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हलाला के नाम पर क़ुर्बान होती महिलायें!

हम औरतों को मज़ाक बना कर रख दिया है साहब। “हलाला के चलते कभी शौहर की मां बन जाऊं,कभी भाभी बन जाऊं..ये मजाक हम औरतों के साथ कबतक चलता रहेगा ?”

ये गुहार है शबीना की ,जिनकी शादी 2009 में हुई। बदक़िस्मती कह लीजिए की शबीना को 2 साल तक कोई संतान नहीं हुई, जिसके बाद पति ने तलाक़ दे दिया,फिर कुछ दिन बाद जब बात बनी तो ससुर के साथ शबीना का हलाला किया गया। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि एक बार फिर से शबीना की ज़िंदगी में तूफ़ान आ गया और पति ने फिर से एक बार तलाक़ दे दिया। इसबार ससुराल की ओर से शबीना को देवर के साथ हलाला करने को कहा गया। इस गंदी परंपरा की कसौटी पर शबीना कसती गयी,वह पिसती गयी। लेकिन,मज़हब के नाम पर यह सब सहते-सहते उसका सब्र आख़िरकार जवाब दे गया। लिहाजा उसने अपनी आवाज़ को मुखरता से रखते हुए मोदी सरकार से गुहार लगायी है।

मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक़, हलाला और बहु विवाह के नाम पर जो रूढिवादी रिवाज़ चलता आ रहा है, उसे ख़ारिज करने के लिए इसी क़ौम की पढ़ी लिखी महिलायें खुल कर सामने आ रही हैं। इन महिलाओं का कहना है कि ऐसे लोग प्यार नहीं करते हवस के पुजारी होते हैं। विरोध करने वाली ये मोहतरमा ने उन कठमुल्लों को भी धमकी भरे लहज़े में पैग़ाम दिया है कि वो दिन दूर नहीं, जब मुस्लिम महिलायें अपने को सुरक्षित रखने के लिए ग़ैर मुस्लिमों में शादी करना शुरु कर देंगी।

तीन तलाक़ क़ानून, क़ानून के बने तक़रीबन तीन साल हो गये ,बावजूद इस तरह के तलाक़ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा। आये दिन मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ का दंश झेलना पड़ रहा है। और फिर उसके बाद शौहर को जेल से बचाने के नाम पर पीड़ित महिलाओं के साथ जो गंदा खेल खेला जा रहा है,वह काफ़ी पीड़ादायक ही नहीं,बल्कि एक पढ़े लिखे समाज के लिए कलंक भी है।

दरअसल,तीन तलाक़ के बाद मुस्लिम महिलाओं को अपने पति को जेल जाने से बचाने के लिए कभी देवर से हलाला करना पड़ता है, तो कभी बहनोई से, बावजूद हालात ऐसी की पीड़ित महिला का शौहर उसे रखने को तैयार नहीं और न ही ऐसे पीड़ितों के लिए मेंटेनेंस के नाम पर रक़म देने की कोई गुंजाईश।

हलाला के नाम पर महिलाओं के शोषण से तंग आकर पढ़ी लिखी और सम्मान से जीने की तमन्ना रखने वाली मुस्लिम महिलाओं ने एक बार फिर से मोदी सरकार से बड़ी मांग कर डाली है। तीन तलाक़ क़ानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने हलाला के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून बनाने की मांग कर डाली है।

डिस्क्लेमर: स्टोरी के बाइट में कही गयी बातों की सत्यता की पुष्टि India Narrative नहीं करता है।