कर्नाटक में जहां एक तरफ हिजाब को लेकर एक प्रपोगंडा चल है वही राज्य की एक होनहार हिजाबी गर्ल बुशरा मतीन ने राज्य यूनिवर्सिटी में 16 गोल्ड मैडल जीत कर रिकार्ड क़ायम कर किया है। बुशरा मतीन ने कहा है कि समाज में बुराईयां पैदा हुई तो कट्टरपंथियों ने बुराइयों को खत्म करने बजाए औरतों पर पाबंदियां लगा दीं। आधी आबादी को जाहिल बना दिया।
16 गोल्ड मैडल जीतने वाली छात्रा बुशरा मतीन कर्नाटक के रायचूर की रहने वाली हैं और वो इस समय विश्वेश्वर्या टेक्नीकल यूनीवर्सिटी (VTU) के ऐस एल एन कॉलेज की बी ए सिवल डिपार्टमेंट की छात्रा हैं। उन्हें 10 मार्च को आयोजन होने वाले विश्वेश्वर्या टेक्नीकल यूनीवर्सिटी वार्षिक कार्यक्रम में गोल्ड मैडल से इज्ज़त दी जायेगी।
यूनीवर्सिटी के चांसलर प्रोफ़ैसर सिदिप्पा ने बताया है कि यूनीवर्सिटी में बुशरा मतीन ने जो कारनामा अंजाम दिया है। वो आज तक किसी ने नहीं किया है। अभी तक यूनीवर्सिटी में 13 गोल्ड मैडल हासिल करने का रिकार्ड था। लेकिन बुशरा मतीन ने अपनी मेहनत से इस रिकार्ड को तोड़ दिया है। और उन्होंने 16 गोल्ड मैडल जीते हैं। और अब उन्होंने एक नया रिकार्ड क़ायम कर दिया है।
यूनीवर्सिटी चांसलर ने बताया है कि बुशरा मतीन की वजह से आज हम फ़ख़र महसूस कर रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ अपना और अपने माता-पिता का नाम रोशन किया है, बल्कि उन्होंने यूनीवर्सिटी का नाम भी देश भर में रोशन किया है। और अब उन्हें यूनीवर्सिटी के वार्षिक कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा।
बुशरा मतीन की इस कामयाबी पर जब उनके पिता शेख़ ज़हीर उद्दीन और माता शबाना ने कहा कि हमारी बेटी बुशरा मतीन ने ऐस ऐस एल सी में 94.72 फ़ीसदी, पी यू सी में 93.33 फ़ीसदी और अब बीसी सिवल में 9.47 ग्रेड के साथ कामयाबी हासिल की हैं। और आगे भी वो अपनी तालीम जारी रखी हैं।हम उम्मीद करते हैं कि मुस्तक़बिल में भी वो इसी तरह से मुमताज़ कामयाबी हासिल करेंगी।
16 गोल्ड मैडल हासिल करने वाली छात्रा बुशरा मतीन का कहना है स्कूल-कॉलेज में कभी परेशानी आई तो उन्होंने इस बात पर कहा कि जब आपका मक़सद बड़ा हो, तो उस के सामने हर मुसीबत, परेशानी छोटी हो जाती है। हर मसले का हल मौजूद है। कभी भी अपने मक़सद को छोटा ना होने दें, मुसीबत,परेशानी ख़ुद बख़ुद ख़त्म हो जाएगी।कामियाबी के झंडे वही गाड़ते हैं। जिनके अंदर हौसला होता है।
उनसे जब पूछा गया कि मुस्लिम बच्चीयां तालीम में पीछे क्यों रह जाती हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि तालीम को हर मज़हब में मुक़द्दम रखा गया है। और सभी ने तालीम के फायदे को समझा है। तालीम की सभी को ज़रूरत है। इस में लिंग की क़ैद नहीं लगानी चाहीए। आज मुस्लिम बच्चीयों की तालीम पर संजीदगी से ग़ौर करने की ज़रूरत है।उन्होंने बताया कि इस्लाम के पैग़ाम में तालीम को लेकर बताया गया है कि मर्द औरत सभी पर इलम हासिल करना फ़र्ज़ है। और जमाने नबवी में ख़वातीन किसी भी मैदान में मर्दों से पीछे नहीं थीं, लेकिन बाद में मुआशरा में जब बुराईयां पैदा हुईं, तो इस का ज़िम्मेदार ख़वातीन को क़रार दिया गया। और उनके तालीम हासिल करने पर पाबंदी लगा दी गई।जब कि पाबंदी इन बुराईयों पर लगानी चाहीए थी, ना कि ख़वातीन के तालीम पर।
ख़वातीन को घर की चादीवारी में क़ैद कर के हम दीन व दुनिया दोनों से दूर हो गए। और नतीजा ये है कि हमने आधी आबादी को जाहिल बना दिया है। इस लिए हमें बच्चीयों की तालीम पर बहुत ही संजीदा होने की ज़रूरत है। अगर उनको तालीम याफ़ता नहीं बनाया गया तो हमारी आने वाली नसल किसी भी सूरत में तरक़्क़ी की मंज़िलें तै नहीं कर पाएगी।
उन्होंने बताया कि बेटा हो या बेटी तालीम सभी का बुनियादी हक़ है। और इस से किसी को भी महरूम नहीं किया जा सकता है। और हर मुश्किल घड़ी में तालीम ही काम आती है। आज बहुत सारी ख़वातीन समाज में मौजूद हैं, जो तालीम याफ़ता ना होने की वजह से दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। इस लिए ये बात सभी को याद रखनी चाहीए कि एक तालीम याफ़ता इन्सान ही कामयाब हो सकता है।चाहे वो किसी भी लिंग का हो।
(लेखक डॉक्टर शुजाअत अली क़ादरी के मूल लेख के संपादित अंश)