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बढ़ते कोरोना मामलों के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था बफर जोन का काम करेगी

इस मानसून सीजन में देशभर में औसत से ज्यादा बारिश होने से खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई का रकबा 1,000 लाख हेक्टेयर के ज्यादा हो गया है। पिछले साल की तुलना में करीब 9 फीसदी ज्यादा बुवाई हुई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 14 अगस्त 2020 तक खरीफ फसलों की बुवाई 1,015.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। अभी कई फसलों की बुवाई जारी है।

भारत की 1.38 अरब आबादी में से लगभग आधी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। जिसकी आर्थिक उत्पादन में हिस्सेदारी घटकर अब केवल करीब 15% रह गई है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उर्वरकों की ज्यादा मांग और मानसून की फसलों की बुवाई का हवाला देकर कहा है कि कृषि क्षेत्र में आर्थिक मंदी को दूर करने की क्षमता है। ये दोनों ग्रामीण गतिविधियों के प्रमुख संकेतक हैं, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में "उम्मीद की किरण" दिखाई दे रही है।

इसके विपरीत सरकार के बड़े वित्तीय अधिकारियों और विश्लेषकों का मानना है कि कोरोनोवायरस के मामले अब ग्रमीण इलाकों में तेजी से सामने आ रहें हैं जिसके बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना तय है।  इन सरकारी अधिकारियों ने कहा कि कृषि गतिविधियों में वृद्धि उतनी बड़ी नहीं हो सकती है, जिससे पूरे देश की आर्थिक मंदी दूर हो सकती है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस के मामलों में देखी जा रही है जो शुरू में महामारी से अलग-थलग थे।

हालांकि ग्रामीण गतिविधियों में सुधार सेआशा की एक झलक मिलती है। किसानों ने पिछले साल की तुलना में 1 जून से 31 जुलाई के बीच लगभग 9 % अधिक भूमि पर बुवाई किया, जबकि जून में उर्वरक का उत्पादन 4.2% बढ़ा। हालांकि अच्छे मानसून और ज्यादा बुआई के कारण कृषि क्षेत्र से आने वाली आर्थिक तेजी, शहरों से लौट कर गांवों में पहुंचे अधिशेष श्रम बल से जुड़ी जटिलताओं के कारण लंबे समय तक बरकरार नहीं रह सकती है।

अप्रैल और मई के बाद से देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है, और देश पहले की अपेक्षा गहरी आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद उपभोक्ता मांग में कमी और ग्रामीण ऋण में कमी आना इसका सबसे बड़ा कारण और संकेत दोनों ही है। अप्रैल-जून में ईंधन, बिजली, इस्पात, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और ऑटो की बिक्री की मासिक मांग में गिरावट अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को उजागर करती है।

विनिर्माण में उत्पादन में तेजी के लिए भारत के वायरस वक्र का समतल होना महत्वपूर्ण है। एक बार जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खुल जाती है, तो उम्मीद की जा सकती है कि निर्यात बढ़ेगा और घरेलू मांग में वृद्धि आएगी। भारत में दुनिया में कोरोना वायरस के संक्रमण की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है, और नए मामले तेजी से बड़े शहरों के बाहर उभर रहे हैं। इन सबके बावजूद उम्मीद है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सिकुड़ते निर्यात और विनिर्माण क्षेत्र के झटके के खिलाफ एक बड़े अवरोध क्षेत्र या बफर जोन का काम करेगी।.

डॉ. शफी अयूब खान

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