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हाथ नहीं थे तो पैरों को बना लिया अपनी ताकत! बेहद अनोखी है स्वप्‍ना के जज्‍बे की कहानी

Success Story

Success Story: हर किसी इंसान की अपनी जिंदगी में इच्छा होती है कि वो अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करे। मगर ये सपना किसी का पूरा हो पता है तो किसी का नहीं। लेकिन इनमें से कुछ लोग ऐसे भी होते है जो कई मुसीबतों का सामना करने के बावजूद कभी हार नहीं मानते हैं ऐसी ही कुछ दिल छू लेने वाली कहानी है स्वप्‍ना ऑगस्टाइन की जिन्हें लगभग 12 साल की उम्र तक ऐसा लगता रहा की उनके हाथ अभी शरीर से बाहर नहीं निकले हैं। उम्र बढ़ने के साथ यह उम्‍मीद बुझती गई। उन्‍हें कड़वे सच का एहसास होने लगा।

स्‍वप्‍ना को मालूम हुआ की बिना हाथों के ही रहेंगी। लेकिन, इस बात से वह नाउम्‍मीद नहीं हुईं। हाथ नहीं थे तो स्‍वप्‍ना ने पैरों को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया। पैरों से ऐसी कलाकारी की कि दुनिया देखती रह गई। वह विश्व विख्‍यात पेंटर हैं। वर्ल्‍ड मलयाली फाउंडेशन उन्‍हें ‘आइकन ऑफ द ईयर 2018’ अवार्ड से सम्‍मानित कर चुका है। वह सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं पूरे देश का गौरव हैं। अपनी पेंटिंग्‍स को वह एमएफपीए फोरम को बेचती हैं। यह फोरम अपने सभी सदस्‍यों को हर महीने रिम्‍यूनरेशन देता है। फिर भले उनका कॉन्ट्रिब्‍यूशन हो या नहीं। 1999 से स्‍वप्‍ना फोरम की मेंबर हैं।

बचपन से ही दिखने लगी थी प्रतिभा

21 जनवरी 1975 को केरल के एर्नाकुलम में पोथनीकाड में जन्मी स्वप्‍ना ऑगस्टाइन जन्म से ही बिना दोनों हाथ के हैं। पिता ऑगस्टाइन किसान और मां सोफी गृहिणी थीं। माता-पिता ने छह साल की उम्र में स्‍वप्‍ना का नाम विकलांगों के स्कूल (मर्सी स्‍कूल) में लिखा दिया था। उसी समय से स्‍वप्‍ना ने अपने पैरों से ड्रॉइंग और पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया था। कह सकते हैं कि उनका आर्टिस्‍ट बनने का सफर यहीं से शुरू हुआ था। स्‍वप्‍ना ने पेंटिंग और ड्रॉइंग सहित सभी कामों को अपने पैरों से करने की आदत बना ली थी।

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पैरों के पंजों से थामी पेंसिल

चार भाई-बहनों में स्‍वप्‍ना सबसे बड़ी थीं। डिलीवरी के बाद ही उनकी मां को बता दिया गया था कि स्‍वप्‍ना बिना हाथों के ही रहेंगी। चार साल के बाद स्‍वप्‍ना ने पैरों के पंजों से पेंसिल को थामा। उन्‍होंने इसमें इतनी महारत हासिल कर ली कि बिना कठिनाई लिखने के साथ स्‍केचिंग भी करने लगीं। उन्‍होंने अलप्‍पुझा के सेंट जोसेफ कॉलेज से हिस्‍ट्री में ग्रेजुएशन किया।

1999 में बन गईंं MFPA की मेंबर

अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद स्‍वप्‍ना ने पूरा फोकस पेंटिंग पर लगा दिया। उन्‍होंने एकराइलिक पेंटिंग की वर्कशॉप भी की। धीरे-धीरे वह पेंटिंग के प्रफेशनल तरीकों की ओर शिफ्ट होने लगीं। इस कड़ी में उन्‍होंने कैनवस पर पेंटिंग बनानी शुरू की। केरल में अपनी एक दोस्‍त के मार्फत स्‍वप्‍ना को माउथ एंड फुट पेंटिंग आर्टिस्ट्स (MFPA) के बारे में पता चला। सहेली ने कहा कि स्‍वप्‍ना को इसका हिस्‍सा बनना चाहिए। MFPA दिव्‍यांग कलाकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय पंजीकृत सोसाइटी है। 1999 में स्‍वप्‍ना इसकी मेंबर बन गईं। वह उन 27 भारतीय आर्टिस्‍ट में थीं जिनका इस इंटरनेशनल सोसाइटी में सेलेक्‍शन हुआ था, जिसके बाद स्‍वप्‍ना ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।