Samudrayaan after Chandrayaan: अमेरिका, चीन जैसे कई विकसित देशों की तरह अब भारत भी पाताल के रहस्यों को भेदने के लिए पूरी तरह खुद को तैयार कर रहा है।दरअसल आसमान में इतिहास रचने की तैयारी के बाद अब भारत समुद्र की गहराई और वहां छुपी संसाधनों का पता लगाने के लिए पहला समुद्री मिशन शुरू करने वाला है। हाल ही में राज्यसभा में इस बात की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि भारत जल्द ही अपने पहले महासागर मिशन समुद्रयान के तहत मानवयुक्त पनडुब्बी (पनडुब्बी जिसमें इंसान हो) को गहरे समुद्र में भेजने जा रहा है। यह पनडुब्बी तीन व्यक्तियों को समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक ले जाएगी।
इस पनडुब्बी का नाम ‘मत्स्य 6000’ रखा गया है। इस पनडुब्बी के पहले स्टेज का परीक्षण मार्च 2024 तक पूरा हो जाएगा। जिसका मतलब है कि साल 2026 तक ‘मत्स्य 6000’ तीन भारतीय को महासागर में 6000 मी. की गहराई में ले जाएगी।
इस मिशन (Samudrayaan after Chandrayaan) की शुरुआत केंद्र सरकार की ब्लू इकोनॉमी पहल के तहत की गई थी। यह भारत का पहला ऐसा समुद्री मिशन है जिसमें मानव का समुद्र की गहराइयों में जाना शामिल हैं। इस मिशन का मकसद गहरे समुद्र में संसाधनों और जैव विविधता पर रिसर्च करना है। मिशन की खास बात ये है कि इसमें सबमर्सिबल का इस्तेमाल सिर्फ एक्सप्लोरेशन के लिए किया जाएगा, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र को न्यूनतम या शून्य क्षति पहुंचे। फिलहाल इस मिशन पर चेन्नई का राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) काम कर रहा है। समुद्रयान मिशन के तहत तीन लोगों को समुद्र के 6000 मीटर की गहराई तक भेजा जाएगा। इन तीनों को वहां तक भेजने के लिए जिस वाहन को तैयार किया जा रहा है, उसे ‘MATSYA 6000’ का नाम दिया गया है।
विश्व बैंक के अनुसार आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के लिए समुद्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए महासागर के संसाधनों का सतत उपयोग ही ब्लू इकोनॉमी है। भारत में ब्लू इकोनॉमी के अंतर्गत नौ परिवहन, पर्यटन, मछली पालन और तटीय गैस एवं तेल आदि शामिल हैं। ब्लू इकोनॉमी के कारण एक्वाकल्चर और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी को बहुत ही सहयोग मिलता है। इससे खाद्य समस्या को हल करने में भी बहुत मदद मिलेगी।
29 अक्टूबर, 2021 को केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस मिशन (Samudrayaan after Chandrayaan)को लॉन्च किया था। इस मिशन के लॉन्च के साथ ही भारत, अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन जैसे उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गए जिनके पास पहले से ही समुद्र के भीतर गतिविधियों को अंजाम देने के लिए विशिष्ट तकनीक हैं। इस मिशन को पूरा करने के लिए पूरे 6000 करोड़ का बजट बनाया गया है और यह महासागर मिशन का ही एक हिस्सा है। ‘डीप ओशन मिशन’ यानी समुद्र यान मीशन पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के प्रस्ताव को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा 16 जून, 2021 को मंजूरी दी गई थी।
समुद्रयान मिशन (Samudrayaan after Chandrayaan)के पूरा होना भारत की वैज्ञानिक क्षमता को तो बढ़ाएगा ही, इसके अलावा यह भारत के लिए एक उपलब्धि साबित होगी, जो दुनिया के अन्य देशों के सामने भारत के राष्ट्रीय सम्मान का निर्माण भी करेगा। इसके अलावा अगर भारत इस मिशन में सफल रहा तो भारत भी गहरे समुद्र और संसाधनों की खोज में विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। बता दें कि भारत से पहले कई विकसित देश इस मिशन को अंजाम दे चुका है, लेकिन भारत पहला ऐसा विकासशील देश होगा, जो इस बड़े मिशन को अंजाम देने में कामयाब हो पाएगा।
समुद्रयान मिशन का उद्देश्य गहरे समुद्र में दुर्लभ खनिजों को ढूंढना और उसपर रिसर्च करना है। यही कारण है कि पनडुब्बी पानी के अंदर अध्ययन के लिए तीन व्यक्तियों को 6000 मीटर की गहराई पर ले जाएगा।
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