कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत चार्जशीट दायर की गई है। ये चार्जशीट दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इंटरस्टेट सिंडिकेट चलाने से जुड़े एक केस में दायर की। लॉरेंस बिश्नोई के समेत 11 कुख्यात गैंगस्टर के खिलाफ मकोका लगाया गया हैं। जिसमें सम्पत नेहरा, जगदीप सिंह उर्फ जग्गू भगवानपुरिया, राजकुमार उर्फ राजू बसोड़ी, रविंदर उर्फ काली शूटर, नरेश सेठी, प्रियव्रत, अनिल लीला, राहुल संगा, सचिन भांजा और अक्षिय अंटिल का नाम शामिल हैं। सब के सब जेल की सलाखों के पीछे हैं। चलिए आपको बताते हैं कि लॉरेंस बिश्नोई के बारे में-
पंजाब से ताल्लुक रखने वाले लॉरेंस बिश्नोई ने पढ़ाई के दौरान ही 'डॉन' बनने की ठान ली थी। बिश्नोई ने पहला गैंग कॉलेज में ही बना लिया था। बिश्नोई ने अपना नेटवर्क पहले पंजाब और हरियाणा, फिर कई और राज्यों तक फैला लिया। बिश्नोई पर साल 2016 में एक कांग्रेस नेता की हत्या का आरोप लगा। उसने फेसबुक के जरिए हत्या की जिम्मेदारी ली थी। यही नहीं, वो सलमान खान की हत्या करने वाला था।
यह भी पढ़ें- Rolls Royce अब आसमान में भरेगी उड़ान, टेस्ट फ्लाइट में पास ब्रिटेन का इलेक्ट्रिक विमान
लॉरेंस बिश्नोई ने उत्तर भारत में अंडरवर्ल्ड पर कंट्रोल करने के लिए पिछले साल हर राज्य के लोकल गैंगस्टर्स के साथ हाथ मिलाने का प्लान बनाया। हाल ही में बिश्नोई ने गैंगस्टर काला जठेड़ी से बात की थी। बिश्नोई का नाम मुल्तानी मेक्सिकन ड्रग कार्टेल्स से जुड़ा हुआ है। उसे इसी साल अप्रैल में अमेरिकी एजेंसी ने गिरफ्तार किया था। बिश्नोई का दूसरा इंटरनैशनल कॉन्टैक्ट यूके में रहने वाला मॉन्टी था जिसके इटैलियन माफिया से रिश्ते थे। स्पेशल सेल ने मकोका की धारा 3 और 4 के तहत अलग एफआईआर दर्ज की थी।
क्या हैं मकोका– महाराष्ट्र सरकार ने 1999 में मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) बनाया था। इसका मुख्य मकसद संगठित और अंडरवर्ल्ड अपराध को खत्म करना था। साल 2002 में दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू कर दिया। फिलहाल महाराष्ट्र और दिल्ली में यह कानून लागू है। कानून विश्लेषकों का कहना है कि मकोका लगने के बाद आरोपियों को आसानी से जमानत नहीं मिलती है। मकोका के तहत पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का वक्त मिल जाता है, जबकि आईपीसी के प्रावधानों के तहत यह समय सीमा सिर्फ 60 से 90 दिन है। मकोका के तहत आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिन तक हो सकती है, जबकि आईपीसी के तहत यह अधिकतम 15 दिन होती है। इस कानून के तहत अधिकतम सजा फांसी है, वहीं न्यूनतम पांच साल जेल का प्रावधान है।