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क्या है ‘स्वाहा’ शब्द का अर्थ, जानिए यज्ञ में आहुति के दौरान क्यों कहा जाता है इसे?

क्या है 'स्वाहा' शब्द का अर्थ

हमारे देश में हवन की परंपरा काफी पुरानी है। हिंदू धर्म में हर शुभ मौकों पर हवन-अनुष्ठान का विधान है। मान्यता है कि कोई भी मंगल कार्य करने से पहले ईश्वर को जरूर याद करना चाहिए तभी कार्य सफल होते हैं। हवन करने के दौरान मंत्र के बाद स्वाहा शब्द जरूर बोला जाता है, इसके बाद ही आहुति दी जाती है। लेकिन आपने कभी ये सोचा है कि प्रत्येक आहुति पर स्वाहा शब्द क्यों बोला जाता है और इसे बोलना क्यों जरूरी है? क्या है इसके पीछे की कथा। अगर नहीं पता, तो चलिए हम आपको बता रहें हैं कि आखिर हर आहुति पर स्वाहा शब्द क्यों बोला जाता है।
 
क्या होता है स्वाहा का अर्थ
 
जब भी हवन होता है उसमें स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन सामग्री हवन कुंड में डाली जाती है। स्वाहा का अर्थ- सही रीति से पहुंचाना होता है। माना जाता है कि कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हविष्य का ग्रहण देवता न कर लें। देवता ऐसा हविष्य तभी स्वीकार करते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अपर्ण किया जाए।
 
हवन के दौरान क्यों बोला जाता है स्वाहा?
 
हवन के दौरान स्वाहा बोलने को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से कुछ कथा का जिक्र यहां किया जा रहा है। पहली कथा के मुताबिक स्वाहा राजा दक्ष की पुत्री थीं, जिसका विवाह अग्निदेव के साथ हुआ। इसीलिए जब भी अग्नि में कोई चीज समर्पित करते हैं, तो उनकी पत्नी को साथ में याद किया जाता है, तभी अग्निदेव उस चीज को स्वीकार करते हैं।
 
स्वाहा हमेशा अग्निदेव के साथ
 
दूसरी कथा के मुताबिक एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया। उनके पास खाने-पीने की चीजों की कमी पड़ने लगी। इस कठिन परिस्थिति से बचने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने एक उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए। इसके लिए उन्होंने अग्निदेव को चुना,उस समय अग्निदेव की क्षमता भस्म करने की नहीं हुआ करती थी इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई। स्वाहा को आदेश दिया गया कि वे अग्निदेव के साथ रहें। इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित की जाती थी तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक पहुंचा देती थीं। तब से आज तक स्वाहा हमेशा अग्निदेव के साथ रहते हैं।

यज्ञ पूरा नहीं होता
 
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कोई भी यज्ञ तब तक पूरा नहीं होता है जब तक हवन का ग्रहण देवता नहीं कर लेते। हवन सामग्री को देवता तभी ग्रहण करते हैं जब अग्नि में आहुति डालते समय स्वाहा बोला जाता है।