प्रतिद्वंद्वी निर्यातक देशों के निर्यात में गिरावट के कारण देश के गैर बासमती चावल की मांग ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है। चावल निर्यात से जड़े लोगों के हिसाब से तो 2020 में भारत के चावल निर्यात में एक साल पहले की तुलना में करीब 42% की वृद्धि हो सकती है।
दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत से ज्यादा निर्यात वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों को गिरा सकता है, देश के भरे हुए भंडारों को कम कर सकता है और किसानों से सरकारी खरीद को घटा सकता है।
चावल निर्यातक संघ को भारत का चावल निर्यात 2020 में पिछले साल के 9.9 मिलियन टन के मुकाबले बढ़कर 14 मिलियन टन होने का अनुमान है। क्योंकि सूखे के कारण दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चावल निर्यातक थाईलैंड का निर्यात गिर रहा है। कम फसल के कारण एक और बड़ा निर्यातक देश वियतनाम समस्याओं का सामना कर रहा है। इस तरह से इनका हिस्सा स्वाभाविक रूप से भारत के पास आ रहा है।
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चावल निर्यातक देश थाईलैंड में इस साल की शुरुआत में बड़ा सूखा पड़ा है, जिसने चावल की फसल को प्रभावित किया है। थाईलैंड का निर्यात 2020 में 6.5 मिलियन टन तक गिर सकता है, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे कम होगा।
तीसरे सबसे बड़े वैश्विक चावल निर्यातक वियतनाम के देश के प्रमुख चावल उगाने वाले  मेकांग नदी डेल्टा इलाके में कम पानी के कारण इस बार फसलें कमजोर रही हैं।
भारत मुख्य रूप से बांग्लादेश, नेपाल, बेनिन और सेनेगल जैसे देशों को गैर-बासमती चावल और ईरान, सऊदी अरब और इराक को प्रीमियम बासमती चावल का निर्यात करता है।
अफ्रीकी देशों के गैर-बासमती चावल की मजबूत मांग के कारण 2020 में भारत के चावल के निर्यात में वृद्धि होगी क्योंकि बासमती चावल की मांग ज्यादा स्थिर है, लेकिन गैर-बासमती में भारतीय चावल की आकर्षक कीमतों के कारण मांग में भारी वृद्धि देखी जा रही है।
उम्मीद है कि भारत का गैर-बासमती चावल का निर्यात एक साल पहले के 9.5 मिलियन टन से दोगुना हो सकता है, जबकि बासमती चावल का निर्यात 4.5 मिलियन टन के आसपास स्थिर रहेगा। निर्यातकों ने कहा कि भारत फ्री-ऑन-बोर्ड आधार पर 380 डॉलर प्रति टन कामत 5% टूटे हुए गैर बासमती चावल की पेशकश कर रहा था, जबकि थाईलैंड की कीमत 490 डॉलर प्रति टन पर समान ग्रेड के चावल की पेशकश कर रहा था।
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से चावल के निर्यात में गिरावट के अलावा बाढ़ के बाद चीन ने भी अफ्रीकी देशों को निर्यात में कटौती की है। अन्य देशों के विपरीत इस समय भारत में चावल का बड़े पैमाने पर भंडार है। जिससे ज्यादा निर्यात होने पर भी स्थानीय बाजार में चावल की कमी नहीं होगी।.
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