महाराष्ट्र में चल रहे सियासी नाटक की चाल सुप्रीम कोर्ट पहुंचते ही बदल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव कैंप को जाहिर कर दिया है कि लोकतंत्र में बहुमत का महत्व है मातोश्री के मत का महत्व लोकशाही में नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर जिरवाल ने अल्पमत में आई सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इशारे पर 16 विधायकों की नोटिस जारी कर दिया। नोटिस जारी करने का मतलब कि उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त होने वाली है। यानी शरण में आ जाओं वरना घर बैठो। 16 विधायक फारिग हो जात या वापस मम शरणम गच्छामी हो जाते को एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़नवीस का खेल हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाता। एकनाथ शिंदे के इन बागी विधायकों ने समय रहते सुप्रीमकोर्ट की शरण ली। बीजेपी ने चुप्पी साधी और सुप्रीम कोर्ट का रुख देखने लगी।
सुप्रीम कोर्ट ने बहुत संयम से काम लिया है। एक तरफ जहां महाराष्ट्र में लोकशाही को बचाने के लिए शिवसेना के बागी विधायकों को 12 जुलाई तक का समय दे दिया वहीं डिप्टी स्पीकर के नोटिस को रद्द भी नहीं किया। क्यों कि बागी विधायकों ने अपील की थी कि डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव दे रखा है, जब तक उसका सदन निराकरण नहीं कर देता तब तक उन्हें अयोग्यता नोटिस नहीं दिया जा सकता। इस पर डिप्टी स्पीकर के वकील ने पहले सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित करने का प्रयास किया। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा मांगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नोटिस आया था लेकिन वो वैरिफाइट मेल से नहीं आया था।
इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या उस नोटिस को रद्द करने से पहले डिप्टी स्पीकर ने उन विधायकों से नोटिस भेजने की सत्यता जानी या नहीं जिनके उसके ऊपर हस्ताक्षर थे। सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल पर महाराष्ट्र सरकार और डिप्टी स्पीकर फंस गए और समय मांगने लगे। बस, सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को आधार बनाते हुए बागियों को 12 जुलाई की शाम पांच बजे तक का समय दिया और डिप्टी स्पीकर से हलफनामा मांगा कि किस आधार पर उन्होंने अपने खिलाफ आए प्रस्ताव को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट इस कार्यवाही से संबंधित सभी रिकार्ड समेत डिप्टी स्पीकर को तलब किया है। तीन दिन के भीतर हलफनामा और 5 दिन के भीतर रिज्वाइंडर के साथ 11 जुलाई को फिर से तारीख निर्धारित कर दी।
यहां तीन बातें हो सकती हैं, पहली यह कि सुप्रीम कोर्ट का रुख देखते हुए उद्धव इस्तीफा दें और अगली सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त करें दूसरा यह कि वो बागियों की नए सिरे से मान-मनौव्वल करें- जैसे वो मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी को छोड़ सोनिया सेना के चरणों में बैठ गए थे। तीसरी बात यह कि वो एकनाथ शिंदे के उस बात को मान लें कि उद्धव कांग्रेस और एनसीपी को से अलग हो कर बीजेपी के साथ सरकार बनाएं। हालांकि दूसरा और तीसरा विकल्प कठिन हैं-तीसरा तो और भी कठिन हैं, ऊपर से बागियों के भाव अब आसमान पर हैं। फिर भी राजनीति में किस पल क्या हो- यह कहना बहुत मुश्किल है।
वैसे, अब यह दिखाई देता है कि बागियों को फ्री हैंड मिल गया है। वो अब खुलकर राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के सामने पेश होकर उद्धव से समर्थन वापसी का पत्र सौंपेंगे। और फिर देवेंद्र फडनबीस के नेतृत्व में नई सरकार बनाएंगे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भले ही हों लेकिन एकनाथ शिंदे किंग मेकर की स्थिति में होंगे। उनके सभी बागी साथी भी बीजेपी के विधायकों से ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में केंद्र सरकार को भी शामिल कर लिया है। केंद्र सरकार से कोर्ट ने पूछा है कि इस बारे में संसद के नियम क्या कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट से सभी पक्षों से पांच दिन के अंदर जवाब तलब किए हैं और याची पक्ष से उसके बाद तीन दिन में प्रत्युत्तर भी मांगा है। वैसे राजनीति के पंडितों का कहना है कि आने वाले 2 से 3 दिन में नई सरकार स्वरूप ले लेगी। और यह मामला यहीं खत्म हो जाएगा।