कद में छोटा लेकिन दिलेरी बेहद ज्यादा। इसलिए तो कहते हैं,देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर। देश के दूसरे प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri को कमतर आंकने वाले पाकिस्तान तो भारी क्षति का सामना करना पड़ा। आज 2 अक्टूबर को जहां महात्मा गांधी की जयंती है,वहीं आज ही के दिन देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती है। आइए जानते हैं लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी कहानी।
Lal Bahadur Shastri का जन्म मुगलसराय में हुआ था। तब उत्तर भारत के साधारण परिवारों में छोटे बच्चों को प्यार से लल्लू,लल्लन या नन्हे बुलाया जाता था। कम लोगों को पता होगा कि शास्त्री जी को भी घरवाले प्यार से नन्हे पुकारते थे। तपती दुपहरी में नन्हे नंगे पाव स्कूल जाते थे। रास्ते में दो बार गंगा नदी पार करनी होती थी। वे सिर पर किताबें बांध लेते थे। ये कहानी देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की है। लाल बहादुर शास्त्री के इस किस्से को जानकर आज की पीढ़ी आश्चर्य करे तो कोई अतिसयोक्ति नहीं होगी।
आज के जमाने में जहां किसी पद को पा लेने मात्र से उनके तेवर सातवें आसमान पर हो जाता है वहीं,देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री(Lal Bahadur Shastri) सर्वोच्च पद पर होते हुए भी बिल्कुल अलग थे। उनके संघर्ष की कहानियां आपको हैरान कर देंगी। वह कद में भले ही छोटे थे लेकिन 65 की लड़ाई में उन्होंने पाकिस्तान को जिस तरह से तगड़ा जवाब दिया उसने बता दिया कि शास्त्री जी नरमदिल भले हैं पर दुश्मन को छोड़ने वाले नहीं हैं।
तब उन्होंने खुले मंच से कहा था, ‘अगर तलवार की नोक पर या ऐटम बम के डर से कोई हमारे देश को झुकाने चाहे, दबाना चाहे तो ये देश हमारा दबने वाला नहीं है। एक सरकार के नाते हमारा क्या जवाब हो सकता है सिवाय इसके कि हम हथियारों का जवाब हथियारों से दें।’ तत्कालीन पीएम की इस गर्जना से पाकिस्तान सहम गया था। हां, पाकिस्तान के हुक्मरानों को लगा था कि चीन से 62 की जंग लड़कर भारत कमजोर हो चुका होगा। पीएम की हाइट को लेकर भी उसने गलतफहमी पाल ली थी। ऐसे में 22 दिन तक घनघोर संग्राम चला और संयुक्त राष्ट्र को बीचबचाव के लिए आना पड़ा था।
सत्य और अहिंसा के पुजारी के तौर पर अगर हम महात्मा गांधी को पूजते हैं तो उसी दिन (2 अक्टूबर) जन्मे शास्त्री जी ने दूसरों का दर्द बांटने की जो शिक्षा दी वह भारतीयों को युगों-युगों तक नेकी की राह दिखाती रहेगी। सर्वोच्च पद पर होते हुए भी उनकी विनम्रता और जमीन से जुड़े होने की भावना ऐसी थी कि लोग कहते हैं कि शास्त्री जैसा कोई दूसरा नहीं होगा। शास्त्री जी बापू को गुरु मानते थे। एक बार उन्होंने कहा था कि मेहनत प्रार्थना करने के समान है। इस भावना को उन्होंने अपने जीवन में अपनाया भी। वह जो फैसला देश के लिए लेते उसे पहले अपने घर में सख्ती से अपनाते थे। आगे पढ़िए रोचक और प्रेरक किस्से, बच्चों को भी जरूर सुनाइएगा।
प्रधानमंत्री पद पर होते हुए लिया कार लोन
शास्त्री जी पीएम बन चुके थे। वह साल 1964 था। घरवालों ने कार खरीदने की सोची। वीएस वेंकटरमन पीएम के सहायक थे। उनसे पूछने पर शास्त्री जी को पता चला कि नई फिएट कार 12,000 रुपये की है। परिवार के पास तब बैंक में केवल 7,000 रुपये थे। 5000 रुपये की और जरूरत थी। पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने बैंक में 5,000 रुपये लोन के लिए आवेदन किया। उसी दिन उन्हें लोन मिल गया। उनकी मौत के समय लोन की यह धनराशि बैंक को पूरी चुकाई नहीं जा सकी थी। बाद में ललिता शास्त्री ने पेंशन के पैसे से उसे अदा किया।
ज्यादा पैसे के चलते खुद की घटवाई पेंशन
आजादी के आंदोलन के समय जब वह जेल में थे, तो परिवार को 50 रुपये पेंशन मिलती थी। उनकी पत्नी ने उन्हें बताया कि पेंशन से 10 रुपये बचा लिए हैं। शास्त्री जी ने पीपुल्स सोसायटी से कहा कि उनकी पेंशन घटा दी जाए और 10 रुपये किसी जरूरतमंद को दिया जाए। उनका कहना था कि जब 40 रुपये में परिवार का गुजारा हो जा रहा है तो 50 रुपये क्यों मिले।
शास्त्री ने लाठीचार्ज की जगह पानी का बौछार करवाया
हां, लाल बहादुर शास्त्री तब मंत्री हुआ करते थे। बताते हैं तब यूपी में पुलिसवालों के लाठी चार्ज करने की जगह पहली बार शास्त्री ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पानी की बौछार करने के आदेश दिए थे।
पीएम रहने के बाद भी रुकवाया बेटे का प्रोमोशन
आजकल शहर के नेता भी कार में बड़ा बोर्ड लगाकर घूमते हैं। गांव का प्रधान खुद को विधायक या सांसद समझता है। लेकिन शास्त्री जी की सादगी के क्या कहने। उन्होंने बेटे के कॉलेज एडमिशन के कागजों में खुद को गवर्मेंट सर्वेंट लिखा था। एक डिपार्टमेंट में उनके बेटे को अचानक प्रमोशन मिल गया तो शास्त्री जी सख्त हो गए। फौरन आदेश दिया कि बेवजह प्रमोशन क्यों दिया गया, वापस न लिया तो कार्रवाई होगी।
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