Dussehra 2022: रावण (Ravana) के बारे में रामायण में आपने भी पढ़ा होगा। लेकिन क्या कभी रामचरितमानस, रावण संहिता या स्कंद पुराण में उसके बारे में पढ़ा? ये वो पौराणिक किताबें हैं, जिनमें रावण से जुड़े अनसुने या अज्ञात प्रश्नों का जवाब मिलता है। कुछ लोग अक्सर ये सवाल करते हैं कि रावण को ब्रह्माजी से उसे कौन-कौन से वरदान मिले थे, वह कितने साल जिया या उसका वध कितनी आयु में हुआ?
श्री राम कथा सुनाने वाले श्री भगवान सिंह दास जी कहते हैं कि यह तो सबको मालूम ही होगा कि रावण के 10 शीश थे और त्रेतायुग के अंतिम चरण के आरम्भ में उसका जन्म हुआ था। रावण संहिता में ही यह उल्लेख है कि रावण ने अपने भाइयों (कुम्भकर्ण और विभीषण) के साथ ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्या की।
हर 1,000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वह अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए। रावण ने उनसे वर मांगा कि देव, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व, नाग, किन्नर, यक्ष इत्यादि कोई न मार पाए। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्तु। लेकिन नर-वानर से खतरा हो सकता है ये भी याद रखना। तब रावण बोला- भगवन् इनका मुझे भय नहीं है, ये तो हमारा आहार हैं। तत्पश्चात् रावण ने कुबेर से लंका छीन ली और वर्षों तक स्वर्ग के देवों से संघर्ष चला।
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अनेक देव-दानवों, यक्ष-वीरों को पराजित करते हुए रावण जब भगवान शिव के पास पहुंचा, तो उसने कैलाश पर्वत को उठाने की चेष्टा की। वहां उसकी भुजाएं दब गईं। तब उसने 1000 वर्षों तक शिव-स्तुति की। शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे वर दिया। इस प्रकार रावण अत्यंत बलशाली और मायावी हो गया।
रावण पिछले जन्म में कौन था?
रावण के पिछले जन्म के बारे में श्रीमद्भागवत पुराण में बताया गया है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार रावण अपने पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के बैकुंठ लोक में द्वारपाल था। बैकुंठ लोक में रावण का नाम जय था। आपको बता दें कि रावण उस लोक में भगवान विष्णु का एक सेवक था। वह अपने कार्य को निष्ठा से करता था।