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Chaitra Navratri 2022: आज नवरात्रि का दूसरा दिन, मां दुर्गा के स्वरूप ब्रह्मचारिणी की इस तरह करें पूजा, सुनें कथा

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आज चैत्र नवरात्र का दूसरा दिन है। नवरात्र का हर दिन मां दुर्गा के नौ रूपों में से किसी न किसी एक रूप से संबंध रखता है । चैत्र नवरात्र के दूसरा दिन का संबंध मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी से है। आज मां दुर्गा की ब्रह्मचारिणी स्वरूप में पूजा की जायेगी। यहां 'ब्रह्म' शब्द का अर्थ तपस्या से है और 'ब्रह्मचारिणी' का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली। मां दुर्गा का ये स्वरूप अनन्त फल देने वाला है।  मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है।

 

शुभ मुहूर्त-

ब्रह्म मुहूर्त- 04:37 ए एम से 05:23 ए एम

अभिजित मुहूर्त- 12:00 पी एम से 12:50 पी एम

विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:20 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 06:27 पी एम से 06:51 पी एम

सर्वार्थ सिद्धि योग- 06:09 ए एम से 12:37 पी एम

निशिता मुहूर्त- 12:01 ए एम, अप्रैल 04 से 12:47 ए एम, अप्रैल 04

 

अशुभ मुहूर्त-

राहुकाल- 05:06 पी एम से 06:40 पी एम

यमगण्ड- 12:25 पी एम से 01:58 पी एम

आडल योग- 06:09 ए एम से 12:37 पी एम

विडाल योग- 12:37 पी एम से 06:08 ए एम, अप्रैल 04

गुलिक काल- 03:32 पी एम से 05:06 पी एम

दुर्मुहूर्त- 05:00 पी एम से 05:50 पी एम

 

मां ब्रह्मचारिणी व्रत कथा

मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। नारदजी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, ताकि वे भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप के कारण उनका ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी नाम पड़ा। भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल-फूल खाए तथा 100 वर्ष तक शाक खाकर जीवित रहीं। कठोर तप से उनका शरीर क्षीण हो गया। उनक तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि आपके जैसा तक कोई नहीं कर सकता है। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगा। भगवान शिव आपको पति स्वरूप में प्राप्त होंगे।

 

मां ब्रह्मचारिणी मंत्र

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥