से नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए चुना। कुमारस्वामी चाहते हैं कि उनके अभिनेता-पुत्र राजनीति में पैर जमा लें, जब ग्रैंड ओल्ड मैन की छत्रछाया अब भी उनके आस-पास हो, क्योंकि 2019 में मांड्या से लोकसभा के लिए निखिल का पहला चुनाव एक आपदा बन गया था।
कुमारस्वामी राज्य भर में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने में व्यस्त हैं, चन्नापटना को संभालने के लिए अपनी पत्नी को लगाये हुए हैं। लेकिन, पिछले कुछ दिनों में ऐसा लगता है कि गौड़ा परिवार को अचानक यह एहसास हो गया है कि योगेश्वर तेज़ी से मज़बूत होते जा रहे हैं और कुमारस्वामी के पिछड़ने का ख़तरा पैदा हो गया है। चूंकि दांव बहुत ऊंचे हैं,इसलिए देवेगौड़ा ने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करना और जनसभाओं को संबोधित करना शुरू कर दिया है, इसके लिए उनके साथ आधा दर्जन लोग मंच पर और बाहर होते हैं।
दो दिन पहले यह संवाददाता देवेगौड़ा के अभियान को देखने के लिए चन्नापटना में था। जैसे ही गौड़ा का काफ़िला, एंबुलेंस और डॉक्टरों की एक टीम के साथ शहर में दाखिल हुआ, वैसे ही हज़ारों लोग दूर-दूर से इस बुज़ुर्ग व्यक्ति के ‘दर्शन’ करने और उसे सुनने के लिए जमा हो गए। यह मुख्य रूप से एक मुस्लिम सभा थी, जिसे गौड़ा ने याद दिलाया कि मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने मुसलमानों को 4% आरक्षण प्रदान किया था, जिसे भाजपा सरकार ने ‘हटा’ लिया था। गौड़ा ने क़स्बे में हिंदुओं की एक और सभा को संबोधित किया। दोनों रैलियों में उन्होंने हाथ जोड़कर लोगों से कुमारस्वामी को “एक बार और” मुख्यमंत्री बनाने की अपील की, उनके लिए यह एक ऐसा सपना है, जिसे वह आख़िरी बार पूरा होते देखना चाहते हैं।
योगेश्वर एक दिग्गज नेता हैं
दूसरी ओर योगेश्वर कोई नौसिखिए नहीं हैं, क्योंकि वे चन्नापटना से पांच बार विधायक चुने गए हैं, केवल दो ही बार हारे हैं। उन्होंने अपनी शुरूआत एक निर्दलीय विधायक के रूप में की थी और जब मुलायम सिंह यादव पार्टी को दक्षिण में स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे, तब समाजवादी पार्टी के झंडे को सफलतापूर्वक विधानसभा तक ले गए थे। योगेश्वर इस समय भाजपा के साथ हैं, वह एक करिश्माई नेता हैं, और एक वर्ष से अधिक समय से गंभीरता के साथ पैदल प्रचार कर रहे हैं। लोग योगेश्वर के विकास कार्यों, विशेषकर किसानों को सिंचाई की सुविधा प्रदान करने के कार्यों को स्वीकार करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योगेश्वर की संभावनाओं को बल देते हुए चन्नापटना में एक जनसभा की है। इस संवाददाता से बात करते हुए योगेश्वर ने कहा कि वह “इस बार जीतने के लिए 100% आश्वस्त हैं” क्योंकि लोगों ने महसूस किया है कि वह हमेशा उनके लिए सबके लिए सुलभ हैं, जबकि कुमारस्वामी एक ‘अनुपस्थित विधायक’ रहे हैं, जो पांच साल में केवल एक बार दिखायी देते हैं। उन्होंने कहा कि वह वोक्कालिगा और मुसलमानों सहित अन्य सभी समुदायों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने बिना किसी भेदभाव के सभी की समस्याओं में भागीदार की है। जिन मुसलमानों से मैंने बात की उनमें से कुछ ने योगेश्वर के इस कथन की पुष्टि की।
हालांकि, लगभग एक साल पहले येदियुरप्पा के साथ उनके कुछ मतभेद थे, लेकिन दोनों के बीच समझौता हो गया है और एक पार्टी के रूप में बीजेपी उनका पूरा समर्थन कर रही है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जानता है कि अगर कुमारस्वामी चन्नापटना में हार जाते हैं, तो इसका जेडी (एस) के लिए भारी परिणाम होगा, क्योंकि यह नेताविहीन और दिशाहीन हो जायेगा। किसी एक दल के लिए स्पष्ट बहुमत नहीं होने की स्थिति में ‘नेतृत्वविहीन’ इस जद (एस) का भाजपा या कांग्रेस द्वारा अपना शिकार बनाना आसान होगा और इसका परिणाम अधिक अप्रत्याशित होगा।
इस तरह के परिदृश्य का डर देवेगौड़ा को पार्टी को बचाये रखने और उसके अनुकूल चुनाव कराने के लिए तैयार रहने के लिहाज़ से हर पार्टी पर दबाव डल रहा है।