देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ किताब में कई हैरान कर देने वाले तथ्यों को समेटा है। इस बीच पंडित पंडित जवाहर लाल नेहरू को लेकर कई दावे भी किए गए हैं, जिनमें से एक दावे के मुताबिक बताया गया है कि नेपाल भारत में विलय चाहता था लेकिन उस वक्त के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने विलय के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस किताब में जिक्र किया गया है कि यह प्रस्ताव नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह द्वारा नेहरू को दिया गया था लेकिन नेहरू ने इसे ठुकरा दिया। हालांकि, प्रणब दा ने अपनी किताब ने बताया कि अगर इंदिरा गांधी पंडित नेहरू के स्थान पर होतीं तो वे ऐसा नहीं करती।
प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो 2012 से लेकर 2017 तक भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे। प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) ने भारतीय राजनीति में छह दशक बिताए। राष्ट्रपति रहने के अलावा प्रणब मुखर्जी केन्द्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे। 2009 से 2012 तक प्रणब मुखर्जी भारत के वित्त मंत्री थे। इनका जन्म 11 दिसंबर 1935 को हुआ था। आज देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुण्यतिथि है, 31 अगस्त 2020 को उन्होंने देहत्याग किया था। वे लम्बे समय तक कांग्रेस के दिग्गज और गांधी परिवार के करीबी नेता रहे थे। कहा तो यह भी जाता है कि भारत पर शासन करने वाले गांधी परिवार की अंदरूनी बातों से भी भली भांति परिचित थे।
अपनी बुक में लिखी बात
ऑटोबायोग्राफी ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ के चैप्टर 11 ‘माई प्राइम मिनिस्टर्स: डिफरेंट स्टाइल्स, डिफरेंट टेम्परमेंट्स’ शीर्षक के तहत प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने नेहरू को यह प्रस्ताव दिया था कि नेपाल का भारत में विलय कर उसे एक प्रांत बना दिया जाए, मगर तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर दिया था। उन्होंने आगे लिखा है कि अगर इंदिरा गांधी नेहरू के स्थान पर होतीं तो इस अवसर को जाने नहीं देतीं जैसे उन्होंने सिक्किम के साथ किया था।
उन्होंने अपनी किताब में लिखा, ‘नेहरू ने बहुत कूटनीतिक तरीके से नेपाल से निपटा। नेपाल में राणा शासन की जगह राजशाही के बाद हरू ने लोकतंत्र को मजबूत करने अहम भूमिका निभाई। दिलचस्प बात यह है कि नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने नेहरू को सुझाव दिया था कि नेपाल को भारत का एक प्रांत बनाया जाए। लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।’ उनका कहना है कि नेपाल (एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसा ही रहना चाहिए। वह आगे लिखते हैं कि अगर इंदिरा गांधी उनकी जगह होतीं, तो शायद वह अवसर का फायदा उठातीं, जैसा कि उन्होंने सिक्किम के साथ किया था।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने किताब में उल्लेख किया है कि प्रत्येक पीएम की अपनी कार्यशैली होती है। लाल बहादुर शास्त्री ने ऐसे पद संभाले जो नेहरू से बहुत अलग थे। उन्होंने लिखा कि विदेश नीति, सुरक्षा और आंतरिक प्रशासन जैसे मुद्दों पर एक ही पार्टी के होने पर पर भी प्रधानमंत्रियों के बीच अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं।
गौरतलब है कि उन्होंने यह पुस्तक पिछले साल अपने निधन से पहले लिखी थी। रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक मंगलवार को बाजार में आई है।अब इसे लेकर दिवंगत नेता के बच्चों में मतभेद उभर आए हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने मंगलवार को पब्लिकेशन हाउस से किताब का प्रकाशन रोकने को कहा। उन्होंने कहा कि वह एक सामग्री को देखना और अप्रूव करना चाहते हैं। इस बीच उनकी बहन और कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि उनके पिता किताब को अप्रूव कर चुके थे। साथ ही उन्होंने अभिजीत को सस्ती लोकप्रियता से बचने की नसीहत दी है।
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