दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक, तुंगनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले के पांच पंच केदार मंदिरों में सबसे ऊंचा है, जिसे अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देवराज सिंह रौतेला के अनुसार, पंच केदार मंदिरों में से तीसरे मंदिर को 27 मार्च की एक अधिसूचना में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में घोषित किया गया था।
अधिकारी ने ख़ुलासा किया कि एएसआई लंबे समय से तुंगनाथ को राष्ट्रीय विरासत घोषित करने की कोशिश कर रहा था और इसके लिए उसने जनता से आपत्ति और राय मांगी थी।
वह प्राचीन मंदिर, जो 12,106 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, इसका जुड़ाव पांडवों से है (फ़ोटो: सौजन्य: Twitter /@VertigoWarrior)
12,106 फीट की ऊंचाई पर स्थित प्राचीन मंदिर पांडवों से जुड़ा हुआ है। कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों को पराजित करने के बाद पांडव युद्ध के दौरान भ्रातृहत्या और ब्राह्मणहत्या या ब्राह्मणों की हत्या के अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने राज्य की बागडोर सौंप दी और भगवान शिव की पूजा करने और अपने पापों से मुक्त होने के लिए उनकी खोज में निकल पड़े।
वे वाराणसी पहुंचे, लेकिन युद्ध में छल और मृत्यु से बहुत परेशान होने के कारण भगवान उनसे बचना चाहते थे और नंदी का रूप धारण कर गढ़वाल में छिप गए। पांडव, उनका आशीर्वाद लेने के लिए गढ़वाल चले गए और वह भीम ही थे, जिन्होंने बैल को देखा और उसे भगवान शिव के रूप में पहचान लिया।
At an altitude of 12000 ft lies Tunganath temple, one among Panch Kedar. This is highest Shiva temple in the world pic.twitter.com/UZvs3nsQ1P
— Anu Satheesh 🇮🇳 (@AnuSatheesh5) September 11, 2022
उन्होंने नंदी की पूंछ और पिछले पैरों को पकड़ लिया, लेकिन भगवान ग़ायब हो गए और अलग-अलग हिस्सें में फिर से प्रकट हुए। वे केदारनाथ में कूबड़, तुंगनाथ में भुजायें, रुद्रनाथ में मुख, मध्यमहेश्वर में नाभि और पेट और कल्पेश्वर में बाल थे।
पांडवों ने शिव की पूजा करने और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए इन सभी पांच स्थानों पर मंदिरों का निर्माण किया।
केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का सभी ने स्वागत किया। आचार्य राम प्रसाद मैठानी ने मीडिया से कहा कि इससे मंदिर को मंदिर से जुड़ी कहानी को दुनिया तक पहुंचाने और प्रचारित करने का मंच मिलेगा। उन्होंने कहा, “यह निश्चित रूप से देश और विदेश में तुंगनाथ मंदिर के स्वरूप को एक विशिष्ट पहचान देगा।”