साल 1962, दिन 18नवंबर का था। इस दिन भारत के महान सपुतों ने रेजांगला की शौर्य गाथा लिखी थी। रेजांगला के युद्ध को आज 59साल हो गए हैं। इस अवसर पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना की ओर से तैयार किए गए नए रेजांगला वॉर मेमोरियल को देश को समर्पित किया। लेह-लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर अहीरवाल के वीरों ने ऐसी अमर गाथा लिखी, जिसे याद कर आज भी देश के युवाओं के जेहन में देशभक्ति की भावना पैदा हो जाती है।
मेजर शैतान सिंह ने दिखाया अदम्य साहस
ये युद्ध कई मायनों में अलग है।1962में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान भले ही भारत को मुंह की खानी पड़ी हो लेकिन रेजांगला के युद्ध में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट ('13कुमाऊं') के सैनिकों ने चीनी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। रेजांगला की लड़ाई में अदम्य साहस और वीरता के लिए भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था। लड़ाई के बाद मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को जब युद्धस्थल से उठाया गया था तो उनकी उंगली अपनी राइफल के ट्रिगर पर थी। यानी मरते दम तक वे चीनी सैनिकों से लोहा लेते रहे थे।
इस लड़ाई के दौरान भारतीय सेना की टुकड़ी के गोली-बारुद खत्म हो गए, तब भी ये वीर जवान डटे रहे। बंदूक की बटों से मार कर चीनी सैनिकों को भगाते रहे। चीनी सैनिकों के सिर पकड़-पकड़कर पहाड़ देकर मौत के घाट उतार दिया था। लेकिन बाद में चीनी सेना की तादाद ज्यादा होने के चलते 120में से 114सैनिकों वीरगति को प्राप्त हो गए और बाकी 06सैनिकों को चीन की पीएलए सेना ने युद्ध बंदी बना लिया था।
'ऐ मेरे वतन के लोगों'गाना इन शहीदों को है समर्पित
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली।।। देशभक्ति से ओतप्रोत यह गीत लता मंगेशकर द्वारा रेजांगला के शहीदों को ही समर्पित है। इसकी हर एक पंक्ति रेवाड़ी और अहीरवाल क्षेत्र के उन रणबांकुरों की शौर्य गाथा कहती है, जिन्होंने रेजागंला युद्ध के वक्त 1962में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला करके सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी। गाने को जब लता मंगेशकर ने गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आई थीं।
रेजागंला यु्द्ध में रेवाड़ी जिले के दो सगे भाइयों नायक सिंहराम और सिपाही कंवर सिंह यादव का भी जिक्र आता है, जो एक साथ एक ही बंकर में शहीद हुए। तीन माह बाद उनके और 96अन्य शवों को इसी क्षेत्र के जवान हरिसिंह ने जब मुखाग्नि दी तो उसका दिल दहल उठा था। मुखाग्नि देकर वह भी वहीं गिर पड़े थे।