RSS chief on Dussehra: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) जब भी कोई भाषण देते हैं दो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया उन्हें सुनती है। हमेशा से ही उनमें समाज तथा राष्ट्र के प्रति दृष्टिकोण की नवीनतम झलक दिखती है। वो हमेशा से देश के लिए पहले और लोगों के हित में बात करते हैं। यहां तक कि पिछले कुछ दिनों पहले तो वो मस्जिद में जाकर मैलियों से मुलाकात कर नफरत फैलाने वालों के खिलाफ आवाज उठाई। अब दशहरा (RSS chief on Dussehra) के अवसर पर उन्होंने जो किया है इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। इस बार दशहरें में मुख्य अतिथि के रूप में जानी-मानी माउंटेनियर और दो बार एवरेस्ट फतह कर चुकीं संतोष यादव थीं। करीब सौ वर्षों के संघ के इतिहास में यह पहला मौका है, जब दशहरा रैली में चीफ गेस्ट के रूप में किसी महिला को बुलाया गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief on Dussehra) ने अपने भाषण में भी कहा कि, सनातन और नित्य नूतन इन दोनों का होना जरूरी होता है।
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समाज को तोड़ने की कोशिश हो रही है
संघ की लंबी विचार यात्रा के दौरान भी इन दोनों कारकों के बीच संतुलन दिखता रहा है और उनके ताजा भाषण में भी इसकी साफ झलक मिलती है। उन्होंने ऐसे कई विषयों को उठाया, जिन्हें विवादित या संवेदनशील कहा जा सकता है, लेकिन उन पर पर्याप्त लचीलेपन का परिचय दिया। संघ प्रमुख भागवत ने महिलाओं के बारे में कहा कि आधे समाज की उपेक्षा करके देश का नवनिर्माण नहीं हो सकता। अल्पसंख्यक समाज को लेकर लगने वाले आरोपों का भी उन्होंने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि समाज को तोड़ने की कोशिश हो रही है और इसे रोकने के लिए मुस्लिम समाज से संवाद कायम रखना होगा।
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कई लो हिंदू शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहते हैं
जनसंख्या को लेकर संघ प्रमुख ने कहा कि, इससे जुड़े हर पहलू का ध्यान रखते हुए पूरे देश की संपूर्ण आबादी के लिए उपयुक्त नीति लाई जानी चाहिए, तभी उसका वांछित लाभ मिल पाएगा। मगर संघ की पारंपरिक दृष्टि के मद्देनजर विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच जनसंख्या के असंतुलन के मसले की ओर ध्यान खींचना भी वह नहीं भूले। इसी तरह हिंदू राष्ट्र का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कई लोग इस अवधारणा से सहमति जताते हुए भी हिंदू शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि संघ को इस पर कोई एतराज नहीं है, जिसे जो शब्द उपयुक्त लगे, उसका प्रयोग कर सकता है, लेकिन संघ अपने स्तर पर इस शब्द का प्रयोग करता रहेगा। जाहिर है, कोई भी संगठन आलोचकों या विरोधियों के कहे मुताबिक अपने विचारों में बदलाव नहीं कर सकता, लेकिन अच्छी बात यह है कि संघ अपने विचारों के संभावित प्रभावों को लेकर न केवल गंभीर और संवेदनशील है बल्कि यथासंभव लचीलापन भी दर्शा रहा है। इससे उसकी परिपक्वता झलकती है।
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