Hindi News

indianarrative

केरल में मां-बेटी बनीं पुजारी, टूटा पुरुषों का वर्चस्व   

पूजा कराने के क्षेत्र में टूटा पुरुषों का वर्चस्व

किसी लक्ष्य को प्राप्त करने की लगन और इच्छा ही व्यक्ति को उपलब्धि की ओर ले जाती है। कुछ ऐसा ही केरल में एक मां-बेटी- अर्चना कुमारी और ज्योत्सना पद्मनाभन ने किया है, क्योंकि वे पुजारी बन गयी हैं और पुरुषों के सदियों पुराने वर्चस्व को तोड़ते हुए त्रिशूर और अन्य स्थानों के मंदिरों में अनुष्ठान कराती हैं।

उनके बारे में वास्तव में दिलचस्प बात यह है कि आम तौर पर एक मां एक बेटी को प्रेरित करती है, लेकिन यहां इसका उल्टा हुआ। दोनों महिलायें अपने पुजारी बनने का श्रेय लैंगिक समानता के प्रयासों या रूढ़ियों को तोड़ने के क़दम को नहीं देती हैं।

एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक़ रखने वाली ज्योत्सना ने कहा कि जब वह महज़ सात साल की थीं, तभी से उन्होंने तंत्र सीखना शुरू कर दिया था। पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा: “मैं अपने पिता पद्मनाभन नंबूदरीपाद को पूजा और तांत्रिक अनुष्ठान करते देखकर बड़ी हुई हूं। इसलिए, इसे सीखने का सपना मेरे दिमाग़ में तब से था, जब मैं बहुत छोटी थी।”

उनके लिए आगे का रास्ता आसान इसलिए भी था, क्योंकि वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि महिलायें आमतौर पर यह काम नहीं करती हैं, उन्होंने अपनी इच्छा अपने पिता के साथ साझा की, जिन्होंने उनके बारे में महसूस किया कि वह ईमानदार हैं।

आज वह वेदांत और साहित्य (संस्कृत) में डबल पोस्ट-ग्रेजुएट हैं।

उनकी मां अर्चना अपनी बेटी को संस्कारों को सीखते और अभ्यास करते देखकर प्रेरित हुईं,हालांकि वह एक गृहिणी थीं । “वह घर पर अपने द्वारा सीखे गए पाठों के बारे में विस्तार से चर्चा करती थी। वह जिन मंत्रों का जाप करती थी, उन्हें सुनकर और तांत्रिक क्रियाओं की मुद्रायें (प्रतीकात्मक हाथ के इशारे) देखकर, जाने या अनजाने में मैंने मूल बातें आत्मसात कर ली हैं। मेरे मन में और सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है।’

अर्चना को भी अपने पति का भी समर्थन मिला, जिन्होंने आपत्ति नहीं की और इसके विपरीत उन्हें प्रोत्साहित ही किया।