PM Modi in Kullu Dussehra: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi in Kullu Dussehra) बुधवार को हिमाचल प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा उत्सव में पहुंचे। वो देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कुल्लू दशहरा उत्सव में भाग लिया। पीएम मोदी से पहले देश के किसी भी प्रधानमंत्री ने इसमें भाग नहीं लिया था। कुल्लू दशहरा उत्सव में पहुंचे पीएम मोदी (PM Modi in Kullu Dussehra) ने प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए रघुनाथ जी के रथ तक पहुंचकर उनका आशीर्वाद लिया। पीएम मोदी को रथ के पास देखते हुए लोगों में उत्साह और भी ज्यादा भर गया।
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प्रोटोकॉल तोड़ रथ के पास पहुंचे पीएम मोदी
रघुनाथ जी इस क्षेत्र के मुख्य देवता हैं और यहां के लोगों के लिए पूजनीय हैं। लगभग 400 वर्षों के इतिहास में, नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री (Pm Modi in Kullu) हैं जो इसमें शामिल हुए। पीएम मोदी ने करीब 300 देवी-देवताओं की मौजूदगी में कुल्लू घाटी के प्रमुख देवता भगवान रघुनाथ को नमन किया। PM मोदी ने भगवान श्री रघुनाथ जी के रथ तक जाने का तत्काल निर्णय लिया और भगवान श्री रघुनाथ जी का आशीर्वाद लिया। जैसे ही मोदी रथ पर आए, चारों तरफ बड़ा ही उत्साह का माहौल था। पीएम मोदी ने लगभग डेढ़ घंटे तक तुरही और ढोल की थाप के बीच रथ यात्रा को देखा। जब प्रधानमंत्री मुख्य देवता को नमन कर रहे थे, उस समय भीड़ को प्रबंधित करने का कार्य भगवान रघुनाथ के सेकंड-इन-कमांड देवता नाग धूमल के पास था।
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बता दें कि, कुल्लु में सदियों से यह परंपरा रही है कि जब भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है तो नाग धूमल सड़क को साफ करते हैं और भीड़ को नियंत्रित करते हैं। कुल्लू दशहरा (Kullu Dussehra) के दौरान इकट्ठे देवता, जो आम तौर पर 250 तक होते हैं, जुलूस के दौरान मुख्य देवता के साथ जाते हैं। इस बार वह सभी 11 अक्टूबर को उत्सव के समापन तक ढालपुर मैदान में रहेंगे।
लाई जाती हैं रंग-बिरंगी पालकियां
इस दशहरे उत्सव के दौरान लोग रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं। साथ ही रंगबिरंगी पालकियों में सभी देवी देवताओं की मूर्तियों को रखा जाता है और यात्रा निकाली जाती है। उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आ कर मिलते हैं जिसे ‘मोहल्ला’ कहते हैं। रघुनाथ जी के इस पड़ाव पर उनके आसपास अनगिनत रंगबिरंगी पालकियों का दृश्य बहुत ही अनूठा लेकिन लुभावना होता है और सारी रात लोगों का नाचगाना चलता है।
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इसलिए खास है ये पर्व
इस त्योहार की शुरुआत 1637 में राजा जगत सिंह के शासनकाल के दौरान हुआ। उन्होंने दशहरे के दौरान कुल्लू के सभी स्थानीय देवताओं को भगवान रघुनाथ के सम्मान में एक अनुष्ठान करने के लिए आमंत्रित किया था। तब से, सैकड़ों ग्राम मंदिरों से देवताओं की वार्षिक सभा एक परंपरा बन गई है। भारतीय रियासतों के उन्मूलन के बाद, जिला प्रशासन देवताओं को आमंत्रित करता रहा है। कुल्लू प्रशासन द्वारा संकलित एक संदर्भ पुस्तक के अनुसार, कुल्लू घाटी में 534 ‘जीवित’ देवी-देवता हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से देवभूमि या देवताओं के निवास के रूप में भी जाना जाता है। कुल्लू दशहरा उत्सव का समापन ब्यास नदी के तट पर ‘लंका दहन’ अनुष्ठान के साथ होता है। जिसमें सभी एकत्रित देवता भाग लेते हैं।