पूर्वोत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठ: मां दुर्गा को समर्पित शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो गए हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। 26 सितंबर को प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्रि का पहला दिन है। नवरात्रि के पहले घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान भक्त और साधक देवी दुर्गा के संपूर्ण स्वरूप की कथा श्रवण और पाठ करते हैं। दुर्गा सप्तशती, देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण में माता के समस्त स्वरूप और स्थान की वस्तृत जानकारी है।
मार्कण्डे पुराण में माता सती और उनसे संबंध 108 दिव्य शक्तिपीठ का वर्णन किया गया है। इन्ही शक्तिपीठो में से तीन दिव्य शक्तिपीठ देश के पूर्वोत्तर राज्य में है। असम के नीलांचल पर्वत पर जहां मां कामख्या देवी का स्थान है, मेघालय के पश्चिम जयंतिया पहाड़ी पर मां जयंतेश्वरी विराजमान हैं तो त्रिपुरा के उदयपुर की पहाड़ी पर मां त्रिपुर सुंदरी पूजायमान हैं। अमिताभ भूषण से जानिए इन मंदिरों के बारे में खास बातें।
माता सती की कथा
कुछ भी आगे जानने से पहले आपको इन तीनों शक्तिपीठ की महत्ता को विस्तार से जानना जरूरी है। इस दौरान सबसे पहले आपको भगवती सती की कथा को जानना होगा। भगवान शिव और माता सती की कथा दक्ष प्रजापति के यज्ञ से जुड़ी है। पुराण की कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष के यज्ञ स्थल पर महादेव शिव का अपमान हुआ तो माता पार्वती यज्ञ कुंड में प्राणों की आहुति देकर सती हो गई थीं। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने माता सती की शव को उठाकर भयानक तांडव करना शुरू कर दिया। उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की मृत देह को 108 भागों में विभक्त कर दिया। धरती के जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे, वे आज स्थान शक्ति पीठ हो गए हैं।
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दंतेश्वरी शक्तिपीठ मेघालय में स्थित
-मेघालय के जयंतिया पहाड़ी पर बसे नर्तियांग में माता सती की बाईं जंघा गिरी थी, जिससे इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई।
-यहां माता के मंदिर का निर्माण आज से 600 पूर्व महाराजा धन माणिक्य ने कराया था। माता के स्वप्नादेश पर नर्तियांग में दुर्गा मंदिर की स्थापना करने वाले स्थानीय जयंतिया राजा ने पास ही में भैरव मंदिर का भी निर्माण कराया था।
-नर्तियांग के दुर्गा मंदिर में माता जयंती जहां जयंतेश्वरी के रूप में पूजिता हैं, वहीं भैरव यहां कामदीश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं। महादेव के इस मंदिर में जयंतिया राज के पुराने आयुध और शस्त्र भी संरक्षित कर रखे गए हैं।
-पश्चिम जयंतिया पहाड़ी पर बसा नर्तियांग लंबे समय तक जयंतिया राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रही है। इस मंदिर की नवरात्रि पूजा और राजपुरोहित पंरपरा विशिष्ठ है।
कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ, असम
-असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित माता कामाख्या का मंदिर भी 108 शक्ति पीठों में से एक है।
-यहां देवी सती का योनि भाग गिरा था, यहां भगवती कामख्या योनि रूप में विराजती हैं। मां कामख्या देवी का यह मंदिर देश के प्राचीन मंदिरों में से एक है।
– इस मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में हुई थी। मंदिर का पुनर्निर्माण 16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नारा नारायण ने कराया था।
-मंदिर में माता कामाख्या 64 योगिनियों और दस महाविद्याओं के साथ विराजित हैं। ये दुनिया की इकलौती शक्तिपीठ है, जहां दसों महाविद्या- भुवनेश्वरी, बगला, छिन्नमस्तिका, काली, तारा, मातंगी, कमला, सरस्वती, धूमावती और भैरवी एक ही स्थान पर विराजमान हैं।
– इस मंदिर में आम भक्तों के अलावा यंत्र, मंत्र और तंत्र विद्या के साधकों का सालों भर तांता लगा रहता है। नवरात्री के अलावा इस मंदिर का अम्बुबाची उत्सव भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ, त्रिपुरा
-त्रिपुरा के उदयपुर की पहाड़ी पर बसे राधाकिशोर गांव में माता के मंदिर का निर्माण महाराजा धन माणिक्य ने 15वीं शताब्दी में कराया था।
– पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस शक्तिपीठ पर भगवती सती का दाहिना पैर गिरा था। यहां मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है।
-लोकश्रुति के अनुसार, राजा ने इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के लिए के लिए कराया था पर माता स्वप्नादेश और इस स्थान के कई विशिष्टता का ज्ञान होने पर उन्होंने यहां माता त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा की।
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