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निरंजना-फल्गू को फिर से सदानीरा बनाने का भगीरथ प्रयास

गया की इस नदी किनारे पितरों को पिंडदान करते श्रद्धालु

गंगा जी से मिलने वाली यह नदी कभी सदानीरा हुआ करती थी, लेकिन अब यह सूख चुकी है। जिस नदी में कुछ दशक पहले तक थोड़ी सी रेत हटाने के बाद पानी निकल आता था, वहां अब जेसीबी से कई फीट खोदने के बाद भी पानी नहीं निकलता है।

यह वही नदी है, जिसके तट पर गौतम बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। इसी नदी के जल से हिंदू हज़ारों वर्षों से अपने पितरों का तर्पण करते आए हैं। यह नदी बौद्धों और हिन्दुओं दोनों के लिए पवित्र है। लेकिन, आज यह जिस हालत में है, उसे देख तीर्थयात्री निराश होते हैं। सभी नदी में फिर से जल चाहते तो हैं, लेकिन इसके लिए क्या किया जाए, यह किसी को समझ में नहीं आता।

तीर्थयात्रियों की इस समस्या का समाधान बिहार सरकार ने अपने अंदाज में किया है। उसकी ओर से  312 करोड़ रुपए खर्च करके गया शहर में एक रबर डैम बनवाया गया है। वास्तव में यह नदी में बना एक तालाब है। इसकी लंबाई 411 मीटर और चौड़ाई 95 मीटर है। कंक्रीट की बुनियाद पर बने इस डैम में बरसात और बोरिंग का पानी जमा किया जा रहा है। इस पानी की मदद से अब तीर्थयात्री पितृपक्ष के दौरान आसानी से पिंडदान कर सकते हैं।  बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने जिस रफ्तार के साथ तीर्थयात्रियों की समस्या का का ‘समाधान’ ढूंढा है, उससे लोग ‘अचंभित’ हैं।

लोग ‘अचंभित’ तो संजय सज्जन के संकल्प  से भी हैं। जिस निरंजना-फल्गू नदी पर बिहार सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके उसके कुछ मीटर इलाके में किसी तरह ठहरा हुआ पानी उपलब्ध करवाया है, संजय सज्जन उसी नदी के पूरे 235 किमी लंबे प्रवाह क्षेत्र में बहता हुआ पानी उपलब्ध कराना चाहते हैं। इसके लिए संजय सज्जन के पास न तो आर्थिक संसाधन हैं और न ही तकनीकी विशेषज्ञता। ऐसे में भला वह निरंजना को सदानीरा कैसे बना पाएंगे, यह सवाल कई लोगों के मन में है। लेकिन, मेरे मन में ऐसा कोई सवाल नहीं है। मैं जानता हूं कि संजय सज्जन की रफ्तार बड़ी धीमी है, किंतु वे सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

22 से 23 मार्च के बीच संजय सज्जन ने बोधगया में निरंजना-फल्गू पर्व का आयोजन किया था। इसमें बोधगया के बौद्ध मठों के साथ-साथ वहां का प्रबुद्ध समाज मेजबान की भूमिका में था। संजय सज्जन ने बड़ी खूबसूरती से सबको निरंजना-फल्गू रीवर रीचार्ज मिशन के मंच पर इकट्ठा कर लिया है। पिछले तीन वर्षों में यह मिशन धीरे-धीरे, लेकिन बड़े सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहा है।  देश भर से कई समाजसेवी, तकनीकी विशेषज्ञ, उद्यमी और सरकारी अधिकारी इस मिशन से जुड़कर काम कर रहे हैं। संजय सज्जन ने इन सभी को एक धागा बनकर सुंदर सी माला का रूप दे दिया है।

दो दिन के निरंजना-फल्गू पर्व में संजय सज्जन और अन्य वक्ताओं ने कुल मिलाकर वही बात कही, जो कनेरी के पंचमहाभूत लोकोत्सव में स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी ने कही थी। अर्थात जीवनशैली ठीक तो सब ठीक। हमें धीरे-धीरे उस जीवनशैली की ओर बढ़ना होगा, जिसमें भू-जल के न्यूनतम दोहन और वर्षा जल के अधिकतम संचयन के साथ-साथ प्राकृतिक खेती और सघन वनसंपदा पर खूब जोर दिया जाए। मुझे लगता है कि यदि इस दिशा में सरकार और समाज मिलकर काम करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब निरंजना-फल्गू फिर से सदानीरा हो जाएगी।