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Death Anniversary: फिर याद आए शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, बजाई थी आजाद भारत में पहली शहनाई

बिस्मिल्लाह खां की बरसी

शादी हो या फिर मातली माहौल अक्सर आपको शहनाई की धुन सुनने को मिल जाती है। खास बात इस शहनाई की गूंज ने न केवल अपने देश बल्कि पूरे विश्व में पहुंचाने का श्रेय शहनाई के जादूगर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को जाता है। बिस्मिल्लाह खां ने 21अगस्त 2006को इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। उनकी आज आज 16वी बरसी है। क्या नेता क्या अभिनेता सभी उनकी शहनाई की धुन के मुरीद थे। उनके रूह में शहनाई और दिल में काशी बसी हुई थी। बिस्मिल्लाह खां साहब को काशी से बेहद लगाव था इसी के चलते वह कहीं और जा कर नहीं बसे। उनकी शहनाई के धुन को सुनने के लिए इंदिरा गांधी खुद खां साहब को निमंत्रण देकर बुलाती थी।

बाबा साहेब ठाकरे खां साहब के सबसे बड़े फैन थे। हर कार्यक्रम में वो उन्हें महाराष्ट्र बुलाते थे। उस समय केंद्र और प्रदेश के कई मंत्रियों ने उस्ताद की याद में कई एलान कर दिए थे। समय के साथ-साथ एक-एक कर घोषणाएं दम तोड़ती गईं। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को गंगा से बड़ा लगाव था। वे मानते थे कि उनकी शहनाई के सुरों से जब गंगा की धारा से उठती हवा टकराती थी तो धुन और मनमोहक हो उठती थीं। यही वजह है कि दुनिया भर से उस्ताद को अपने यहां आने और रहने के प्रस्ताव आए, लेकिन उनका बस एक ही जवाब होता था, 'अमा यार ! गंगा से अलग रहने को तो न कहो'।

काशी से था खासा लगाव

आज भी दालमंडी स्थित खान साहब के कमरों में रियाज की पिपहरी, जूता, चप्पल, उनके कागजात को सहेज कर रखा गया है। खां साहब को गंगा और काशी विश्वनाथ से खांसा लगाव था। इसीलिए वो काशी छोड़कर कभी नहीं गए। यह भी अजीब इत्तफाक है कि खां साहब की पैदाइश की तारीख भी 21है और उनके इंतकाल की भी। 21मार्च को उनका जन्म हुआ था और 21अगस्त को उनका देहांत।

कौन था ये शहनाई का जादूगर

किसे मालूम था कि 21मार्च 1916को बक्सर जिले के डुमरांव राज के मुलाजिम पैगम्बर बख्श मियां के घर जन्मे कमरुदीन ही आगे चलकर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बन जाएंगे। शहनाई से लगाव देखकर आर्थिक तंगी से बेहाल पैगम्बर बख्श के बेटे कमरुदीन को शहनाई के गुर सीखने के लिए मामू अली बक्श के यहां बनारस भेज दिया। रियाज के बूते पर साधारण शहनाई पर शास्त्रीय धुन बजाकर पूरे विश्व को अपना मुरीद बना लिया। सबसे पहले 1930में इलाहाबाद में कार्यक्रम पेश करने का मौका मिला। इसके बाद तो जैसे पीछे मुड़कर देखने का मौका हीं नहीं मिला।

कब कब मिला पुरस्कार

1956 – संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार

1968 – पद्मविभूषण

1980 – पद्मभूषण

1992 – तराल मौसिकी

2001 – भारत रत्न